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तपोगुण प्रधानता से सुगति की प्राप्ति संभव:आचार्य महाश्रमण

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-गांधीधाम प्रवास का सातवां दिवस

-जीवन को तप से भावित बनाने को आचार्यश्री ने किया अभिप्रेरित

-अनेक समाज के लोगों ने आचार्यश्री के समक्ष दी अभिव्यक्ति

11.03.2025, मंगलवार, गांधीधाम, कच्छ।भारत देश में उन्नत प्रदेश के रूप में सुविख्यात गुजरात प्रदेश को आध्यात्मिक रूप से समृद्ध बनाने के लिए जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ गत 2024 से यात्रा व प्रवास कर रहे हैं। इस विशिष्ट यात्रा व प्रवास के दौरान गुजरात के अधिकांश जिले, गांव, नगर, कस्बे व महानगर आदि भी पूज्यचरणों के स्पर्श से पावनता को प्राप्त हो चुके हैं और आगे भी कितने-कितने जिले और गांव पूज्यचरणों से पावन बनने वाले हैं। वर्तमान में तेरापंथाधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी गुजरात के कच्छ जिले में स्थित गांधीधाम में पन्द्रहदिवसीय मंगल प्रवास सुसम्पन्न कर रहे हैं। गांधीधाम में पूज्य सन्निधि में हर वर्ग, समाज आदि के लोग पहुंच रहे हैं और सभी मानवता के मसीहा के मंगल आशीर्वाद व यथावसर पावन पाथेय से लाभान्वित हो रहे हैं। शासन-प्रशासन से जुड़े लोग हों या आम जन जनसाधारण आचार्यश्री के दर्शन व मंगल आशीर्वाद से अपने जीवन को धन्य बनाने में जुटे हुए हैं। 

गांधीधाम प्रवास के सातवें दिन मंगलवार को ‘महावीर आध्यात्मिक समवसरण’ में उपस्थित श्रद्धालुओं को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि हमारी दुनिया में अनेक दर्शन हैं। उन दर्शनों में एक जैन दर्शन भी है। जैन दर्शन के अनेक सिद्धांत हैं। जैसे-आत्मवाद, कर्मवाद, लोकवाद, क्रियावाद आदि-आदि अनेक सिद्धांत हैं। इन सिद्धांतों में आत्मवाद एक प्रमुख सिद्धांत है। आत्मा नाम का तत्त्व है। अनंत आत्माएं दुनिया में हैं। दुनिया में सबका अपना स्वतंत्र अस्तित्व है। आत्मा शाश्वत रहने वाली, आत्मा अमर होती है। जन्म-मरण की परंपरा चलती है। मनुष्य चिंतनशील प्राणी होता है, इसलिए मनुष्य को अपने अगले जीवन के विषय में भी चिंतन करना चाहिए। 

यह संसार अधु्रव और अशाश्वत है, इसमें दुःख की बहुलता है। आदमी जीवन भी अशाश्वत है। आगे आत्मा दुर्गति में न जाए, इसके लिए आदमी को अध्यात्म और धर्म की शरण में जाने का प्रयास करना चाहिए। सुगति की प्राप्ति के लिए आदमी को तपोगुण प्रधान बनाने का प्रयास करना चाहिए। तप और निर्जरा के बारह भेद प्राप्त होते हैं। स्वाध्याय, ध्यान, विनय आदि भी तप की श्रेणी में आते हैं। इसलिए आदमी को अपने जीवन को तपोगुण प्रधान बनाने का प्रयास करना चाहिए। जिसका जीवन तपोगुण प्रधान हो जाता है, उसको सुगति की प्राप्ति संभव हो सकती है। जो सरल होता है, ऋजुभूत होता है, उसे भी सुगति की प्राप्ति संभव हो सकती है। आदमी को अपने भीतर सहिष्णुता बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए। संयम में रत रहने का प्रयास करना चाहिए। खान-पान, इन्द्रिय, वाणी और मन का संयम है तो सुगति की प्राप्ति हो सकती है। 

आचार्यश्री ने विदेशों में जाने वाली समणियों को प्रेरित करते हुए कहा कि वहां के लोगों को धर्म का संदेश मिले, अहिंसा, संयम व तप की बात भी बताई जाए। सभी में धर्म के संस्कार पुष्ट रहें, ऐसी मंगलकामना। 

आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में अग्रवाल समाज के अध्यक्ष श्री समीर गर्ग, श्री जेपी फाउण्डेशन के अध्यक्ष श्री जेपी माहेश्वरी, गांधीधाम महानगरपालिका के डेप्युटी कमिश्नर श्री मेहुल देशाई, कंडला कॉम्प्लेक्स, गडवी समाज के श्री राजमाभाई, श्री नरेशभाई शाह ने आचार्यश्री के स्वागत में अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। 

 

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