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जीवन अनित्य,क्षण मात्र भी न हो प्रमाद : महातपस्वी महाश्रमण

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महाड़ को आध्यात्मिकता से महाकाने को अध्यात्मवेत्ता महाश्रमण का मंगल पदार्पण

-महाड़वासियों का जगा भाग्य, अपने आराध्य का भव्य स्वागत जुलूस के साथ किया भावभीना अभिनन्दन

-दो दिवसीय प्रवास को आचार्यश्री पहुंचे श्री दशानेमा गुजराती वसतीगृह मण्डल

-महाड़वासियों ने अपने आराध्य की अभिवंदना दी भावनाओं की अभिव्यक्ति

-पूज्य सन्निधि में साध्वी सोमलताजी की स्मृतिसभा का हुआ आयोजन 

महाड़, रायगड।जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के इतिहास में नित नवीन अध्याय सृजित करने वाले, तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, अखण्ड परिव्राजक, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र की प्रथम यात्रा कर नवीन इतिहास का सृजन कर दिया। कोंकण का यह क्षेत्र जहां साधु-साध्वियों का पधारना भी बहुत कम ही होता है, ऐसे सुदूर को क्षेत्र को भी महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने इस क्षेत्र में प्रवासित श्रद्धालुओं पर विशेष कृपा करते यात्रा कर उनके जीवन को धन्य बना दिया। महातपस्वी के सुपावन चरणों का स्पर्श पाकर कोंकण की धरा भी पुलकित हो उठी। 

मुम्बई महानगर से बाहर निकलने के उपरान्त कोंकण क्षेत्र की यात्रा के लिए निरंतर गतिमान युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी धवल सेना का कुशल नेतृत्व करते हुए वहूर से महाड़ की ओर गतिमान हुए। महाड़ कोंकण की यात्रा का सबसे प्रमुख स्थान है, जहां श्रद्धा के घर स्थित हैं। आचार्यश्री के आगमन से महाड़ के न केवल तेरापंथ समाज के लोग, अपितु अन्य जैन एवं जैनेतर समाज के लोग भी उत्साह और उल्लास से ओतप्रोत नजर आ रहे थे। सभी मानवता के मसीहा के अभिनंदन को तत्पर दिखाई दे रहे थे। पूरे गांव में उत्सव-सा माहौल छाया हुआ था। महाड़ की जनता के लिए यह प्रथम और दुर्लभ अवसर था, जब तेरापंथ के किसी आचार्य का पावन पदार्पण हो रहा था। 

जैसे-जैसे आचार्यश्री महाश्रमणजी महाड़ से निकट होते जा रहे थे, वैसे-वैसे महाड़वासी श्रद्धालु जनता के श्रद्धा, आस्था, उत्साह और उल्लास का पारा भी चढ़ता जा रहा था। आचार्यश्री ने जैसे ही महाड़ की सीमा में प्रवेश किया, प्रतीक्षारत श्रद्धालुओं के जयघोष से पूरा वातावरण गुंजायमान हो उठा। बालक से लेकर वृद्ध तक अति उत्साह भरा हुआ था। सभी ऐसे महामानव के दर्शन का लाभ प्राप्त करना चाह रहे थे। उपस्थित जनता पर आशीष वृष्टि करते हुए भव्य स्वागत जुलूस के साथ आचार्यश्री महाड़ के बाहरी भाग में स्थित श्री दशानेमा गुजराती वसतीगृह मण्डल में पधारे। इस परिसर में ही आचार्यश्री का दो दिवसीय प्रवास निर्धारित है। 

इस भवन में ही बने बी.एस. बुटला सांस्कृतिक भवन में आयोजित मंगल प्रवचन में समुपस्थित महाड़ की जनता को महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी पावन प्रेरणा प्रदान करते कहा कि दुनिया में नित्यता भी है और अनित्यता भी है। धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, जीवास्तिकाय और आकाशास्तिकाय निय हैं। इसी प्रकार आदमी की आत्मा भी नित्य है। शरीर में परिवर्तन हो सकता है, क्योंकि शरीर एक पर्याय है। उसमें परिवर्तन हो सकता है, किन्तु आत्मा में कोई परिवर्तन नहीं हो सकता। शरीर और आत्मा दोनों अलग-अलग है। यह जीवन पान के पके हुए पत्ते के समान है। यह कब समाप्त हो जाएगा, किसी को पता नहीं, इसलिए शास्त्र में प्रेरणा दी गई कि आदमी को क्षण मात्र भी प्रमाद से बचने का प्रयास करना चाहिए। इसलिए इस अनित्य जीवन में आदमी को हर क्षण प्रमाद से बचकर जागरूक रहने का प्रयास करना चाहिए। 

मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने चतुर्दशी के संदर्भ में हाजरी का वाचन किया। तदुपरान्त उपस्थित चारित्रात्माओं ने अपने स्थान पर खड़े होकर लेखपत्र का वाचन किया। आचार्यश्री की मंगल सन्निघि में आठ मार्च को देवलोकगमन करने वाली साध्वी सोमलताजी की स्मृतिसभा का आयोजन हुआ। जिसमें साध्वीप्रमुखाजी, मुख्यमुनिश्री व साध्वी मैत्रीयशाजी ने उनकी आत्मा के प्रति आध्यात्मिक मंगलकामना की। साध्वीवृंद ने साध्वी सोमलताजी की स्मृति में गीत का संगान किया। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने साध्वी सोमलताजी का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत करते हुए उनकी आत्मा के प्रति आध्यात्मिक मंगलकामना करते हुए उनकी आत्मा को निरंतर उन्नत गति करने की कामना की। आचार्यश्री ने इस संदर्भ में चार लोगस्स का ध्यान भी कराया। मुम्बई चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री मदनलाल तातेड़ व श्री मनोहर गोखरू ने भी अपनी भावना व्यक्त की। 

आचार्यश्री ने अणुव्रत गीत का आंशिक संगान किया। इसके उपरान्त महाड़वासियों ने अपने आराध्य के प्रति अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति का क्रम रहा। इसमें सर्वप्रथम साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने भी जनता को उद्बोधित किया। श्री लादूलाल गांधी, श्री पवन देसरला व श्री अर्हम माण्डोत ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। स्थानीय तेरापंथ महिला मण्डल, ज्येष्ठ श्रावक संघ व जैन समाज युवक मण्डल ने पृथक्-पृथक् स्वागत गीत का संगान किया। ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी। 

एकबार पुनः साध्वी सोमलताजी की स्मृतिसभा के अंतर्गत ही उनके संसारक्षीय भतीजा श्री महेन्द्र बैद व दादर सभा के अध्यक्ष श्री गणपत मारू ने अपनी विनयांजलि अर्पित की। दादर तेरापंथ महिला मण्डल ने भी उनकी स्मृति में गीत का संगान किया। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने पुनः उनकी आत्मा के प्रति आध्यात्मिक मंगलकामना की। 

 

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