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अहिंसा, संयम व तप रूपी धर्म में रत रहे मानव : अध्यात्मवेत्ता आचार्यश्री महाश्रमण

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-बीड प्रवास का दूसरा दिन, दर्शन व मंगल प्रवचन में उमड़े श्रद्धालु

-मुख्यमुनिश्री व साध्वीवर्याजी ने भी बीडवासियों को किया उद्बोधित 

-चार कि.मी. का विहार कर आचार्यश्री पधारे मां वैष्णव पैलेस 

-सकल जैन समाज के श्रद्धालुओं ने दी अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति 

 शनिवार,बीड।जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना का कुशल नेतृत्व करते हुए महाराष्ट्र की धरा पर गतिमान हैं। मई महीने में महाराष्ट्र की सीमा में प्रवेश करने के उपरान्त से अभी तक आचार्यश्री महाराष्ट्र के ही विभिन्न क्षेत्रों में यात्रा प्रवास कर रहे हैं। महाराष्ट्र की जनता भी मानवता के मसीहा से मानवीय गुणों को ग्रहण कर अपने जीवन का कल्याण कर रही है। अपनी इस यात्रा के दौरान युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने महाराष्ट्र की जनता पर ऐसी कृपा बरसाई है कि जनता अपने आराध्य के गुणों का गान करते नहीं थक रही है। वर्ष 2023 का पंचमासिक चतुर्मास, वर्ष 2024 का मर्यादा महोत्सव, वर्ष 2024 की अक्षय तृतीया, जन्मोत्सव, पट्टोत्सव जैसे सभी महनीय कार्यक्रम महाराष्ट्र राज्य की सीमा में ही सम्पन्न हुए अथवा कुछ होने वाले हैं। भला ऐसे कृपालु आराध्य की अभिवंदना करते जनता कैसे अघा सकती है। 

महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी वर्तमान में बीड जिला मुख्यालय पर द्विदिवसीय प्रवास कर रहे हैं। प्रवास के दूसरे दिन युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी बीड के चंपावती हाईस्कूल से प्रातः की मंगल बेला में प्रस्थान किया। आज का विहार बीड मुख्यालय पर ही लगभग चार किलोमीटर का ही था, किन्तु श्रद्धाभावों को स्वीकार करने में आचार्यश्री के विहार में प्रायः लगने वाला समय उतना ही था। जन-जन को आशीष बांटते हुए आचार्यश्री बीड में ही स्थित मां वैष्णव पैलेस में पधारे। 

युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित जनता को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि जिस आदमी का मन सदैव धर्म में रमा रहता है, उसे देवता भी नमस्कार करते हैं। मनुष्य मनुष्य को नमस्कार करे, यह सामान्य बात, मनुष्य किसी देव को नमस्कार करे, यह भी विशेष बात नहीं, किन्तु जब कोई देव मनुष्य को नमस्कार करे तो बड़ी बात होती है। देवता उसे ही नमस्कार करते हैं, जिसका मन सदा धर्म में रमा रहता है। इससे धर्म की महिमा प्रतीत होती है कि धर्म कितना महत्त्वपूर्ण तत्त्व होता है। आदमी को ऐसे धर्म में रत रहने का प्रयास करना चाहिए। प्रश्न हो सकता है कि कौन-से धर्म में आदमी रमे, इस संदर्भ में प्रेरणा दी गई कि अहिंसा, संयम और तप रूपी धर्म में रत रहने का प्रयास करना चाहिए। 

अहिंसा धर्म की अनुपालना के आदमी के लिए आदमी को अपनी आत्मा के समान ही सभी प्राणियों को आत्मस्वरूप मानने का प्रयास करना चाहिए। सभी प्राणियों के प्रति दया, अनुकंपा की भावना रखने का प्रयास करना चाहिए। दुनिया में अनंत जीवात्मा हैं। संसारी जीव भी अनंत-अनंत होते हैं। आदमी-आदमी की हिंसा न करे और जितना संभव हो सके, भला एक चींटी की भी हिंसा क्यों हो। जहां हिंसा होती है, वहां दुःख पैदा होता है। हिंसा से दुःख पैदा होता है और जहां अहिंसा, दया, करुणा, अनुकंपा है, वहां सुख हो सकता है। आदमी सोचे कि जैसे मुझे सुख प्रिय है तो सभी जीवों को भी सुख की कामना होती है। आदमी को अभय का भाव रखने का प्रयास करना चाहिए। आदमी का डरना दुर्बलता और डराना भी गलत होता है। इसलिए आदमी न स्वयं डरे और न ही दूसरों को डराए। आदमी को यथासंभव अहिंसा की पालन करने का प्रयास करना चाहिए। हिंसा लोभ के कारण भी होती है तो आदमी को ज्यादा लोभ से भी बचने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को अहिंसा रूपी धर्म की आराधना करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को अहिंसा, संयम और तप की आराधना हो और इसकी भावना भी पुष्ट रहे। 

आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी व साध्वीवर्या सम्बुद्धयशाजी ने भी बीडवासियों को उद्बोधित किया। बीड से संबंधित मुनि लक्ष्यकुमारजी ने भी अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति दी। ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपने आराध्य के समक्ष अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी। तेरापंथी सभा-बीड के अध्यक्ष श्री नेमकरण समदड़िया, जैन समर्थ गच्छ के अध्यक्ष श्री विजयराजजी, दिगम्बर जैन समाज के अध्यक्ष श्री नरेन्द्र महाजन व श्री सुभाषजी ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। तेरापंथ महिला मण्डल, तेरापंथ युवक परिषद व जैन समाज की महिलाओं ने अपनी-अपनी गीत का संगान किया। तेरापंथ कन्या मण्डल ने भी अपनी प्रस्तुति दी। बीड की बहन-बेटियों ने भी गीत का संगान किया। अम्बाजोगाई तेरापंथ महिला मण्डल ने भी गीत का संगान किया। 

महाराष्ट्र सरकार के मंत्री श्री जयदत्त अन्ना क्षीरसागर ने भी आचार्यश्री के दर्शन कर आचार्यश्री से पावन आशीष प्राप्त करने के उपरान्त अपनी भावनाओं की भी अभिव्यक्ति दी।    

 

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