-गुरुमुख से मंगलपाठ का श्रवण कर प्रारम्भ हुआ संस्था शिरोमणि महासभा का प्रतिनिधि सम्मेलन
-त्रिदिवसीय सम्मेलन में देश-विदेश की 400 से अधिक सभा व उपसभाओं के प्रतिनिधि बने संभागी
-प्रेरणा सत्र में आचार्यश्री व साध्वीप्रमुखाजी की प्रेरणाओं से ओतप्रोत बने प्रतिनिधि व श्रद्धालु
घोड़बंदर रोड, मुम्बई। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ की ‘संस्था शिरोमणि’ जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के तत्त्वावधान में रविवार को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान देदीप्यमान महासूर्य, युगप्रधान, महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी से मंगल मुखारविंद से मंगलपाठ का श्रवण कर ‘तेरापंथी सभा प्रतिनिधि सम्मेलन’ के त्रिदिवसीय सम्मेलन का भव्य शुभारम्भ हुआ। इस सम्मेलन में देश-विदेश की कुल 400 से अधिक सभा और उपसभाओं के लगभग 1400 से प्रतिनिधि पूज्य सन्निधि में उपस्थित रहे। रविवार का दिन और महासभा के सम्मेलन के कारण श्रद्धालुओं की इतनी विराट उपस्थिति रही कि नन्दनवन का विशाल तीर्थंकर समवसरण भी जनाकीर्ण बन गया। प्रवचन पण्डाल ही नहीं, उसके बाहर के भागों में भी श्रद्धालुओं की उपस्थिति बनी रही।
मायानगरी मुम्बई के नन्दनवन में वर्ष 2023 का चतुर्मास कर रहे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में रविवार को मानों श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ आया था। रविवार के दिन मुम्बई व आसपास के श्रद्धालुओं के अलावा जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ की संस्था शिरोमणि के रूप में ख्यापित महासभा के तत्त्वावधान में प्रारम्भ होने वाले त्रिदिवसीय ‘तेरापंथी सभा प्रतिनिधि सम्मेलन’ के हजारों प्रतिनिधि व महासभा के पदाधिकारियों से आचार्यश्री के तीर्थंकर समवसरण में विराजमान होने से पूर्व ही विशाल प्रवचन पण्डाल मानों जनाकीर्ण बना हुआ था। युगप्रधान आचार्यश्री के मंचासीन होते ही पूरा प्रवचन जयघोष से गुंजायमान हो उठा।
आचार्यश्री ने मंगल प्रवचन के प्रारम्भ से पूर्व ही प्रतिनिधि सम्मेलन के शुभारम्भ के संदर्भ में महासभा के पदाधिकारियों सहित समुपस्थित हजारों प्रतिनिधियों को श्रीमुख से मंगलपाठ प्रदान किया। गुरुमुख से मंगलपाठ का उच्चारण होते ही इस सम्मेलन का शुभारम्भ हो गया। इस प्रेरणा सत्र का शुभारम्भ गुरुमुख के मंगलपाठ से प्रारम्भ होने के उपरान्त साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने महासभा द्वारा दिए जा रहे अनेक सामाजिक अवदानों के विकास और आगे बढ़ाने के साथ महासभा का दिन दुना, रात चौगुना वृद्धि होने की मंगलकामना की।
युगप्रधान, महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समुपस्थित विराट जनमेदिनी को अपनी अमृतवाणी से मंगल पाथेय प्रदान करते कहा कि भगवती सूत्र में भगवान महावीर ने बताया कि श्रावक का जीवन कैसा होना चाहिए। श्रावक सामान्य गृहस्थ नहीं होता। वह साधुओं का उपासक होता है। श्रमण की उपासना करने वाला श्रावक होता है। वह सत्संग करने वाला होता है। सत्संग जीवन का कल्याण करने में सहायक होता है। मानव जीवन में संगति का बहुत प्रभाव होता है। सत्संगति से भाव जगत का शुद्धिकरण हो जाता है। आंख और कान के सत्संगत के लिए सशक्त माध्यम बनते हैं।
श्रावक की जीवनशैली त्याग, संयम और सादगी से परिपूर्ण होनी चाहिए। जीवन में सदाचार का प्रवास हो। श्रावक प्रतिदिन नमस्कार महामंत्र का जप का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने आगे कहा कि परम पूज्य गुरुदेव तुलसी और आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने कितना महान कार्य किया कि आगमों को जन सुलभ बनाया। आगमों के प्रकाशन का कार्य पहले महासभा ने किया बाद में यह जैन विश्व भारती द्वारा हो रहा है। समाज की संस्थाएं हवा बनकर ज्ञान के प्रसार का प्रयास करती रहें। महासभा द्वारा अनेक कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, उनमें एक है ज्ञानशाला। ज्ञानशाला भावी पीढ़ी को संस्कारित बनाने का बहुत महत्त्वपूर्ण कार्य कर रही है। संस्कार निर्माण शिविर के माध्यम से संस्कारों के संप्रेषण का अच्छा और सशक्त माध्यम है। धर्म और संयम की जानकारी बचपन से हो तो जीवन में बच्चे अनेक बुराइयों से बच सकते हैं। अवस्था के अनुसार श्रावक अपने प्रकार में बदलाव लाने का प्रयास करे और जितना संभव हो सके, समाज, धर्म और आत्मकल्याण का प्रयास करता रहे। श्रावक अपने जीवन के अंतिम मनोरथ को भी सिद्ध करने का प्रयास करे। अंतिम समय आए तो वह भी एक शैली के माध्यम से हो। श्रावकत्व के माध्यम से मोक्ष की प्राप्ति का प्रयास हो।
अनेक तपस्वियों ने अपनी-अपनी धारणा के अनुसार आचार्यश्री से अपनी-अपनी तपस्या का प्रत्याख्यान किया। श्री अशोक कोठारी ने मुनिश्री महेन्द्रकुमारजी द्वारा रचित गीत के संदर्भ में जानकारी दी। गीत को प्रसारित भी किया गया।
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