– सोमैया कॉलेज के विद्यार्थियों को शांतिदूत ने दी नशामुक्ति की प्रेरणा
– केंद्रीय मंत्री श्रीपाद नाइक पहुंचे अणुव्रत अनुशास्ता के दर्शनार्थ
शुक्रवार, घाटकोपर (पूर्व),मुम्बई। अपने मार्मिक प्रवचनों द्वारा जनसमुदाय को सद्ज्ञान रूपी प्रकाश से प्रकाशित करने वाले संत शिरोमणि आचार्य श्री महाश्रमण जी का पांच दिवसीय घाटकोपर प्रवास श्रद्धालुओं के लिए उत्सव रूप में उल्लासमय बना हुआ है। प्रातः चार बजे से देर रात तक दर्शन सेवा हेतु श्रावक समाज का तांता लगा हुआ है। प्रातः आचार्य श्री के सान्निध्य में सोमैया कॉलेज में स्टूडेंट्स के मध्य विशेष कार्यक्रम की भी समायोजन हुई। इस अवसर पर स्टूडेंट्स ने अणुव्रत अनुशास्ता आचार्य श्री महाश्रमण से सद्भावना, नैतिकता एवं नशामुक्ति के संकल्पों को स्वीकार किया। मध्यान्ह में केंद्रीय पर्यटन राज्य मंत्री श्रीपाद नाइक ने आचार्य श्री के दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त किया। इस दौरान चर्चा वार्ता का भी क्रम रहा।
मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में धर्म देशना देते हुए आचार्य श्री ने कहा – मनुष्य के भीतर में अनेक प्रकार की वृत्तियां है जिनमें से एक वृत्ति अहंकार की भी है। व्यक्ति अधिकार पाने का प्रयास करता है, दूसरों को अपने अधीन करने का प्रयास करता है, किंतु वो पहले यह देखे की स्वयं किसी के अधिकार में रह सकता है या नहीं। को स्वयं किसी के अनुशासन में नहीं रह सकता वह दूसरों को अनुशासन में कैसे रखेगा। निज पर शासन फिर अनुशासन होना चाहिए। घमंड, अहंकार यह अठारह पापों में से एक पाप है। कई रूपों में अहंकार देखने को मिल सकता है। किसी को अपने रूप का, तो किसी को अपने जाति का घमंड हो सकता है। किसी में अपने ज्ञान, पद, ऐश्वर्य, सत्ता का घमंड देखने को मिल सकता है।
गुरुदेव ने आगे कहा कि व्यक्ति अगर सक्षम है तो उसे अपनी शक्ति का नियोजन सेवा के लिए, किसी के भले के लिए करना चाहिए। सत्ता, अधिकार यह सेवा करने के लिए मिलते है। व्यक्ति अपनी शक्तियों का सदुपयोग करे। मैं मैं का भाव नहीं होना चाहिए कि मैंने यह किया मैंने वह किया। विनम्रता व्यक्ति को आगे बढ़ाती है। लघुता से प्रभुता को प्राप्त किया जा सकता है। अहंकार विपत्ति का कारण होता है। इस अहंकार रूपी वृत्ति को दूर कर व्यक्ति अपनी शक्ति का सम्यक नियोजन करे। विनम्रता के द्वारा अहंकार को दूर करे।
कार्यक्रम में कच्छ समाज से जुड़ी महिलाओं ने गीतिका का संगान किया। सुश्री निमिका सियाल ने भावाभिव्यक्ति दी।