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ज्ञान में हो तर्क और आज्ञा में रहें सतर्क : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण

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-साध्वी ज्योतिश्रीजी की स्मृतिसभा का हुआ आयोजन  

-विभिन्न स्कूलों के संचालक भी पहुंचे पूज्य सन्निधि में

10.03.2025, सोमवार,गांधीधाम,कच्छ।हमारी दुनिया में धर्म शब्द काफी प्रसिद्ध है। हिन्दीभाषी हो अन्य कोई भाषा, सभी भाषा में धर्म शब्द बहुप्रचलित है। कोई किसी धर्म का अनुयायी होता है तो कोई किसी धर्म के अनुयायी होते हैं। कुछ नास्तिक लोग भी हो सकते हैं। जो न स्वर्ग-नरक, पुनर्जन्म, भगवान आदि में विश्वास करते हैं। छह दर्शन बताए गए हैं। लोगों की विचारधारा भी कभी परिवर्तित होती है। जहां जिसका विचार अथवा कोई बात अच्छी लगे, उसे स्वीकार किया जा सके तो करना चाहिए। यदि स्वीकार न करना हो तो दुराग्रह की भावना से उसका अनावश्यक विरोध करने से बचने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को अनाग्रही दृष्टिकोण रखने का प्रयास करना चाहिए। तत्त्व को ग्रहण करने का प्रयास करना चाहिए। 

धर्म है तो धर्म में यथार्थ होना चाहिए, युक्तिसंगतता भी यथासंभवतया हो। आदमी को जहां ज्ञानार्जन की बात हो वहां तर्क किया जा सकता है, लेकिन जहां आज्ञा की बात हो, वहां सतर्क रहने का प्रयास करना चाहिए। आज्ञा में अनावश्यक तर्क करने से बचने का प्रयास करना चाहिए। ज्ञान संबंधी कोई विषय हो तो तर्क कर सकते हैं, लेकिन जहां अपने गुरु व अपने विशिष्ट की आज्ञा हो तो वहां सतर्कता रखने का प्रयास करना चाहिए। यह व्यवस्था रहने का प्रयास करना चाहिए। विष का उपयोग यदि दवा के अनुसार लिया जाए तो वह रोग से मुक्ति भी दिला सकता है और असावधानीवश ज्यादा ले लिया तो हानिकारक हो सकता है। कोई शस्त्र है तो उसका उपयोग किया जा रहा है तो अच्छा परिणाम प्राप्त हो सकता है और यदि उसका दुरुपयोग हो जाए अथवा उसके उपयोग में असावधानी हो जाए तो वह प्रयोगकर्ता के लिए हानिकारक बन सकता है। इसी प्रकार धर्म भी है। धर्म को सही तरीके से काम में लें तो आत्मा का कल्याण हो सकता है और यदि विषयासक्ति की बात हो जाए तो भला धर्म से कितना लाभ प्राप्त हो सकता है। शास्त्र की वाणियां बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। धर्म के क्षेत्र में भी सही तरीके से कार्य करने का प्रयास हो। उक्त पावन पाथेय जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने सोमवार को गांधीधाम के अमर पंचवटी में बने ‘महावीर आध्यात्मिक समवसरण’ में उपस्थित जनता को प्रदान की। मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने कहा कि यहां की जनता में धार्मिक चेतना का विकास होता रहे। साधु-साध्वियों को थोड़ा विश्राम का अवसर मिल गया। कई संतों को अध्ययन का अवसर मिल रहा है। 

पावन प्रवचन के उपरान्त दिवगंत साध्वी ज्योतिश्रीजी की स्मृतिसभा का आयोजन किया गया। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने उसका संक्षिप्त परिचय प्रदान करते हुए दिवगंत आत्मा के प्रति आध्यात्मिक मंगलकामना करते हुए चार लोगस्स का ध्यान करने की प्रेरणा प्रदान की तो चतुर्विध धर्मसंघ ने चार लोगस्स का ध्यान किया। तदुपरान्त साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी, मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी ने भी उनकी आत्मा के प्रति आध्यात्मिक मंगलकामना की। 

सेंट एलिजाबेथ स्कूल-अंजार के फादर जूडी ने अपनी विचाराभिव्यक्ति दी। माउण्टेन कार्नियर हाइस्कूल की प्रिंसिपल सिस्टर सहाय विमलाजी ने भी अपनी भावाभिव्यक्ति दी।

 

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