-भगवती सूत्र के आधार पर श्रद्धालुओं को प्राप्त हो रही नित नवीन प्रेरणा
-कालूयशोविलास के आख्यान क्रम को आचार्यश्री ने बढ़ाया आगे
घोड़बंदर रोड, मुम्बई ।भगवती सूत्र में भगवान महावीर और मुनि गौतम के बीच वार्तालाप का क्रम चलता रहता है। मुनि गौतम ने भगवान महावीर से प्रश्न किया कि भगवन! एक पुरुष का हनन करने वाला पुरुष उस पुरुष के सिवाय अन्य किसी का भी हनन करता है? भगवान महावीर ने उत्तर प्रदान करते हुए कहा कि हां। पुनः प्रश्न किया गया कि ऐसा कैसे होता है? भगवान महावीर ने समझाते एक पुरुष को मारने से उसके शरीर में पेट में, मल-मूत्र में अथवा खून आदि में रहने वाले कृमि आदि का भी नाश हो जाता है, इसलिए एक शरीर के आश्रित अन्य अनेक जीवों की हिंसा और उसके परिपार्श्व में भी अन्य कोई जीव हिंसा हो सकती है। इसलिए वह एक आदमी के साथ अन्य जीवों का हंता होता है। इसी प्रकार कोई हाथी, शेर, हिरण आदि को मारने पर भी अन्य जीवों आदि की हत्या होती है।
एक और प्रश्न किया गया कि यदि कोई साधु की हिंसा करे तो इसके इतर भी जीवों की हिंसा होती है? भगवान महावीर ने कहा कि वह साधु की हिंसा के अन्य अनंत जीवों की हिंसा कर देता है। कारण है कि साधु तो जीवन भर के लिए अहिंसा का त्याग लिया हुआ है। साधु को मार दिया तो उसकी संयमी आत्मा अब अव्रत व असंयम में चली गई तो वह हिंसा के लिए खुल गई, इस कारण से भी वह अनंत जीवों का हिंसा का भागीदार हो जाता है। दूसरी बात है कि साधु के प्रतिबोध से कितने लोग हिंसा का त्याग कर देते हैं, साधु का हनन कर देने से उन लोगों की आत्मा नहीं बदली तो इस प्रकार भी वह साधु का हंता साधु के सिवाय नहीं चाहते हुए भी अनंत जीवों की हिंसा का भागीदार बन जाता है।
हिंसा और अहिंसा के अनेक प्रकार है। मूल रूप से आदमी के भाव में यदि हिंसा की चेतना है, अगर उसके प्रयास से प्राणी बच भी जाए तो भी वह आदमी हिंसा का भागीदार हो जाता है। उस आदमी की आत्मा हिंसा से भारी बन जाती है। हिंसा के चार प्रकार हो जाते हैं-द्रव्यतः हिंसा है और भावतः हिंसा नहीं है। भावतः हिंसा है, द्रव्यतः नहीं है। द्रव्यतः और भावतः हिंसा है और न द्रव्यतः हिंसा है और न भावतः हिंसा है। हिंसा का सूक्ष्म ज्ञान कर गृहस्थों को अहिंसा की दिशा में गति करने का प्रयास करना चाहिए। उक्त पावन प्रतिबोध जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने गुरुवार को तीर्थंकर समवसरण में उपस्थित श्रद्धालुओं को प्रदान की।
मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने कालूयशोविलास का सरसशैली में वाचन किया। श्री विपीनभाई ने अपनी अभिव्यक्ति दी।
*