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साध्वी श्री विश्रुतप्रभाजी तेरापंथ सम्प्रदाय की नवमी साध्वी प्रमुखा मनोनीत

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साध्वीश्री विश्रुतविभा 9वीं साध्वीप्रमुखा के रूप में मनोनीत

- आचार्य श्री ने दीक्षा दिवस पर संघ को दिया नव साध्वीप्रमुखा का उपहार

- आज का दिन मेरे लिए महत्वपूर्ण - आचार्य महाश्रमण

- 49 वें दीक्षा दिवस 'युवा दिवस' पर आयोजित हुए विविध कार्यक्रम

सरदारशहर, चूरू (राजस्थान)।जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम अधिशास्ता आचार्य श्री महाश्रमण जी ने आज सरदारशहर की धरा पर तेरापंथ की 9 वीं साध्वीप्रमुखा के रूप में साध्वीश्री विश्रुतविभा जी का मनोनयन कर सरदारशहर के इतिहास में एक और स्वर्णिम पृष्ठ जोड़ दिया। सरदारशहर में प्रवासित आचार्य श्री महाश्रमण ने आज साध्वी समुदाय की मुखिया के रूप में मुख्यनियोजिका विश्रुतविभा जी की नियुक्ति की तो सम्पूर्ण तेरापंथ समाज में हर्ष की लहर छा गयी। आचार्यप्रवर के 49 वें दीक्षा दिवस पर मानों धर्मसंघ को नव साध्वीप्रमुखा का उपहार मिल गया।

तेरापंथ भवन में विराट जनमेदिनी के मध्य आज विविध कार्यक्रमों का समायोजन हुआ। एक ओर आचार्यश्री का दीक्षा दिवस देशभर में' युवा दिवस' के रूप में मनाया गया वहीं हाजरी वाचन एवं सरदारशहर वासियों द्वारा चातुर्मास की अर्ज ने आज के आध्यात्मिक उल्लास को द्विगुणित कर दिया। 

नियुक्ति पत्र प्रदान कर किया साध्वीप्रमुखा मनोनयन
समारोह में ज्यों ही आचार्यप्रवर मंचासीन हुए तो समुपस्थित धर्मसभा में श्रद्धालुओं में उत्सुकता से शांति छा गयी। हर कोई नव साध्वीप्रमुखा के चयन को लेकर आतुर भावों से प्रतीक्षारत था। तेरापंथ के पूर्वाचार्यों का स्मरण कर जैसे ही आचार्यश्री ने साध्वी श्री विश्रुतविभा जी की नियुक्ति कर साध्वीप्रमुखा पद प्रदान किया तो पूरा परिसर जय जयकारों से गुंजायमान हो उठा। 

आचार्यश्री ने मंगल उद्बोधन में कहा - हमारा यह तेरापंथ धर्मसंघ आज से 262 वर्ष पूर्व प्रारम्भ हुआ और महामना आचार्य भिक्षु इसके प्रथम गुरु हुए। चतुर्थ आचार्य श्री जीतमल जी ने संघ में साध्वियों की मुखिया के रूप में व्यवस्था दी। साध्वी सरदारां जी प्रथम साध्वीप्रमुखा बनी। तब से यह परंपरा चली आरही है। आचार्य श्री तुलसी ने अपने आचार्यकाल में तीन साध्वीप्रमुखाओं की नियुक्ति की। आचार्य के निर्देशन में भी एक ही साध्वी मुखिया होती है। इससे पूर्व साधिक 50 वर्षों तक साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा जी ने इस पद पर सेवाएं दी। दिल्ली में दो माह पूर्व उनका प्रयाण हो गया। अब इस पद को रिक्त न रखते हुए में साध्वी विश्रुतविभा को नियुक्त करता हूं। 

तत्पश्चात आचार्यवर ने उन्हें धवल उत्तरीय प्रदान किया जिसे साध्वीवर्या संबुद्धयशा जी ने साध्वीप्रमुखा को ओढ़ाया। आशीर्वचन फरमाते हुए आचार्यश्री ने अपना स्वयं का राजोरहण एवं प्रमार्जनी नव साध्वीप्रमुखा को प्रदान की। आचार्य श्री ने कहा कि आचार्यों का एक कर्तव्य साध्वीप्रमुखा की नियुक्ति होता है जिसे आज मैनें सम्पन्न कर लिया है। अब आप खूब अच्छे तरीके से साध्वी समुदाय की सारसंभाल, व्यवस्था आदि देखे और स्वयं चित्त समाधि में रहते हुए औरों को भी चित्त समाधि में रखे। 

तेरापंथ की मर्यादा, संघ व्यवस्था के इन दुर्लभ क्षणों को देख हर कोई श्रद्धा भावों में सराबोर हो गया। धर्मसभा ने खड़े होकर साध्वीप्रमुखा का अभिवादन किया। 

*साध्वीप्रमुखाश्री के भावोद्गार*
नवमनोनित साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि आचार्यप्रवर ने मुझे यह दायित्व सौंपा है। आप श्री के आशीर्वाद और विश्वास से मैं आगे बढ़ते हुए इसका निर्वाह कर पाऊंगी। गुरूदेव श्री तुलसी से मुझे संयम रत्न मिला, आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी के सान्निध्य में मुझे आगे बढ़ने का अवकाश मिला। साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभा जी का भी निकट सान्निध्य का योग मिला। वर्तमान में आचार्यश्री के आभावलय में हम सभी साधना कर रहे है। अपने प्रति मैं मंगलकामना करती हूं कि गुरुओं के निर्देश, आज्ञा के प्रति सर्वात्मना समर्पित रहकर धर्मसंघ में अपना योगदान देती रहूं।

कार्यक्रम में मुख्यमुनि श्री महावीर, साध्वीवर्या संबुद्धयशा जी ने मंगलकामना प्रकट की। साध्वीवृन्द ने सामूहिक गीत का संगान किया। साध्वी जिनप्रभा जी ने अभिनंदन पत्र का वाचन किया जिसे साध्वीवर्या जी ने साध्वीप्रमुखा जी को उपहृत किया। 

*दीक्षा धरा पर दीक्षा दिवस का सुंदर संयोग*
दीक्षा दिवस के संदर्भ में आचार्यप्रवर ने कहा कि मेरे लिए आज का दिन महत्वपूर्ण है। आज ही के दिन 48 वर्षों पूर्व मैनें इसी सरदारशहर में दीक्षा ग्रहण की थी। मानों मेरे लिए सोने का सूरज ऊगा, मुझे संयम रत्न मिला। यह संयम रत्न आजीवन सुरक्षित रहे अपने प्रति मैं यह मंगलकामना करता हूं। 
इस अवसर पर अभातेयुप के अध्यक्ष  पंकज डागा, सुजानमल दुगड़, श्री सुमतिचंद गोठी, नवीन नौलखा, ललित मोदी ने अपने विचार रखे। सरदारशहर तेयुप ने गीत की प्रस्तुति दी। ज्ञानशाला के बच्चों ने राजनेताओं का रूप बनाकर अभिवंदना की। इससे पूर्व प्रातः आचार्यश्री का श्री समवसरण पदार्पण हुआ जहां ज्ञानार्थियों ने इतिहास का पुनरावर्तन करते हुए गुरूदेव के वैराग्य काल, दीक्षा काल की झलकियों का मंचन किया। दो दीक्षार्थियों का प्रतीकात्मक वरघोड़ा भी नगर में निकाला गया।

 

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