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स्वकल्याण व परकल्याण के लिए हो शक्ति का प्रयोग : सिद्ध साधक आचार्यश्री महाश्रमण

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-अखण्ड परिव्राजक आचार्यश्री ने किया लगभग 14 कि.मी. का विहार

-कोडाय के 72 जिनालय में पधारे जिनेश्वर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमण

21.02.2025, शुक्रवार,कोडाय,कच्छ।गुजरात की धरा को आध्यात्मिकता से भावित बनाने के लिए गतिमान जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के देदीप्यमान महासूर्य, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ नित्य प्रति मंगल विहार कर रहे हैं। मानों गुजरात का सौभाग्य जगा है कि वर्ष 2024 से लगातार ऐसे महामानव का मंगल प्रवास और विहार गुजरात की धरा पर ही हो रहा है। 

शुक्रवार को प्रातःकाल की मंगल बेला में तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पुनाडी से मंगल प्रस्थान किया। मार्ग के दोनों ओर स्थित वृक्षों और झाड़ियों से मार्ग का सौंदर्य निखरा हुआ-सा प्रतीत हो रहा था। गुजरात के इन क्षेत्रों में स्थापित पवनचक्कियां भी दिखाई देती हैं। यह पवनचक्कियां क्षेत्रों में विद्युत आपूर्ति आदि में सहायक साबित होती हैं। मार्ग में अनेक स्थानों पर लोगों को आशीर्वाद प्रदान करते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे। लगभग चौदह किलोमीटर का विहार कर युगप्रधान आचार्यश्री कोडाय में स्थित बहत्तर जिनालय परिसर में पधारे। परिसर से संबंधित लोगों ने आचार्यश्री का भावपूर्ण अभिनंदन किया। 

बहत्तर जिनालय में उपस्थित श्रद्धालुओं को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि आदमी के जीवन में शक्ति होती है तो आदमी कुछ विशेष कर सकता है। शक्ति नहीं होगी तो आदमी भला क्या विशेष कर सकता है। उसके लिए कठिन या दुर्लभ कार्य हो सकता है। तीर्थंकरों के पास तो कितनी शक्ति होती होगी। वे पूर्णतया अभय होते हैं। जिसने भय को जीत लिया हो, वह बहुत शक्तिशाली हो जाता है। इस अवसर्पिणी काल के चौबीस तीर्थंकर हो चुके हैं। पहले तीर्थंकर भगवान आदिनाथ और अंतिम चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर हो चुके हैं। यह दुनिया का भाग्य होता है कि हर समय तीर्थंकर विराजमान होते हैं। आदमी यह विचार करे कि हमंे तीर्थंकर के प्रत्यक्ष दर्शन हो अथवा न हो, अपनी आत्मा का दर्शन करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी अपनी आत्मा की ओर ध्यान देता है तो स्वयं का कल्याण हो सकता है। 

लोगस्स के माध्यम से वर्तमान में हुए चौबीस तीर्थंकरों को हम वंदन कर सकते हैं। कोई उसकी माला कर लेता है तो बहुत बड़ी बात होती है। आदमी को तीर्थंकरों की भक्ति और स्तुति करने का प्रयास करना चाहिए। भक्ति करने से शक्ति की प्राप्ति भी हो सकती है। शक्ति भी कई प्रकार की होती है- तन की शक्ति, मन की शक्ति, वचन की शक्ति, धन की शक्ति, जन की शक्ति- यों अनेक प्रकार की शक्तियां हो सकती हैं। आदमी को शक्तियों का दुरुपयोग करने से बचने का प्रयास करना चाहिए। जहां तक संभव हो सके आदमी को अपनी शक्ति सही कार्य और सही दिशा में नियोजन करने का प्रयास करना चाहिए। शरीर का बल भी एक उपलब्धि है। आदमी के पास मनोबल है, वह डरता नहीं है तो उसके पास अच्छा मनोबल है। वाणी की शक्ति होती है तो आदमी अच्छा बोल सकता है, यह भी एक बड़ी उपलब्धि हो सकती है। गृहस्थ जीवन में धन की शक्ति भी हो सकती है और राजनेताओं के पास जन की शक्ति भी हो सकती है। 

इन सभी शक्तियों के साथ धर्म और अध्यात्म जुड़ जाए तो इन शक्तियों का सही सदुपयोग हो सकेगा। इन शक्तियों से स्वकल्याण के साथ परकल्याण भी हो सकता है। आदमी को अपनी किसी भी शक्ति का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त बहत्तर जिनालय से जुड़े श्री कल्पेश भाई ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। 

 

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