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अध्यात्म की शरण में प्राप्त हो सकती है शांति : महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण

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घाटकोपर को पावन बनाने पधारे तेरापंथ सरताज 

-घाटकोपर में पांच दिनों तक महातपस्वी बहाएंगे ज्ञान की गंगा 

-भव्य स्वागत जुलूस के साथ श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ पहुंचे शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण

-बौद्ध धर्मगुरु राहुलबोधिजी ने किया महातपस्वी का अभिनंदन

बुधवार, घाटकोपर (पूर्व),मुम्बई। माया नगरी मुम्बई के विभिन्न उपनगरों की जनता को अपने पावन प्रवास व मंगल प्रवचन से लाभान्वित करते, जन-जन में सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति की अलख जागते हुए जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना संग बुधवार को मुम्बई महानगर के घाटकोपर में पधारे। अपने आराध्य को अपने क्षेत्र में पाकर घाटकोपरवासियों का श्रद्धा, उत्साह व उमंग का मानों पारावार नहीं था। उनकी आतंरिक प्रसन्नता उनकी प्रसन्न मुखाकृति तथा उनके द्वारा किए जाने वाले बुलंद जयघोष में स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रहा था। स्थान-स्थान पर किशोरों-किशोरियों व ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों द्वारा लगाई गईं झाकियां लोगों का मन मोह रही थीं। महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी के शुभागमन से घाटकोपर का वातावरण पावन बना हुआ था। सभी श्रद्धालुओं व मार्ग के खड़े दर्शनार्थियों पर आशीष वृष्टि करते हुए युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के संग श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ के भवन में पधारे। यहीं आचार्यश्री का पंचदिवसीय प्रवास निर्धारित है। 

बुधवार को प्रातःकाल के मंगल प्रभात में शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने गोवंडी से मंगल प्रस्थान किया। अपने आराध्य के स्वागत को उत्साही घाटकोपरवासी विहार से पूर्व ही उपस्थित थे। एक ओर आधुनिकता और भौतिकता की प्राप्ति के लिए ट्रेन, बस, आटो, टैक्सी अथवा निजी वाहन से भागती जनता तो दूसरी ओर धर्म, अध्यात्म व मानवता का शंखनाद करने वाले महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी मुम्बई के मार्गों पर गतिमान थे तो अनजान जनता भी ऐसे राष्ट्रसंत को अपलक निहार अपने नयनों को धन्य बना रही थी। आचार्यश्री भी दर्शनार्थियों पर अपने दोनों करकमलों से आशीष की वृष्टि कर रहे थे। दो घंटे के विहार के उपरान्त आचार्यश्री भव्य स्वागत जुलूस के साथ घाटकोपर के पंचदिवसीय प्रवास हेतु निर्धारित स्थानक में पधारे। 

वहां से लगभग एक किलोमीटर स्थित स्थानीय विधायक श्री पराग भाई शाह के स्थान में बने प्रवचन पण्डाल में युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी पधारे तो वहां आचार्यश्री के अभिवादन में बौद्ध धर्मगुरु राहुलबोधिजी भी उपस्थित दो मतों के धर्मगुरुओं का मिलन लोगों को आह्लादित करने वाला था। उपस्थित जनता को महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि आदमी के भीतर अनेक वृत्तियां होती हैं। अच्छी वृत्ति होती है तो उसी आदमी के भीतर बुरी वृत्ति भी होती है। ये वृत्तियां कषायों के कारण बुराई से भावित हो जाती हैं। उनमें एक बुरी वृत्ति लोभ की होती है। जैन धर्म में चार प्रकार के कषाय बताए गए हैं-क्रोध, मान, माया और लोभ। कहा जाता है कि आदमी की इच्छाएं आकाश के समान अंतहीन हैं। अगर उसे सोने का पहाड़ भी प्राप्त हो जाए तो लोभ की वृत्ति बनी रहेगी। इस लोभ की वृत्ति को दूर करने के लिए आदमी को संतोष रूपी सद्गुण का विकास करने का प्रयास करना चाहिए। इसके लिए आदमी को भौतिकता के माहौल से निकल अध्यात्म के सिद्धांतों के आसपास रहने का प्रयास करना चाहिए। अध्यात्म के शरण में रहने से शांति की प्राप्ति हो सकती है। 

आचार्यश्री ने स्थानीय जनता को शुभाशीष प्रदान करते हुए कहा कि यहां की जनता में अच्छी धार्मिक भावना बनी रहे। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने भी उपस्थित जनता को सम्बोधित किया। बौद्ध धर्मगुरु श्री राहुलबोधिजी ने अपने अभिभाषण में कहा कि मैं घाटकोपर में आपका हार्दिक स्वागत करता हूं। आप भ्रमण करते हुए कितना जनकल्याण का कार्य कर रहे हैं। आप साक्षात त्याग की मूर्ति हैं। आप लोगों को सुख-शांति का मार्ग दिखा रहे हैं। 

अपने स्थान में आचार्यश्री के मंगल शुभागमन से आह्लादित विधायक श्री पराग भाई शाह ने अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त कर पावन आशीर्वाद प्राप्त किया। स्थानीय तेरापंथी सभा के अध्यक्ष श्री शांतिलाल बाफना, स्वागताध्यक्ष श्रीमती कांता तातेड़ व श्रीमती शर्मिला तातेड़, स्थानकवासी संघ के अध्यक्ष श्री विपीन भाई व श्री मुकेश भाई ने भी अपने उल्लसित भावनाओं को अभिव्यक्ति दी। तेरापंथ समाज-घाटकोपर ने स्वागत गीत का संगान किया।   

 

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