कृष्णगिरि/चेन्नई : भारतीय त्योहारों की परम्परा में होली का त्योहार अपनी विशिष्ट पहचान लिए हुए है। यह त्योहार रंगों की रंगिनी के साथ मानव जाति को विकृति से संस्कृति की ओर गतिमान होने की प्रेरणा प्रदान करता है। इस त्यौहार का आगमन प्रकृति के मिलन में उल्लास और उमंग भरे वातावरण का निर्माण करता है। उपरोक्त विचार युगप्रधान आचार्य महाश्रमणजी के सुशिष्य मुनि श्री मोहजीतकुमारजी ने गुरुवार को तमिलनाडु के प्रसिद्ध तीर्थक्षेत्र कृष्णगिरी में होली चातुर्मास के समारोह में प्रकट किये।
मुनिप्रवर ने आगे कहा कि होली के सांस्कृतिक महत्व को प्रकट करते हुए कहा कि होली का त्योहार प्रेम, स्नेह, सौहार्द और सद्भावों के साथ जुड़ा हुआ है। होली की रंगीन छटा व्यक्ति के मन और भावों में आनन्द प्रकट करता है। तनाव और अवसाद के युग में व्यक्ति के भीतर आनन्द की रंगीनी बहार बहे। कार्यक्रम में मुनि ने रंगों का ध्यान करवाया।
दुनिया के प्रत्येक दिन को त्योहार की अभिधा से अभिहित करते हुए मुनि श्री जयेशकुमारजी ने आध्यात्मिक और व्यवहारिक धरातल पर हर रंग की महत्ता को वैज्ञानिक तथ्यों के माध्यम से प्रकट किया। इस अवसर पर मूर्तिपूजक सम्प्रदाय के मुनि निर्भयरत्नविजयजी ने अपने विचार प्रकट किए।
कार्यक्रम में कृष्णगिरी के साथ चेन्नई के श्रावक समाज की भी उपस्थिति रही।
समाचार सम्प्रेषक : स्वरूप चन्द दाँती