-संसार में रहते हुए भी अनासक्त रहने की आचार्यश्री से दी पावन प्रेरणा
-कालूयशोविलास : माणकगणी के महाप्रयाण के बाद संतों के चिंतन से सातवें आचार्य बने डालगणी
-पूज्य सन्निधि में सपरिवार पहुंचे पीएनबी राजस्थान के महाप्रबन्धक
-प्रवचन पण्डाल में श्रीमुख से अमृतवर्षा तो पण्डाल के बाहर जलवर्षा से छापरवासी हुए निहाल
छापर, चूरू (राजस्थान)।पिछले एक सप्ताह से पश्चिमी भारत में विशेष रूप से सक्रिय मानूसन ने लोगों को तीव्र गर्मी और सूर्य के आतप से मानों पूर्ण राहत दिला दी है। इस क्रम में शनिवार को छापर में प्रातः आरम्भ हुई वर्षा दोपहर बाद होती रही। वर्षा बंद होने के बाद भी बादलों के छाए रहने से पूरे दिन सूर्य अदृश्य बना रहा, जिससे मौसम भी सुहावना बना रहा। सुबह से हो रही बरसात के बाद भी प्रवचन पण्डाल में उपस्थित श्रद्धालुओं को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, मानवता के मसीहा, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने नित्य की भांति श्रीमुख से पावन प्रेरणा प्रदान की तो मानों ऐसा लग रहा था कि प्रवचन पण्डाल में श्रीमुख से अमृतवर्षा हो रही थी जो लोगों को आंतरिक शांति प्रदान कर रही थी, वहीं पंडाल के बाहर हो रही जलवर्षा से लोगों को बाहरी तपन से शांति प्राप्त हो रही थी।
शनिवार को प्रातः से हो रही वर्षा से मौसम सुहावना बना हुआ था। बाहर हो रही वर्षा के बावजूद भी प्रतिदिन की भांति आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित श्रद्धालुओं को भगवती सूत्र के माध्यम से पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि क्या जीव अन्तक्रिया करता है तो शास्त्रकार ने बताया कि कोई जीव अंतक्रिया करता है और कोई जीव नहीं भी करता है। अंतक्रिया सभी दुःखों से मुक्त कराने वाली होती है। कर्म क्षय की अंतिम क्रिया होती है। संसार में दो प्रकार के जीव हैं। पहले वे जो कभी अंतक्रिया कर मोक्ष को प्राप्त करेंगे और मोक्ष में जाएंगे ही नहीं। सर्वदुःख से मुक्ति ही मोक्ष की प्राप्ति है।
संसार में प्राणियों को दुःख से डर लगता है। आदमी दुःख से बचने का भी प्रयास करता है। जब तक आदमी के भीतर कषाय, तृष्णा और विकार होता है, आदमी को दुःख से मुक्ति नहीं मिल सकती है। ये ही तत्त्व आदमी के दुःख का कारण बनते हैं। आदमी को संसार में रहते हुए भी संसार से अनासक्त रहने का प्रयास करना चाहिए। जिस प्रकार कमल पानी में रहते हुए पानी से निरलेप रहता है, उसकी प्रकार आदमी संसार में रहते हुए अनासक्त रहने का प्रयास करे। गृहस्थावस्था में प्रारम्भजा और प्रतिरक्षात्मकी हिंसा से बचाव न भी हो तो आदमी को यह प्रयास करना चाहिए वह कभी संकल्पजा हिंसा में न जाए। गृहस्थ जीवन में रहते हुए भी अपनी आत्मा को निर्मल बनाने का प्रयास हो तो संभवतः कभी दुःख से मुक्ति अर्थात् मोक्ष की प्राप्ति भी हो सकती है।
आचार्यश्री ने कालूयशोविलास का मनहारी वर्णन करते हुए कहा कि आचार्यश्री माणकगणी के महाप्रयाण के उपरान्त संतों ने चिंतन कर तेरापंथ धर्मसंघ के सातवें आचार्य के रूप में डालगणी के नाम को आगे किया, इस प्रकार तेरापंथ के सातवें आचार्य डालगणी हुए।
पंजाब नेशनल बैंक के राजस्थान राज्य के महाप्रबन्धक श्री आरके वाजपेयी ने कहा कि मेरा बड़ा सौभाग्य है जो मुझे सपरिवार आरचार्यश्री के दर्शन करने और मंगल प्रवचन को सुनने का सुअवसर मिला। आपके प्रवचन जीवन को नई दिशा देने वाले हैं। आचार्यश्री ने उन्हें मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। तेरापंथ युवक परिषद-छापर के तत्त्वावधान में आचार्यश्री के भीलवाड़ा चतुर्मास प्रवेश लेकर छापर चतुर्मास प्रवेश तक छापरवासियों ने कुल 1163 उपवास किए। इसके संदर्भ में तेरापंथ युवक परिषद-छापर के कार्यकर्ताओं व चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के पदाधिकारियों ने आचार्यश्री के समक्ष उपवास करने वालों के नामों से युक्त एक कृति समर्पित की तो आचार्यश्री ने उन्हें पावन प्रेरणा व मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। इस अवसर पर इस उपक्रम के संयोजक श्री मुकेश नाहटा ने इस संदर्भ में अपनी अवगति प्रस्तुत की।