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साधुत्व की शुद्धता के प्रति रहें जागरूक : सिद्ध साधक आचार्यश्री महाश्रमण

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-शासनमाता के महाप्रयाण दिवस पर आचार्यश्री ने किया उनका स्मरण

-साध्वीप्रमुखाजी ने अर्पित की विनयांजलि, साध्वीवृंद ने गीत का किया संगान

-‘सादर स्मरण शासनमाता’ का तीसरा भाग शांतिदूत के समक्ष हुआ लोकार्पित 

13.03.2025, गुरुवार, गांधीधाम,कच्छ।गुजरात की विस्तारित यात्रा के दौरान भारत के पश्चिम छोर पर स्थित गुजरात के कच्छ जिले में स्थित गांधीधाम में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा प्रणेता, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ पन्द्रहदिवसीय प्रवास कर रहे हैं। गुरुवार को गांधीधाम के अमर पंचवटी में बने ‘महावीर अध्यात्मिक समवसरण’ में उपस्थित श्रद्धालुओं को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि साधु पांच आश्रवों का त्याग करने वाले होते हैं। पांच आश्रवों को जानकर उन्हें छोड़ देते हैं। हिंसा, चोरी, झूठ, मैथुन और परिग्रह का त्याग कर देते हैं। साधु इन पांचों का परित्याग करते हैं और मन, वचन और काय को अशुभ में जाने से बचाने वाले और इन्हें गुप्त रखने वाले होते हैं। 

साधु छोटे-बड़े सभी प्राणियों की हिंसा से बचने का प्रयास रखने वाले होते हैं। छहकाय के जीवों के त्राता, अहिंसा मूर्ति होते हैं। पांचों इन्द्रियों का निग्रह रखने वाले होते हैं। साधु धीर और बुद्धिशाली होते हैं। निमित्त मिलने पर जिनका चित्त विकृत नहीं होता, वे धीरपुरुष होते हैं। उस मानव का परम सौभाग्य ही होता है, जिसे साधुत्व की प्राप्ति हो जाती है। साधु परिग्रह से मुक्त होता है। साधु के मालिकाने में न कोई जमीन, न बैंक में खाते होते हैं साधु मोह-माया से विरक्त रहने वाले होते हैं। ऐसा साधुपन जिसे प्राप्त हो जाए, उसका जीवन धन्य हो जाता है। 

ऐसे साधुओं के दर्शन करना भी पुण्य की बात होती है। साधु तो चलते-फिरते तीर्थ होते हैं। साधु को ध्यान यह देना चाहिए कि पांच महाव्रत, पांच समितियां और तीन गुप्तियों को सुरक्षित रखने का प्रयास करना चाहिए। साधु को अपने साधुत्व के प्रति जागरूक रहना चाहिए। तेरापंथ धर्मसंघ के चतुर्दशी हाजरी का दिन होता है। हाजरी के माध्यम से साधु-साध्वियों को उनके नियमों के प्रति जागरूक किया जाता है। इससे साधुत्व पुष्ट बन सकता है। धर्मसंघ हमारा आश्रय है। हम संघ में रहकर साधना करते हैं। जहां भी अपने साधुत्व की शुद्धता के प्रति जागरूक रहने का प्रयास करना चाहिए। 

समणियां भी चाहें देश में रहें या विदेश में रहें, अपनी जानकारी, ज्ञान का विकास करें और कहीं भाषण आदि देना हो, उसके लिए अच्छी तैयारी करके जाने का प्रयास करना चाहिए। बोलने की कला और भाषण की शैली को अच्छा बनाने का भी प्रयास किया जा सकता है। 

महाश्रमणी साध्वीप्रमुखाजी कनकप्रभाजी के महाप्रयाण दिवस के संदर्भ में आचार्यश्री ने उनके जीवनचर्या पर प्रकाश डालते हुए आचार्यश्री ने कहा कि उन्होंने धर्मसंघ में अनेक रूपों में सेवाएं दीं। हिन्दी और संस्कृत भाषा की विदुषी थीं। 50 वर्षों तक वे साध्वीप्रमुखा पद रहीं। आज के दिन वे इस संसार से अलविदा हो गईं। अब साध्वियों की देखभाल का जिम्मा साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी के ऊपर है। आपके जिम्मे भी अनेेक साहित्यिक कार्य भी हैं। आप समणी अवस्था में विदेश भी गई हैं। आप भी साध्वीप्रमुखा के रूप में अपनी सेवा देते रहें। इस अवसर आचार्यश्री ने मुख्यमुनिश्री और साध्वीवर्याजी को मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। 

आचार्यश्री ने हाजरी के क्रम को संपादित किया। आचार्यश्री ने साध्वी ललिताश्रीजी ‘टमकोर’ और साध्वी दीपमालाजी ‘श्रीगंगानगर’ कुछ दिनों के बाद संयम पर्याय के पचास वर्ष पूरे होने वाले हैं। दोनों साध्वियां आगम स्वाध्याय का प्रयास रखें। शरीर और स्वास्थ्य का भी ध्यान रखने का प्रयास और धर्मसंघ को जितना संभव हो सके, सेवा देने का प्रयास रखना चाहिए। दोनों साध्विजी के प्रति एडवांस में मंगलकामना करता हूं। 

आचार्यश्री होलिका दहन के अवसर थोड़ी देर प्रेक्षाध्यान का प्रयोग कराया। आचार्यश्री की आज्ञा से मुनि चन्द्रप्रभजी और मुनि कैवल्यकुमारजी ने लेखपत्र का वाचन किया। आचार्यश्री ने मुनिद्वय को दो-दो कल्याणक बक्सीस किए। तदुपरान्त उपस्थित साधु-साध्वियों ने अपने-अपने स्थान पर खड़े होकर लेखपत्र का उच्चारण किया। 

‘सादर स्मरण शासनमाता’ का तीसरा भाग शासन गौरव साध्वी कल्पलताजी द्वारा लिखी पुस्तक जैन विश्व भारती के पदाधिकारियों द्वारा आचार्यप्रवर के सम्मुख लोकार्पित किया गया। इस संदर्भ में आचार्यश्री मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। 

शासनमाता के महाप्रयाण दिवस पर वर्तमान साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने अपनी विनयांजलि समर्पित कीं। इस अवसर पर साध्वीवृंद ने गीत का संगान किया। मारवाड़ जंक्शन के विधायक श्री केशाराम चौधरी ने आचार्यश्री के दर्शन करने के उपरान्त अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति दी और आचार्यश्री से मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया। 

 

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