IMG-LOGO
Share:

संयममूर्ति, तपोमूर्ति व साधनामूर्ति थे भगवान महावीर : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण

IMG

विलेपार्ले को पावन बनाने पधारे महातपस्वी महाश्रमण  

-अंधेरी में चारदिवसीय ज्ञान का उजाला फैला, गतिमान हुए ज्योतिचरण  

-आचार्यश्री ने मुनिश्री महेन्द्रकुमार स्वामी का किया स्मरण

-पूज्य सन्निधि में पहुंचे स्थानीय विधायक पराग अलवाणी 

अंधेरी, मुम्बई (महाराष्ट्र)।अंधेरी उपनगर में चार दिवसीय प्रवास के दौरान आध्यात्मिक उजाला फैलाने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अणुव्रत यात्रा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने गुरुवार को प्रवास स्थल से मंगल प्रस्थान किया। अंधेरीवासी अपने आराध्य के प्रति अपने कृतज्ञ भावों को अभिव्यक्त करने के उपस्थित थे तो उत्साही विलेपार्ले वासी भी अपने आराध्य की अगवानी में पहले ही पहुंच चुके थे।श्रद्धालु आचार्यश्री के दर्शन व मंगलपाठ से लाभन्वित हुए।सूर्योदय के कुछ समय बाद ही आचार्यश्री ने वहां मंगल प्रस्थान किया। आसमान में सूर्य संसार को अपनी रश्मियों से आलोकित कर रहा था तो अध्यात्म जगत के महासूर्य आचार्यश्री अपनी धार्मिक-आध्यात्मिक आभा से लोगों के आंतरिक अंधेरे को दूर कर रहे थे। मार्ग में अनेक स्थानों पर लोगों को अपने आराध्य के दर्शन करने व मंगलपाठ श्रवण का सौभाग्य प्राप्त हो रहा था। मुम्बई महानगर की उपनगरीय यात्रा में आचार्यश्री विलेपार्लें की ओर गतिमान थे। उत्साही श्रद्धालुओं के जयघोष के साथ आचार्यश्री विलेपार्ले (ई.)में स्थित अर्थव आराध्यम में पधारे। 

प्रवास स्थल से कुछ सौ मीटर की दूरी पर स्थित मंगल बिल्ड्स होम में आयोजित मंगल प्रवचन में युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित जनता को सम्बोधित करते हुए कहा कि आज मृगशर कृष्णा दशमी है। जैन धर्म की वर्तमान परंपरा के चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर की दीक्षा से जुड़ा हुआ है। आज के दिन उन्होंने गृहस्थ जीवन का त्याग कर साधुत्व की भूमिका पर आरोहण किया था। हमारी दुनिया में महापुरुष भी जन्म लेते हैं। भगवान महावीर इस दुनिया में मनुष्य के रूप में पैदा हुए थे। जब वे गर्भावस्था में थे तो माता को कष्ट न हो, इसके लिए अपना हलन-चलन रोका तो माता शोक संतप्त हो गईं। तब से उन्होंने यह निर्णय कर लिया कि मां-बाप के रहते साधु नहीं बनूंगा। तीस वर्ष तक गृहस्थावस्था में रहने बाद उन्होंने साधु का जीवन स्वीकार किया। जब उन्होंने दीक्षा स्वीकार की तो वह मृगशिर कृष्णा दशमी थी अर्थात आज का दिन था। साढे बारह वर्षों तक कठोर साधना कालमान रहा। तीर्थंकर बनने के बाद उन्होंने लगभग तीस वर्षों तक जनकल्याण किया। उनका कुल आयुष्य लगभग 72 वर्षों का रहा। वे परम जीवन जीने वाले थे। 

भगवान महावीर संयममूर्ति, तपोमूर्ति व साधनामूर्ति थे। आभ्यन्तर तप को पोषण देने के लिए बाह्य तप होता है। उन्होंने कितना-कितना प्रवचन किया। गौतम स्वामी के कितने प्रश्नों का उत्तर व समाधान प्रदान करते हुए उन्होंने जनोपकार का कार्य किया। उनसे हम सभी को प्रेरणा मिलती रहे। आचार्यश्री ने विलेपार्लें आगमन के संदर्भ में कहा कि आज यहां आना हुआ है। बहुश्रुत परिषद संयोजक, आगम मनीषी महेन्द्रकुमारजी स्वामी का यह अंतिम श्वास की भूमि है। आज मैं उनका स्मरण करता हूं। यहां के लोगों में खूब धार्मिक-आध्यात्मिक लाभ उठाते रहें। कार्यक्रम में साध्वीप्रमुखाजी ने भी उपस्थित जनता को उद्बोधित किया। 

इस संदर्भ में उनके साथ रहने वाले मुनि अभिजितकुमारजी, मुनि जागृतकुमारजी व मुनि सिद्धकुमारजी ने अपनी अभिव्यक्ति दी। स्थानीय विधायक श्री पराग अलवानी मेरा सौभाग्य है कि मुझे आचार्यश्री महाश्रमणजी के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आज से विधानसभा सत्र प्रारम्भ हुआ था, लेकिन आप पधार रहे थे तो मैं अपना यह क्षेत्र छोड़कर बाहर नहीं जा सका। आप संतों की प्रेरणा से ही हमें अच्छा  और सुसंस्कृत जीवन जीने की प्रेरणा मिलती है। आपका आशीर्वाद हम सभी पर सदैव बना रहे। आचार्यश्री ने उन्हें पावन आशीर्वाद प्रदान किया। ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी। स्वागताध्यक्ष श्री शांतिलाल कोठारी, स्थानीय तेयुप अध्यक्ष श्री अरविंद कोठारी, श्री मेघराज धाकड़ व डॉ. फाल्गुनी जावेरी ने अपनी भावपूर्ण अभिव्यक्ति दी। स्थानीय महिला मण्डल ने गीत का संगान किया। 

Leave a Comment

Latest Articles

विद्रोही आवाज़
hello विद्रोही आवाज़

Slot Gacor

Slot Gacor

Situs Slot Gacor

Situs Pulsa

Slot Deposit Pulsa Tanpa Potongan

Slot Gacor

Situs Slot Gacor

Situs Slot Gacor

Login Slot

Situs Slot Gacor