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- पूज्यप्रवर ने किया तेरापंथ की नेतृत्व व्यवस्था को व्याख्यायित
- युगप्रधान की अभिवंदना में तीसरे दिन भी हुई भावाभिव्यक्तियां
12.05.2022, गुरुवार, सरदारशहर, चूरू (राजस्थान)
अपनी 18000 किलोमीटर लंबी अहिंसा यात्रा द्वारा जनमानस में मैत्री, प्रेम, करुणा की भावना जागृत करने वाले शांतिदूत आचार्य श्री महाश्रमण जी चतुर्विध धर्मसंघ के साथ अपनी जन्मधरा सरदारशहर में पावन प्रवास करा रहे हैं। प्रवास के दौरान आयोजित विशिष्ट कार्यक्रमों से आचार्यश्री का यह अल्पकालिक प्रवास भी विशिष्टता को प्राप्त हो रहा है।
प्रातः मुख्यप्रवचन कार्यक्रम के अंतर्गत तेरापंथ भवन में धर्मसभा को संबोधित करते हुए आचार्यश्री ने कहा- जीवन में भौतिकता होती है तो आध्यात्मिकता भी होती है। हमारा दृष्टिकोण कैसा हो वह महत्वपूर्ण है। भौतिकतापरक है या आत्मपरक इसका हमें चिंतन करना चाहिए। हमारा यह तेरापंथ धर्मसंघ एक नेतृत्व केंद्रित धर्मसंघ है। आचार्य भिक्षु हमारे प्रथम गुरु थे और उसके बाद तेरापंथ में सदा से एक आचार्य की परंपरा रही है। गुरु जिसे अपना उत्तराधिकारी बना देते है वही आचार्य बनता है। हमारा घोष भी है - तेरापंथ की क्या पहचान, एक गुरु और एक विधान। जहां एकतंत्र कार्य होता है, एक अनुशासन होता है वहां लाभ हो सकता है।
आचार्य श्री ने आगे कहा कि तेरापंथ में कोई किसी का व्यक्तिगत शिष्य नहीं होता सभी एक गुरु के शिष्य होते हैं। चातुर्मास, विहार भी गुरु के निर्देशन से ही करते हैं। सभी में गुरु के प्रति एक विनय समर्पण का भाव है। प्रसंगवश आचार्य ने फरमाया की मुझे परम पूज्य आचार्य तुलसी के पास निकटता से रहने का अवसर प्राप्त हुआ। उन्होंने सरदारशहर में कितने चातुर्मास किये, महोत्सव किये, कितनी बार यहां पधारे। यह भी एक योग है कि कई बातों में मेरे और उनके मध्य समानता है। मुझे उनके चरणों में रहने का मौका मिला गुरु की कृपा मिली। गुरु कृपा जिस पर हो जाती है तो फिर जिंदगी संवर सकती है।
इस अवसर पर मुनि प्रिंस कुमार, मुनि नमन कुमार, बालमुनि अर्हम कुमार, साध्वी प्रबुद्धयशा, साध्वी मैत्रीयशा, साध्वी ऋजुबाला, साध्वी प्रफ्फुलप्रभा, साध्वी श्रुतिप्रभा, साध्वी काम्यप्रभा, साध्वी तन्मयप्रभा, साध्वी प्रसन्नयशा आदि अनेक साध्वियों ने गुरूदेव की अभिवंदना में प्रस्तुति दी। तेरापंथ महिला मंडल, कन्या मण्डल ने सामूहिक गीत का संगान किया। बालकृष्ण कौशिक व संतोष बैद ने भी अपने विचार रखे।