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कर्त्तव्य और अकर्त्तव्य का बोध होना आवश्यक : शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण

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-करीब 11 कि.मी. का विहार कर पुनाडी में पधारे तेरापंथाधिशास्ता

-नवजीवन होम्स में आचार्यश्री का हुआ मंगल प्रवास* 

20.02.2025,गुरुवार,पुनाडी,कच्छ।गुजरात की धरा का पहला और जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ का 161वां मर्यादा महोत्सव कच्छ जिले के मुख्य नगर भुज में सुसम्पन्न कर जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी पुनः कच्छ जिले में गतिमान हैं। नित्य प्रति आचार्यश्री के चरणों कितने-कितने गांव और कस्बे पावनता को प्राप्त हो रहे हैं। गुरुवार को प्रातः युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने दहींसरा से मंगल प्रस्थान किया। मार्ग में अनेकानेक लोगों को आचार्यश्री के दर्शन और मंगल आशीर्वाद का सौभाग्य प्राप्त हुआ। मार्ग में आचार्यश्री एस.पी.एम. फार्म्स और समर्पण आश्रम में भी पधारे, जहां संबंधित लोगों ने आचार्यश्री का भावपूर्ण स्वागत किया। आचार्यश्री ने संबंधित लोगों को मंगल आशीर्वाद भी प्रदान किया। जन-जन पर आशीषवृष्टि करते हुए आचार्यश्री लगभग 11 किलोमीटर का विहार कर पुनाडी में स्थित नवजीवन होम्स परिसर में पधारे। 

नवजीवन होम्स में उपस्थित श्रद्धालुओं को शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि आदमी के जीवन में कर्त्तव्य का महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। कर्त्तव्य का बोध होना और उसका सम्यक्तया पालन करना, जिस आदमी के जीवन में चलता है तो वह आदमी अपने जीवन में उच्च स्थिति को प्राप्त कर सकता है। आदमी को अपने कर्त्तव्य का बोध होना चाहिए। जो लोग अपने कर्त्तव्य और अकर्त्तव्य को नहीं जानते उनका कभी ऐसा अनिष्ट भी हो सकता है, जिसके विषय में उन्होंने सोचा भी नहीं होगा। अपने कर्त्तव्य को न जानने वाला मानव होते हुए भी पशु के समान होता है। हालांकि देखा जाए तो पशुओं में भी अपने कार्य के प्रति कितना बोध देखा जा सकता है। जैसे कोई गाय है, वह अपने बच्चे की देखभाल के प्रति कितना जागरूक रहती है। ममत्व भाव के साथ वह अपने कर्त्तव्य को भी ध्यान दे लेती है। साधु का भी अपना कर्त्तव्य होता है। साधु का प्रथम कर्त्तव्य होता है कि वह अपने साधुत्व का पालन करे। ज्यादा विद्वान, वक्ता आदि न हो तो भी अपने साधुपन को अच्छे ढंग से पालने का प्रयास करना चाहिए। बाद में साधुओं के और अलग-अलग कर्त्तव्य हो सकते हैं। किसी साधु को व्याख्यान देने की जिम्मेदारी दे दी गयी तो साधु को निर्धारित समय पर यथास्थान उपस्थित होकर व्याख्यान का क्रम प्रारम्भ कर देना चाहिए। लोग जितना आएं अथवा न आएं, किन्तु अपने व्याख्यान देने के कर्त्तव्य का पालन करने का प्रयास करना चाहिए। किसी साधु को गोचरी जाना, अन्य कोई कार्य करना तो उसे उसके प्रति जागरूक रहने का प्रयास करना चाहिए। 

भगवान ऋषभ गृहस्थ अवस्था में थे तो लोगों को सांसारिक कार्यों को भी प्रशिक्षण प्रदान किया। उस समय उनका कर्त्तव्य था जनता को प्रशिक्षित करना। तीर्थंकर भगवान भी मंगल देशना देते हैं और जीवों का कल्याण करते हैं। यह तीर्थंकर का कर्त्तव्य है कि देशना के माध्यम से लोगों का कल्याण करें। इस प्रकार श्रावक हों अथवा को सामान्य गृहस्थ, सभी को अपने कर्त्तव्य के प्रति जागरूक रहने का प्रयास करना चाहिए। कर्त्तव्य का पालन, अकर्त्तव्य से विरमण हो तो आदमी अपने जीवन में सफल हो सकता है। आचार्यश्री के स्वागत में सुश्री ईशानी मोरबिया ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। श्रीमती प्रतिमा मोरबिया ने स्वागत गीत का संगान किया।

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