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सर्वदुःखमुक्ति के लिए आत्मा को बनाएं निर्मल : शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण

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सांताक्रूज में राष्ट्रीय संत आचार्यश्री महाश्रमण का मंगल पदार्पण  

-सांताक्रूज वासियों ने अपने आराध्य का किया भावभीना स्वागत

-एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय परिसर में चारदिवसीय प्रवास हेतु पधारे शांतिदूत

मुम्बई (महाराष्ट्र)।मायानगरी मुम्बई को अपने चरणरज से पावन बना रहे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता, महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने शुक्रवार को विलेपार्ले के अर्थव आराध्यम से प्रातः की मंगल बेला में गतिमान हुए। विलेपार्लेवासी अपने कृतज्ञभावों को अर्पित कर रहे थे। दूसरी ओर सांताक्रूज की ओर गतिमान ज्योतिचरण के स्वागत में उत्साहित श्रद्धालु भी अगवानी में पहुंच रहे थे। भौतिकता की भागती-दौड़ती दुनिया में दो सुकोमल कदमों के द्वारा कण-कण को पावन बनाने वाले शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी जन-जन पर आशीष बरसाते हुए गंतव्य की ओर गतिमान थे। मार्ग में अनेक स्थानों पर श्रद्धालुओं ने अपने-अपने घरों/व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के पास दर्शन कर पावन आशीर्वाद प्राप्त किया। लोगों को आशीर्वाद प्रदान करने, अनेक स्थानों पर पधारने के लिए कारण आचार्यश्री को निर्धारित प्रवास स्थल तक पधारने में करीब चार घंटे का समय लग गया। 

सांताक्रूजवासियों ने अपने क्षेत्र में आचार्यश्री के पावन पदार्पण से अत्यंत हर्षित नजर आ रहे थे। भव्य स्वागत जुलूस के साथ अपने आराध्य का अभिनंदन किया और श्रीचरणों का अनुगमन करते हुए सांताक्रूज के चारदिवसीय प्रवास हेतु एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय परिसर में स्थित ऊषा मित्तल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी पवन में पधारे। यहां आचार्यश्री का सांताक्रूज का चारदिवसीय प्रवास होगा। 

कुछ समय उपरान्त ही आचार्यश्री विश्वविद्यालय परिसर के प्ले ग्राउण्ड में बने तीर्थंकर समवसरण में पधारे। वहां उपस्थित श्रद्धालुजनों को अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि अध्यात्म जगत का सिद्धांत है कि आत्मा शाश्वत होती है। आत्मा हमेशा थी, है और रहेगी। कर्मों से युक्त आत्माएं इस जन्म-मरण के चक्र में परिभ्रमण कर रही हैं और सिद्धत्व को प्राप्त हो चुकी आत्माएं मोक्षश्री का वरण कर इस चक्रम से मुक्त हो गई हैं। आदमी को सर्वदुःखमुक्ति के लिए अपनी आत्मा को निर्मल बनाने का प्रयास करना चाहिए। निर्मल बनी आत्मा ही कभी मोक्षश्री का वरण भी कर सकती है। आत्मा को निर्मल बनाने के लिए सबसे पहला कार्य है-स्वाध्याय करना। स्वाध्याय करने से आत्मा के मल धूलते हैं और आत्मा निर्मलता को प्राप्त होती है। शास्त्रों से धर्मयुक्त बातों का ज्ञान, उस पर चिंतन तथा उसे याद करते रहने की प्रक्रिया स्वाध्याय के अंतर्गत की जाती है। इससे आत्मा निर्मल बन सकती है। दूसरा कार्य बताया गया- ध्यान करना। यह एक साधना का प्रयोग है। आज दुनिया में कितने-कितने योग साधना केन्द्र आदि खुले हुए हैं। जिस प्रकार शरीर में विशिष्ट स्थान शीर्ष का होता है, वृक्षों में मूल का होता है, उसी प्रकार साधु धर्म में ध्यान का स्थान है। तेरापंथ धर्मसंघ में प्रेक्षाध्यान नामक पद्धति चलती है। शरीर को स्थिर, वाणी को मौन व चित्त को एकाग्र करने का प्रयास करना चाहिए। सामायिक भी साधना का एक रूप है। इसके बाद आदमी को तपस्या करने का प्रयास करना चाहिए। चंचल मन को नियमित अभ्यास और वैराग्य भाव का विकास हो तो चित्त निर्मल बन सकता है। आचार्यश्री ने सांताक्रूजवासियों को मंगल आशीष भी प्रदान किया। 

जीवनशैली के साथ ध्यान जुड़ जाए। स्वाध्याय, तप, ध्यान आदि का अच्छा अभ्यास हो तो सर्वदुःखमुक्ति की बात सिद्ध हो सकती है। कार्यक्रम में साध्वीप्रमुखाजी ने भी उपस्थित जनता को प्रेरणा प्रदान की। प्रवचन स्थल से जुड़ी हुई श्रीमती उज्ज्वला रावत ने आचार्यश्री के दर्शन कर पावन आशीर्वाद प्राप्त किया। स्थानीय तेरापंथी सभाध्यक्ष श्री राजेन्द्र नौलखा ने भी अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति दी। 

 

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