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असंयम और प्रमाद से पर्यावरण हो सकता है दूषित : महातपस्वी महाश्रमण

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-प्रातःकाल मंगलपाठ के साथ मंगल प्रवचन का श्रवण कर आनंदित हुए श्रद्धालु 

-अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के अंतर्गत पर्यावरण विशुद्धि दिवस पर आचार्यश्री ने दी पावन प्रेरणा  

 घोड़बंदर रोड, मुम्बई।जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह में मनाया जा रहा है। इस सप्ताह के चतुर्थ दिन अर्थात् बुधवार को पर्यावरण विशुद्धि दिवस मनाया गया। महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने प्रातःकाल के बृहद् मंगलपाठ के साथ मुख्य प्रवचन कार्यक्रम समायोजित कर दिया। प्रातःकाल की मंगल बेला में मंगलाठ के मंगल प्रवचन श्रवण का लाभ उठाने के लिए सैंकड़ों की संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे। 

तीर्थंकर समवसरण में उपस्थित श्रद्धालुओं को महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन मंगल पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि इस सृष्टि में जीव जगत भी अजीव जगत भी है। दुनिया में या तो अजीव होते हैं या जीव होते हैं। जीवन में परस्पर सहयोग भी मिलता है। स्थिर होना है तो धर्मास्तिकाय, सोने, बैठने के लिए आकाश का अवगाहन होता है। काल व्यतीत होता तो काल भी सहयोग मिलता है। समय होता है तो आदमी कोई कार्य कर सकता है। समय के अनुसार ही आदमी अपनी चर्या निर्धारित करता है। पुद्गलों का भी जीवन में कितना सहयोग होता है। वायुकाय, अग्निकाय का भी जीवन में कितना सहयोग मिलता है। यदि हवा न मिले तो जीवन कितना संभव हो सकता है। इसी प्रकार अग्नि का सहयोग न मिले तो भोजन, आदि-आदि कार्यों को संपादित करना कठिन हो सकता है। 

पृथ्वी पर तीन रत्न बताए गए हैं- अन्न, जल और सुभाषित। अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह का आज चतुर्थ दिन है। पर्यावरण विशुद्धि की बात है। जैन आगमों में भी पर्यावरणीय चिंतन है। शास्त्रों में वृक्ष को काटने से मना गया है। भले ही यह बात अहिंसा के संदर्भ कहा गया है, किन्तु यह वाक्य पर्यावरण की सुरक्षा के लिए कितना महत्त्वपूर्ण हो सकता है। अहिंसा, संयम और तप मूलतः आत्मशुद्धि और उसका दूसरा संदर्भ पर्यावरण के संदर्भ में भी हो सकता है। अहिंसा, संयम और तप का प्रयास करे तो आदमी पर्यावरण को भी सुरक्षित कर सकता है। 

आदमी को पानी का संयम करने का प्रयास करना चाहिए। अनावश्यक पानी की बर्बादी से बचने का प्रयास करना चाहिए। इससे पानी का संयम और अपकाय के जीवों की हिंसा से भी बचाव हो सकता है। पृथ्वी को अनावश्यक खोदने का कार्य न हो। पृथ्वीकाय, अपकाय, वायुकाय, तेजस्काय और वनस्पतिकाय- ये पांच चीजें हैं, जिनको सुरक्षित करने से पर्यावरण की सुरक्षा हो सकती है। आदमी अपने असंयम और प्रमाद से पर्यावरण को दूषित होने से बचाने का प्रयास करे।    

 

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