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साधना के द्वारा नर से नारायण बनने का हो प्रयास : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण

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-अत्याधुनिक उपकरणों का हो सदुपयोग, अत्यधिक प्रयोग से बचने को किया अभिप्रेरित  

-आचार्यश्री की प्रेरणा से उपस्थित जनता में एक महीने के लिए स्वीकार किया डिजीटल डिटॉक्स संकल्प 

साध्वी वर्या ने भी जनता को किया सम्बोधित  

-अणुव्रत डिजीटल डिटॉक्स कार्यक्रम में जुटे कई डॉक्टर्सों ने दी अपनी अभिव्यक्ति   

अंधेरी, मुम्बई (महाराष्ट्र)।अंधेरी प्रवास के दूसरे दिन तिलक उद्यान में बने ‘महाश्रमण समवसरण’ में उपस्थित जनता को तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता, अणुव्रत यात्रा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए कहा कि इस संसार में 84 लाख जीव योनियां बताई गयीं हैं। इनमें आत्मा निरंतर भ्रमण करती रहती है। धर्म का सिद्धांत कहता है कि आत्मा शाश्वत है और शरीर नश्वर है। आत्मा न कोई काट सकता है, न जला सकता है, न ही सूखा सकता है और न ही उसे कोई भिंगो सकता है। आत्मा शाश्वत है, अमर है और यह शरीर नश्वर और अस्थाई है। जन्म-मरण के सिद्धांत के अनुसार शरीर की मृत्यु के होने के बाद वहीं आत्मा अपने कृत कर्मों के आधार पर कभी नरक गति में कभी तीर्यंच गति में कभी मनुष्य गति और कभी देव गति में भी पैदा होती रहती है। कभी यह प्रश्न आए कि मैं कौन हूं तो उत्तर यह होना चाहिए कि मैं आत्मा हूं। शरीर साथ में है। आत्मा अलग और शरीर अलग है। इस शरीर में कभी शारीरिक बीमारी, कभी मानसिक बीमारी अथवा कभी भावात्मक बीमारियां भी हो सकती हैं। इन तीनों प्रकारों के कष्टों से मुक्ति के लिए धार्मिक-आध्यात्मिक साधना की जाती है और उसके माध्यम से आदमी समाधि और शांति की प्राप्ति हो सकती है। 

 

इन चौरासी लाख जीव योनियोें में मानव जीवन सबसे महत्त्वपूर्ण हैं। मानव और पशुओं में बहुत सारी सामनताएं भी हैं, किन्तु जैसी उच्च कोटि की साधना मनुष्य कर सकता है, वह अन्य कोई प्राणी नहीं कर सकता, इसलिए मानव जीवन सबसे महत्त्वपूर्ण है। इस मानव में उच्च साधना कर मनुष्य आत्मा से परमात्मा, नर से नारायण और जीव से शिव को प्राप्त कर सकता है। राग-द्वेष रूपी असत् संस्कारों का त्याग कर सद्संस्कारों के विकास का प्रयास करना चाहिए। 

 

आचार्यश्री ने अणुव्रत विश्व भारती द्वारा आयोजित डिजीटल डिजीटल डिटॉक्स कार्यक्रम के संदर्भ में कहा कि आज डिजीटल डिटॉक्स की बात हो रही है। मोबाइल आदि अत्याधुनिक उपकरणों से कितनी सुविधा कितना लाभ है। इसका उजला पक्ष भी है तो इसका अंधेर पक्ष भी है। इन अत्याधुनिक उपकरणों के अंधेर पक्ष को जानकर इन उपकरणों के सदुपयोग का विवेक रखने का प्रयास होना चाहिए। 

 

आचार्यश्री ने अपने उद्बोधन के दौरान उपस्थित गणमान्य लोगों व जनता से आह्वान किया कि आप सभी लोग एक महीने के लिए रात्रि बारह बजे से सुबह सात बजे तक अति आवश्यक कार्यवश या आए फोन को रिसिव करने के सिवाय मोबाइल फोन का उपयोग नहीं करेंगे, ऐसा संकल्प स्वीकार कर सकते हैं क्या? आचार्यश्री के ऐसे आह्वान पर उपस्थित सभी जनता से अपने स्थान पर खड़े होकर आचार्यश्री से ऐसा संकल्प स्वीकार किया। कार्यक्रम में साध्वीवर्या सम्बुद्धयशाजी ने उपस्थित जनता को उद्बोधित किया। 

 

अणुव्रत विश्व भारती सोसायटी द्वारा आयोजित डीजिटल डिटॉक्स कार्यक्रम के अंतर्गत श्री प्यारचंद मेहता व अणुविभा के सहमंत्री श्री मनोज सिंघवी ने अपनी अभिव्यक्ति दी। अणुव्रत की ओर से एक वीडियो की प्रस्तुति दी गई। इस संदर्भ में मुनि जागृतकुमारजी व मुनि अभिजीतकुमारजी ने भी अपनी अभिव्यक्ति दी। इस कार्यक्रम में विशेष रूप से उपस्थित कैंसर रोग विशेषज्ञ डॉ. सौरभ गोस्वामी, तारक मेहता का उल्टा चश्मा के प्रोड्यूसर व डायरेक्टर असित मोदी, भारत सरकार की प्लानिंग कमिशन की मेम्बर श्रीमती अर्चना जैन, मीरा-भायंदर की विधायक श्रीमती गीता जैन, साइकोलॉजिस्ट डॉ. रिक्की पोरवाल, डॉ. निष्ठा दलवानी, स्टेम सेल्स विशेषज्ञ डॉ. दिनेश कोठारी ने डिजीटल डिटॉक्स के संदर्भ में अपनी अभिव्यक्ति दी। अंधेरी सभाध्यक्ष श्री चैनरूप दूगड़ ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। सभी उपस्थित गणमान्यों ने आचार्यश्री के दर्शन कर पावन आशीर्वाद प्राप्त किया। 

 

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