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ध्यान की साधना है व्यापक : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण

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 -12 कि.मी. का विहार कर इन्द्रणज में पधारे महातपस्वी महाश्रमण

अंतराष्ट्रीय ध्यान दिवस पर आचार्यप्रवर ने कराया ध्यान का प्रयोग

 इन्द्रणज, आनंद।मर्यादा महोत्सव के लिए भुज-कच्छ की ओर गतिमान जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी वर्तमान में आनंद जिले में जनता को आध्यात्मिक आनंद प्रदान कर रहे हैं। शनिवार को प्रातःकाल तारापुर से गतिमान हुए। उत्तर भारत में होने वाली बर्फबारी का कुछ असर ही गुजरात के वातावरण पर दिखाई पड़ रहा है। सुबह में लगने वाली ठंड सूर्य के आसमान में चढ़ने के साथ ही गायब हो जाती है। जन-जन को आशीष प्रदान करते आचार्यश्री लगभग बारह किलोमीटर का विहार कर इन्द्रणज में स्थित सुमन जेठाभाई पटेल इंग्लिश मीडियम स्कूल परिसर में पधारे। जहां स्कूल से जुड़े लोगों और विद्यार्थियों ने आचार्यश्री का भावभीना अभिनंदन किया। 

अंतराष्ट्रीय ध्यान दिवस पर युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समुपस्थित श्रद्धालुओं को पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि धर्मशास्त्र में ध्यान की बात और स्वाध्याय आदि की प्रेरणा भी प्राप्त होती है। ध्यान हमारे चित्त और मन से जुड़ा हुआ तत्त्व है। शरीर और वाणी से भी जुड़ा हुआ हो सकता है। दुनिया में ध्यान और योग की चर्चा भी होती है। योग में अष्टांग योग की बात भी होती है। अनेक नामों से ध्यान पद्धतियां प्रचलित हैं। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ में प्रेक्षाध्यान की पद्धति प्रचलित है। परम पूज्य गुरुदेवश्री तुलसी के समय में यह पद्धति प्रस्तुत हुई थी। लगभग पचास वर्ष प्रेक्षाध्यान नामकरण का चल रहा है। ध्यान का मूल तत्त्व है-एकाग्रता, स्थिरता, निर्विचारता, योगनिरोध। आदमी के मन की चंचलता को कम करने, शरीर को सुस्थिर रखना और वीतरागता की दिशा में आगे बढ़ने की क्रिया ध्यान होती है। ध्यान से कोई सिद्धि अथवा लब्धि भी प्राप्त हो सकती है। 

ध्यान के माध्यम से वीतरागता की दिशा में आगे बढ़ जाना बड़ी बात होती है। ध्यान की साधना काफी व्यापक है। चित्त की शुद्धि प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए, यह विशेष बात हो सकती है। आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने प्रेक्षाध्यान की कितने शिविरों का संचालन और प्रेक्षाध्यान का कार्य कराया होगा। विदेश के लोग भी प्रेक्षाध्यान में हिस्सा लेने के लिए आते रहें। 

ध्यान अर्थात् आदमी चलते हुए भी जागरूक रहे। बोलते हुए, बैठे हुए, भोजन करते हुए भी जागरूक और सजग रहे तो ध्यान की पुष्टता हो सकती है। प्रेक्षाध्यान के अनेक प्रकार के प्रयोग हैं। चित्त की एकाग्रता रहे, तो जीवन का कितना कल्याण हो सकता है। 

आचार्यश्री ने मंगल प्रवचन के मध्य लोगों को कुछ देर तक ध्यान का प्रयोग भी कराया।

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