सूरत।पूज्य खरतरगच्छाधिपति गुरुदेव श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म. ने सुधर्म सभा प्रवचन मंडप में ओसवाल दिवस पर विशाल धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि आचार्य रत्नप्रभसूरि ने आज से 1200 से 1500 वर्ष पहले ओसियां गच्छ तीर्थ पर ओसवाल वंश की स्थापना की थी।
बाद में दादा गुरूदेव श्री जिनदत्तसूरि आदि दादा गुरुदेवों ने ओसवाल समाज की अभिवृद्धि के लिये प्रचंड पुरूषार्थ किया। उन्होंने कच्छ से लेकर सिन्ध देश तक अखण्ड हिन्दुस्तान में प्रचार का ऐसा महान् कार्य किया कि लाखों परिवारों को परमात्मा के अनुयायी बनाकर विभिन्न गोत्र प्रदान किये।
उन्होंने कहा- उस समय यदि दादा गुरुदेव की हस्ती न होती तो आज लाखों की संख्या में दिखाई दे रही जैनों की बस्ती न होती। उन महान् दादा गुरुदेवों की कृपा का ही परिणाम है कि आज लाखों परिवार वीतराग परमात्मा के शासन में धर्म की आराधना कर रहे हैं। यदि उन्होंने हमें परमात्मा का धर्म नहीं दिया होता तो पता नहीं हमारी क्या दशा होती।
उन्होंने कहा- परमात्मा महावीर के शासन में जाति को कोई स्थान नहीं है। परमात्मा महावीर स्वयं क्षत्रिय थे, उनके ग्यारह गणधर ब्राह्मण जाति के थे। जबकि धन्ना और शालिभद्र मुनि वैश्य जाति से थे और हरिकेशी चित्तसंभूत आदि मुनि शूद्र जाति से आये थे। सभी जातियों के मुनि एक साथ रहते थे, आहार ग्रहण करते थे।
उन्होंने कहा- जिनशासन सबके लिये हैं। जिस व्यक्ति के हृदय में अहिंसा,अनेकान्त और अपरिग्रह है। वह परमात्मा महावीर का अनुयायी है।
ओसवाल समाज की चर्चा करते हुए कहा- ओसवाल समाज भारत का एक गौरवशाली समाज है। ओसवाल समाज ने हर जगह अपनी भूमिका निभाई है। जीवदया का कार्य हो, चाहे भूकंप पीडित क्षेत्रों में सहयोग का अस्पताल बनाना हो या शिक्षा केन्द्र हर जगह ओसवाल समाज ने बढ चढ कर अपना योगदान अर्पण किया है।
उन्होंने कहा- वही समाज प्रगति करता है,जो समाज एक परिवार की तरह जीता है। जिस प्रकार एक पिता अपने पुत्र को सहयोग देकर उस पर एहसान नहीं करता अपितु अपना कर्त्तव्य निभाता है। उसी प्रकार समाज को चाहिये कि अपने लोगों के सहयोग में पूरी तरह से कर्त्तव्य बुद्धि से आगे आये। जो समाज परस्पर एक दूसरे के सुख में सुखी और दुख में दुखी होता है] वही समाज प्रगति करता है।
उन्होंने दो सूत्र देकर कहा- सहयोग और अनुमोदना के सूत्र जिस समाज में प्रचलित हो, वह प्रगति के पथ पर तीव्र गति से बढता है। एक दूसरे का सहयोग करना और एक दूसरे के अच्छे कार्यों की अनुमोदना करना,प्रशंसा करना। हम दूसरों की प्रशंसा नहीं अपितु निंदा करते हैं। यही निंदा एक दूसरे को अलग करती है। दूर ले जाती है। वह समाज छिन्न भिन्न हो जाता है। बिखराव को प्राप्त करता है।
उन्होंने जगडूशाह, सेठ मोतीशा, खेमादेदाणी की कथाऐं सुनाकर पूर्वजों के इतिहास की झलक उपस्थित की। उन्होंने कहा- हमें अपने अतीत के महिमा मय इतिहास से प्रेरणा लेनी है। और वर्तमान को सजाना व संवारना है ताकि सुनहरे भविष्य का निर्माण हो सके।
उन्होंने कहा- आज हमारे समाज के सामने प्रश्न चिन्ह खडा है। हम संप्रदायों में बंट गये हैं। खरतरगच्छ,तपागच्छ अचलगच्छ तीन थुई,चार थुई, दिगम्बर, स्थानकवासी, तेरापंथी पता नहीं कितने भागों में हमारा विभाजन हो गया है। परम्पराऐं भले हमारी अलग है, पर हम सभी परमात्मा महावीर के अनुयायी हैं।यह विवेक हमारे ध्यान में हर समय रहना चाहिये।
संघ अध्यक्ष ओमप्रकाश मंडोवरा ने बताया कि गुरुदेवश्री की निश्रा में मासक्षमण, सिद्धितप,गौतम गणधर तप आदि विविध तपस्या चल रही है। साथ ही पूज्यश्री के दर्शन करने के लिये बाहर से आगन्तुकों का लगातार आगमन जारी है।