जीवन आनंद का उत्सव
हुबली : जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा की ओर से केश्व्वापुर स्थित नुतन वासु पूज्य जैन भवन में चल रहे चातुर्मासार्थ में धर्मसभा को संबोधित करते हुए युगप्रधान महातपस्वी आचार्य श्री महाश्रमणजी के सुशिष्य मुनिश्री हिमांशुकुमार जी ने अपनी मधुरवाणी से मंगल प्रवचन में फरमाया कि मनुष्य के भीतर में आनंद भरा पड़ा है।मनुष्य ने अपने जीवन में कुछ ऐसी गलत आदतें बना रखी है,इसलिए हमारा वास्तविक आनंद भीतर का भीतर रह गया,आनंद प्राप्त करने के दो मार्ग होते है, पहला साधनों से दुसरा साधना से,जो व्यक्ति साधना में लीन रहता हे, वही व्यक्ति सही में आनंद का अनुभव कर सकता है,जो हम साधनों का आनंद प्राप्त करते है।बाहर का आनंद अपने जीवन में हमे जरूर मिलता है,लेकिन हमारा भीतर का आनंद हमसे दूर होते चले जायेगा।साधना के मार्ग पर जो व्यक्ति चलेगा,तो अपने भीतर से आनंद का अनुभव उस व्यक्ति को होगा। आनंद हमारा स्वभाव है,ये बाहर से नहीं मिलेगा।हम भीतर से साधना के द्वारा हमे हमारी आत्मा को जगाना होगा।आत्मा कभी नष्ट नहीं होती।मनुष्य का चित आत्मा का दुसरा कारण है,व्यक्ति के जीवन में कोई भी काम अच्छा हो या बुरा हो,लाभ हो या हानि हो,उसे जल्दबाजी में कोई कार्य नहीं करना चाहिए। व्यक्ति को स्वयं का बोया स्वयं को ही मिलेगा,जैसा बीज हम बोयेगे,वैसा ही फल हमे मिलेगा।अपने भीतर के उत्सव को अगर बढाना है, जो आज जो हमारे साथ हो रहा है, या कोई भी घटना हमारे साथ घट रही तो हमे यही सोचना चाहिए, मेरा खुद का बोया मेरे साथ हो रहा है। मुनि हेमंत कुमार जी फरमाया कि व्यक्ति खाली हाथ आया था और हम सबको एक दिन खाली हाथ जाना है,नही कुछ हम साथ मे लाए थे,और नही कुछ हम साथ में लेकर जायेंगे,जो बीज हमने बोया है,वैसे ही बीज हमे मिल रहा है, व्यक्ति को संतुष्ट रहना बहुत ज़रुरी है। कोप्पल डावनगिरी व अन्य जगह से काफ़ी श्रद्धालु की धर्म सभा में उपस्थिति रही।