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सम्यक् ज्ञान, दर्शन व चारित्र है मोक्ष का मार्ग : महातपस्वी महाश्रमण

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-पूज्य सन्निधि में पहुंचे मुनि भव्यकीर्तिसागरजी 

-अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का अंतिम दिन जीवन विज्ञान दिवस के रूप में समायोजित 

-आचार्यश्री से बच्चों ने स्वीकार किया सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति के संकल्प

-बच्चों ने दी अपनी कलात्मक प्रस्तुति, प्राप्त किया मंगल आशीर्वाद

-अष्टदिवसीय प्रेक्षाध्यान शिविर भी हुआ सुसम्पन्न

वेसु,सूरत।गुजरात राज्य के औद्योगिक शहर सूरत में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, अहिंसा यात्रा प्रणेता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी का चतुर्मास अब भले ही पूर्णता की ओर अग्रसर हो रहा है, किन्तु सूरतवासियों की भक्तिभावना और मानों प्रबलता को प्राप्त हो रही है। प्रतिदिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु सूर्योदय से पूर्व ही अपने आराध्य की निकट सन्निधि में उपस्थित होकर आध्यात्मिक लाभ प्राप्त करते हैं, जो क्रम देर रात तक चलता रहता है। साथ ही देश के विभिन्न हिस्सों से संघबद्ध रूप में अभी भी दर्शनार्थियों के आने का तांता लगा हुआ है। वर्तमान में पूरे विश्व में शक्ति की आराधना का महापर्व नवरात्र प्रारम्भ तो आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में आध्यात्मिक अनुष्ठान का क्रम गतिमान है। 

इस क्रम में सोमवार को भी युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी महावीर समवरण में उपस्थित भक्तिमान श्रद्धालु जनता को अपनी अमृतवाणी का रसपान कराने से पूर्व आध्यात्मिक अनुष्ठान से जोड़ा, जो क्रम लगभग आधे घंटे तक चला। तदुपरान्त अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समुपस्थित जनता को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि आयारो आगम में बताया गया है कि तुच्छ कौन होता है? जो नीच, हल्का अथवा जिसमें कमी होती है, वह तुच्छ होता है। जिस गृहस्थ के पास धन का अभाव होता है, वह तुच्छ हो सकता है तो दूसरी ओर जिस साधु में साधना की कमी होती है, वह तुच्छ हो सकता है। जो तुच्छ होता है, वह बोलने में भी ग्लानि का अनुभव करता है। तीर्थंकरों की आज्ञा का पालन नहीं करने वाला साधु तुच्छता की श्रेणी में आ जाता है। आचार का पालन करने वाले साधु की वाणी में भी मानों साधना मुखर होती है। ज्ञानी और साधक होना बहुत अच्छी बात होती है। 

इसके लिए यहां प्रेरणा दी गयी कि जीवन में सम्यक् ज्ञान के साथ सम्यक् आचार भी हो तो विशेष बात हो सकती है। ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप रूपी चतुरंगी मार्ग है, जिसे तीर्थंकरों ने प्राप्त किया है। ज्ञान से जानता है, दर्शन से श्रद्धा करता है, चारित्र से कर्मों का निग्रह करता है और तप से विशोधि करता है। सम्यक् ज्ञान, सम्यक् दर्शन, सम्यक् चारित्र मोक्ष का मार्ग है। 

अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के अंतिम दिन उपस्थित जनता को प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि हमारे गुरुदेव आचार्यश्री तुलसी ने अणुव्रत आन्दोलन का शुभारम्भ किया था। उसका पचहत्तरवां वर्ष भी मना लिया गया है। आज अंतिम दिन जीवन विज्ञान दिवस के समायोजित है। यह शिक्षा जगत के लिए है। शिक्षा में ज्ञान बढे तो यह तो अच्छी बात होती ही है, इसके शिक्षा संस्कारों से युक्त हो तो बहुत ही सुन्दर बात हो सकती है। जीवन कैसे जीना, श्वास कैसे लेना, चलना, बोलना, बैठना, व्यवहार करना आदि सभी में कलात्मक रूप में हो। विद्यार्थियों में भाव और विचार अच्छे हों, इसका प्रयास हो। जीवन सादगी और संयम से युक्त हो। सद्विचार और सदाचार जीवन में आ गया तो जीवन का विज्ञान जीवन में आ सकता है। आचार्यश्री ने समुपस्थित विद्यार्थियों को सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति की प्रेरणा देते हुए इनके संकल्प भी स्वीकार कराई। आचार्यश्री ने विद्यार्थियों को महाप्राण ध्वनि का प्रयोग कराया। आचार्यश्री ने समुपस्थित मुनि भव्यकीर्तिसागरजी को साधना का अच्छा क्रम चलाने की प्रेरणा प्रदान की। 

आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में चल रहे प्रेक्षाध्यान शिविर के समापन कार्यक्रम भी समायोजित हुआ। इसमें श्री सुनील गुलगुलिया, श्रीमती श्वेता पीपाड़ा व श्रीमती रेणु नाहटा ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने पावन आशीर्वाद प्रदान किया। 

जीवन विज्ञान दिवस के संदर्भ में उपस्थित विद्यार्थियों जीवन विज्ञान गीत का संगान किया। श्री संजय बोथरा ने अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के सातदिवसीय कार्यक्रम की संक्षिप्त रिपोर्ट प्रस्तुत किया। अणुव्रत समिति-सूरत के अध्यक्ष श्री विमल लोढ़ा ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। भगवान महावीर इण्टरनेशनल स्कूल के विद्यार्थियों ने अपनी विभिन्न प्रस्तुतियां दीं। भगवान महावीर युनिवर्सिटि के प्रेसिडेंट श्री संजय जैन तथा अणुव्रत विश्व भारती सोसायटी के अध्यक्ष श्री अविनाश नाहर ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। 

 

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