-भगवती सूत्र के माध्यम से आचार्यश्री ने धर्म के साथ शक्तिसम्पन्न बनने की दी प्रेरणा
-कालूयशोविलास का आचार्यश्री ने किया सरसशैली में वाचन
घोड़बंदर रोड, मुम्बई। भगवती सूत्र में श्रमणोपासिका जयंती द्वारा पूछे गए प्रश्नों को भगवान महावीर ने सारगर्भित रूप में समाहित किया। श्रमणोपासिका जयंती राजा उदयन की बुआ थी। राजा उदयन की मां मृगावती भी भगवान महावीर के समवसरण में उपस्थित होकर मंगल देशना का श्रवण कर रही थी। राजा उदयन और उनकी मां मृगावती के जाने के बाद श्रमणोपासिका जयंती ने भगवान महावीर से प्रश्न किया कि जीवों का बलवान होना अच्छा है अथवा दुर्बल? सामान्य अर्थ में देखा जाए तो इसका साधारण उत्तर हो जाएगा कि बलवान होना अच्छी बात है, किन्तु भगवान महावीर ने सारगर्भित उत्तर प्रदान करते हुए कहा कि कुछ जीवों का बलवान होना अच्छा और कुछ जीवों का दुर्बल होना अच्छा होता है।
धार्मिक जीव बलवान होगा तो वह अन्य लोगों को भी धर्म के कार्य में जोड़ सकता है। धर्म के प्रचार-प्रसार और विकास के लिए श्रम कर सकता है, जप, तप में अपनी शक्ति का नियोजित कर सकता है, सेवा आदि कार्य के माध्यम से भी धर्म को बढ़ा सकता है। इसलिए धार्मिक का बलवान होना अच्छा होता है। वहीं अधार्मिक दुर्बल होगा तो वह किसी को जबरदस्ती धर्म से च्युत नहीं कर सकता, धार्मिक कार्यों में बाधा नहीं डाल सकता, दुर्बल होगा तो वह किसी भी प्रकार का अवरोध नहीं उत्पन्न कर सकता। इसलिए अधार्मिक आदमी का दुर्बल होना अच्छा होता है। दुर्बलता के कारण उसकी आत्मा भी ज्यादा पाप के बंधनों से बच सकती है।
बल, वीर्य शक्ति का सम्बन्ध शरीर से होता है। शक्तिशाली होना बहुत अच्छी बात होती है। परम पूज्य गुरुदेव आचार्यश्री तुलसी में मानों कितना शारीरिक बल रहा होगा कि यहां से वे पैदल कोलकाता पधारे और वहां से राजस्थान, फिर राजस्थान से दक्षिण कन्याकुमारी तक पधारे और वहां से पुनः राजस्थान पधारे। शक्ति होती है तो सेवा, सहयोग, स्वाध्याय, जप, तप आदि धार्मिक कार्य भी अच्छे रूप में सम्पन्न हो सकता है। जीवन में शक्ति के विकास के साथ-साथ धर्म का भी विकास होता रहे, ताकि शक्ति अथवा अपनी बलवता का अच्छा उपयोग हो सके। उक्त पावन पाथेय जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने तीर्थंकर समवसरण में उपस्थित जनता को शुक्रवार को प्रदान की।
आचार्यश्री ने मंगल प्रवचन के उपरान्त तेरापंथ धर्मसंघ के नवमे आचार्यश्री तुलसी द्वारा रचित कालूयशोविलास के आख्यान क्रम को आगे बढ़ाते हुए पूज्य कालूगणी के गंगापुर चतुर्मास के दौरान बिगड़ते स्वास्थ्य और उनके उपचार के किए जा रहे प्रयासों का सरसशैली में वर्णन किया। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन से साध्वीवर्या सम्बुद्धयशाजी ने उपस्थित जनता को उद्बोधित किया। साध्वी मार्दवयशाजी ने आचार्यश्री से नौ की तपस्या का प्रत्याख्यान किया। श्रीमती टिना बैंगानी ने आचार्यश्री महाश्रमणजी के पचासवें दीक्षा कल्याण महोत्सव वर्ष के संदर्भ में 49 की तपस्या का प्रत्याख्यान किया।
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