-भगवती सूत्र आगाम के आधार पर महातपस्वी ने दी मंगल प्रेरण
-हाजरी का वाचन करते हुए चारित्रात्माओं को भी प्राप्त हुईं विविध प्रेरणाएं
घोड़बंदर रोड, मुम्बई (महाराष्ट्र)बुधवार को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के देदीप्यमान महासूर्य, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने तीर्थंकर समवसरण में भगवती सूत्र आगम के माध्यम से श्रावक-श्राविकाओं सहित चतुर्दशी के संदर्भ में उपस्थित चारित्रात्माओं को भी मंगल प्रेरणा प्रदान की। मानों चतुर्विध धर्मसंघ महासूर्य के आध्यात्मिक आलोक को प्राप्त कर ऊर्जावान महसूस कर रहा था।
यों तो आचार्यश्री महाश्रमणजी की अमृतवाणी का रसपान श्रावक-श्राविकाएं प्रतिदिन करते हैं, किन्तु तेरापंथ धर्मसंघ की मर्यादा-व्यवस्था के अंतर्गत माह की चतुर्दशी तिथि का बड़ा महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। इसलिए गुरुकुलवासी समस्त चारित्रात्माएं अपने आराध्य की मंगल सन्निधि में उपस्थित होते हैं। आचार्यश्री ने उन्हें हाजरी का वाचन करते हुए संघनिष्ठा की प्रेरणा प्रदान करते हैं। अध्यात्म जगत के महासूर्य से आध्यात्मिक आलोक प्राप्त कर चारित्रात्माएं अपने नियम और संकल्पों की प्रेरणा के दृढ़ संकल्पित होते हैं।
बुधवार को चतुर्दशी तिथि के कारण तीर्थंकर समवसरण के मंच के मध्य तेरापंथ के महासूर्य विराजमान हुए तो उनकी श्वेत रश्मियों की भांति एक ओर साध्वी समाज तो दूसरी ओ संत समाज नजर आ रहा था। सामने की ओर समणीवृन्द व श्रावक-श्राविकाओं की उपस्थिति तीर्थंकर समवसरण को वास्तविक रूप में चरितार्थ कर रही थी।
महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने भगवती सूत्र के आधार पर पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि प्रश्न किया गया कि मरण कितने प्रकार का होता है। पांच प्रकार के मरण का वर्णन प्राप्त होता है। प्राणी जन्म लेता है, जीवन जीता है और अंत में मृत्यु को प्राप्त करता है। गर्भाधान व जन्म को आदिकाल, जीवन जीने के क्रम को मध्य तथा मृत्यु को समापन काल मान लिया जाए। आदमी का जन्म कब और कहां होगा, यह निर्धारित नहीं होता और मृत्यु का भी निश्चित नहीं ज्ञात होता है तो आदमी को अपने जीवनकाल पर ध्यान देने का प्रयास करना चाहिए।
आदमी को अपने जीवन में संयम की सुरक्षा करने का प्रयास करना चाहिए। संयमयुक्त जीवन की रक्षा करने का तात्पर्य है अपनी आत्मा का रक्षा करना। चारित्रात्माओं को भी यत्नापूर्वक अपने संयम जीवन की सुरक्षा करने का प्रयास करना चाहिए। चारित्रात्माओं के जीवनकाल में सबसे बड़ा खतरा मोहनीय कर्म से होता है। वह एक ऐसा लुटेरा है जो संयम रत्न को लूट सकता है। इसलिए मोहनीय कर्म रूपी लुटेरे अपने संयम रूपी रत्न की सुरक्षा के प्रति जागरूक रहने का प्रयास करना चाहिए। संयम की सुरक्षा के लिए पांचों इन्द्रियों को सामहित करने और मन को संयमी बनाने का प्रयास होना चाहिए। आत्मा की रक्षा, व्यक्ति की रक्षा, परिवार की रक्षा का सतत् प्रयास होना चाहिए। अच्छा जीवन जीने के साथ ही आदमी अपने समय में मरण के बताए हुए पांच मार्गों में सबसे उत्तम मार्ग पंडित मरण का चयन करने तो और अच्छी बात हो सकती है। आध्यात्मिक स्तर की पूरी तैयारी हो और फिर पंडित मरण हो तो उसका परिणाम भी बहुत उच्च प्राप्त हो सकता है।
आचार्यश्री ने चतुर्दशी के संदर्भ में हाजरी का वाचन करते हुए कहा कि आज शासनमाता साध्वीप्रमुखा कनकप्रभाजी के मासिकी पुण्यतिथि का दिन भी है। उन्होंने अनेक रूपों में धर्मसंघ को अपनी सेवा दी। आचार्यश्री ने उपस्थित चारित्रात्माओं को विविध प्रेरणाएं भी प्रदान कीं। आचार्यश्री की आज्ञानुसार मुनि देवकुमारजी और मुनि विपुलकुमारजी ने लेखपत्र का वाचन किया। प्रथम बार लेखपत्र का वाचन करने वाले मुनि विपुलकुमारजी को 21 कल्याणक व मुनि देवकुमारजी को दो कल्याणक बक्सीस के रूप में आचार्यश्री से प्राप्त हुए। तदुपरान्त उपस्थित चारित्रात्माओं ने अपने स्थान पर खड़े होकर लेखपत्र उच्चरित किया। कार्यक्रम में साध्वीवर्याजी ने जनता को उद्बोधित किया।
साध्वी उदितयशाजी ने आचार्यश्री के समक्ष 31 की तपस्या का प्रत्याख्यान किया। संसारपक्ष में आचार्यश्री के अग्रज श्री सुजानमल दूगड़ ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी।