आचार्य भिक्षु के जीवन से चरित्र निर्माण की दी प्रेरणा
माधावरम्, चेन्नई : मुनि श्री सुधाकर के सान्निध्य में जय समवसरण, जैन तेरापंथ नगर, माधावरम् में आचार्य भिक्षु के 297वें जन्मोत्सव, बोधी दिवस और चातुर्मासिक चतुर्दशी के कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
अपने आराध्य, तेरापंथ के आध्यप्रवर्तक को श्रद्धा से स्मरण करते हुए मुनि सुधाकर ने कहा कि आचार्य श्री भिक्षु का जीवन आदर्श परायण था। वे अहिंसा, संयम और तपस्या की त्रिवेणी में हर समय, पूर्ण जागरूकता से स्नान करते थे। *आत्मबल और पुरुषार्थ के सजीव उदाहरण थे।* हमें आचार्य श्री भिक्षु जैसे महापुरुषों के आदर्शों का श्रद्धा से अनुसरण करना चाहिये। तभी हम उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजली अर्पित कर सकते है। *आचार्य श्री भिक्षु आत्मार्थी और सत्य शोधक थे।* वे परम्परा से अधिक सत्य के उपासक थे। वे आध्यात्मिक दार्शनिक थे। उनका *अध्यात्म-दर्शन वीतरागता की साधना पर केन्द्रित है।* किसी सम्प्रदाय का प्रवर्तन करना उनका लक्ष्य नहीं था। उनके तपः पूत चरण आगे बढ़ते गये और पगदड़ी रुपी मार्ग राजमार्ग बनता गया।
मुनि श्री ने विशेष प्रेरणा देते हुए कहा कि आज समाज में भक्तिवाद बहुत बढ़ रहा है। उसके साथ जीवन शैली में सुधार होना जरूरी है। *धार्मिक पर्वो और त्योहारों से सबको चरित्र-निर्माण की प्रेरणा लेना चाहिये।*
मुनिश्री ने चतुर्दशी पर हाजरी वाचन के साथ चातुर्मासकाल में संयम, त्याग, आराधना से आत्मजागरण की प्रेरणा दी।
मुनि नरेशकुमार ने कहा आचार्य भिक्षु का व्यक्तित्व विराट एवं विशाल था। उनका जीवन अहिंसा की प्रयोगशाला था। त्याग, संयम और वैराग्य का मूर्त रूप था। श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथ माधावरम् ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी घीसूलाल बोहरा ने आचार्य भिक्षु के दर्शन पर विचार रखें और बताया कि गुरु पूर्णिमा के अवसर पर मुनिश्री का आचार्य भिक्षु की सफलता का रहस्य व नवीन गाथा पर विशेष प्रवचन होगा।