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कषायों को उपशांत रखने का करें प्रयास : सिद्ध साधक आचार्यश्री महाश्रमण   

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-हिंसा, चोरी और झूठ से बचने को आचार्यश्री ने किया अभिप्रेरित

-उत्थान का प्रयास मोक्ष की प्राप्ति तक होता रहे: आचार्यश्री महाश्रमण

मीरा रोड (ईस्ट), मुम्बई।एक ओर मुम्बई में लगातार मेघवृष्टि हो रही है तो दूसरी ओर मुम्बईवासियों पर जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता,भगवान महावीर के प्रतिनिधि, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की आशीषवृष्टि हो रही है। दोनों वृष्टियां मुम्बईवासियो को सराबोर बना रही है। एक वृष्टि को तन को भिगोने वाली है तो दूसरी वृष्टि मन को अध्यात्म, आस्था व श्रद्धा से ओतप्रोत करने वाली है। 

रविवार को भी मेघवृष्टि के बाद भी हजारों की संख्या में श्रद्धालु सिद्ध साधक आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगलवाणी का श्रवण कर अपने जीवन को धन्य बनाने के लिए नन्दनवन परिसर में पधारे। युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने तीर्थंकर समवसरण में उपस्थित विशाल जनमेदिनी को भगवती सूत्र के माध्यम से प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आदमी को अपने भीतर स्थित कषायों को शांत रखने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को अपने समता और शांति में रहने का प्रयास करना चाहिए। पूर्वकृत पुण्यकर्मों से प्राप्त चीजों का अहंकार न हो और जो प्राप्त हो, उसमें संतोष रखने का प्रयास करना चाहिए। असंतोष और अत्यधिक लालसा और कामना की स्थिति आदमी के भीतर कषायों को तीव्र बनाने वाली होती है। 

मनुष्य को अपने भीतर मोह के भावों का अल्पीकरण करने का प्रयास करना चाहिए। मोह के अल्पीकरण के लिए भौतिक पदार्थों के मोह के भाव को कम करने, उनके प्रति विशेष आसक्त नहीं होने और संसार में रहते हुए भी अनासक्ति का भाव रखने का प्रयास करना चाहिए। आदमी के भीतर चाह जितनी कम होगी, शांति की राह प्रशस्त हो सकती है। आवश्यकताओं की पूर्ति का प्रयास करना तो फिर भी अच्छा हो सकता है, किन्तु ज्यादा और ज्यादा की चाह की पूर्ति अच्छी नहीं होती। अपने जीवन में संयम और सादगी रखने का प्रयास करना चाहिए। 

आदमी को हिंसा, चोरी और झूठ से बचने का प्रयास करना चाहिए। आदमी अपने जीवन में यह ध्यान दे कि किसी भी प्राणी की अनावश्यक रूप में हिंसा न हो। जीवन में किसी प्रकार की चोरी न करने का प्रयास हो तो शांति बनी रह सकती है। गृहस्थ जीवन में रहते हुए भी झूठ बोलने से बचने का प्रयास करना चाहिए। सादगी और धर्म से युक्त जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए। 

आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने समुपस्थित जनता को उत्प्रेरित किया। जैन विश्व भारती द्वारा आचार्यश्री महाप्रज्ञजी पुस्तक हर दिन नया विचार का अंग्रेजी अनुवाद ‘न्यू डे, न्यू थॉट’ पुस्तक लोकार्पित की गई। 

मुम्बई वासियों की ओर से आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में उत्थान कार्यक्रम का समायोजन किया गया। इस कार्यक्रम के संदर्भ में मुम्बई चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री मदनलाल तातेड़ व श्री रतन सियाल ने अपनी अभिव्यक्ति दी। मुनि जागृतकुमारजी व मुनि अभिजीतकुमारजी ने उत्थान कार्यक्रम के संदर्भ में आचार्यश्री के समक्ष अवगति प्रस्तुत की। उत्थान कार्यक्रम से संर्दभित वीडियो प्रस्तुत की गई। मुम्बईवासियों की ओर से परिसंवाद की प्रस्तुति भी हुई। 

आचार्यश्री ने उत्थान कार्यक्रम के संदर्भ में पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि पहले उत्कर्ष और अब उत्थान की बात है। आदमी का उत्थान किस दिशा हो, यह महत्त्वपूर्ण होता है। आदमी को सही दिशा में उत्थान करने का प्रयास करना चाहिए। अच्छे कार्य में उत्थान होता रहे और उत्थान तो तब तक होता रहे, जब तक वीतरागता और मोक्ष की प्राप्ति न हो जाए। आचार्यश्री के आशीर्वाद और प्रेरणा को प्राप्त कर जन-जन आह्लादित नजर आ रहा था। अंत में अनेक तपस्वियों ने अपनी-अपनी धारणा के अनुसार तपस्याओं का प्रत्याख्यान किया।   

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