-इहलोक, परलोक और उभयलोक प्रत्यनित से बचने का करें प्रयास : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण
-21 रंगी तपस्या के अंतिम दिन मुम्बई के श्रद्धालुओं ने गुरुमुख से किया सामूहिक प्रत्याख्यान
-सरसशैली में श्रीमुख से कालूयशोविलास का भी श्रद्धालुओं ने किया रसपान
मीरा रोड (ईस्ट),मुम्बई।दो दिनों के जलभराव से मुक्ति मिली तो शुक्रवार को नन्दनवन परिसर में बने विशाल एवं भव्य तीर्थंकर समवसरण से पुनः तीर्थंकर के प्रतिनिधि, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगलवाणी गुंजायमान हुई। आचार्यश्री ने श्रद्धालुओं को भगवती सूत्र के आधार पर आध्यात्मिक ज्ञान के साथ-साथ तेरापंथ धर्मसंघ के नवमाधिशास्ता आचार्यश्री तुलसी द्वारा रचित अष्टमाचार्य की जीवन गाथा का सरसशैली में आख्यान भी प्रदान की। इस दौरान मुम्बईवासियों द्वारा महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी के श्रीचरणों में तपस्या की भेंट समर्पित करने के उद्देश्य से चल रही 21 रंगी तपस्या के अंतिम दिन अनेकानेक श्रद्धालुओं ने वास के साथ-साथ अपनी-अपनी तपस्याओं के अंतिम दिन का सामूहिक रूप में गुरुमुख से प्रत्याख्यान किया। यह सौभाग्य प्राप्त कर जन-जन का अतिशय आह्लादित था।
शुक्रवार को नन्दनवन परिसर में बने भव्य एवं विशाल तीर्थंकर समवसरण से महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समुपस्थित श्रद्धालु जनता को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि जैन आगमों में चार गतियां बताई गई हैं- नरक, तिर्यंच, मनुष्य और देव। पांचवी गति सिद्ध को माना जा सकता है। कितने-कितने जीव तो ऐसे हैं तो तिर्यंच गति से बाहर ही नहीं निकल पाए हैं। भगवती सूत्र में तीन प्रकार के प्रत्यनित बताए गए हैं। इहलोक प्रत्यनित, परलोक प्रत्यनित और उभयलोक प्रत्यनित। जैसा पूर्व में बताया गया कि प्रत्यनित का अर्थ प्रतिकूल होता है। इहलोक प्रत्यनित वह होता है जो अनजाने रूप में तप कर इन्द्रियों को प्रताड़ित करता है। जिस तप में हिंसा हो और अनजाने रूप में इन्द्रियों को भी प्रताड़ित करता हो, वह इहलोक प्रत्यनित होता है।
दूसरा परलोक प्रत्यनित होता है। जो आदमी केवल इन्द्रिय भोग में रमा रहता है। कोई धर्म, ध्यान, साधना, तप आदि नहीं करता, भोगात्मक, विषयात्मक, इन्द्रिय भोग में बसने वाला परलोक प्रत्यनित होता है। अर्थात् वह अपने आगे की गति को बिगाड़ने वाला होता है। पूर्वकृत पुण्यों का फल वह भले इस जन्म में भोग ले, लेकिन आगे के लिए संचय नहीं किया तो आगे परलोक की गति को बिगड़ जाएगी। तीसरा उभयलोक प्रत्यनित होते हैं। वैसे मनुष्य जो चोरी से धनार्जन करते हैं, लूटकर धन अर्जित करते हैं, किसी का धन, वस्तु आदि हड़प लेने वाला यह जीवन भी दुःखमय बन जाता है और परलोक भी बिगड़ सकता है। ऐसे लोग उभयलोक प्रत्यनित होते हैं। आदमी को इन तीनों प्रकारों के प्रत्यनित होने से बचने का प्रयास करना चाहिए। आदमी अपने गृहस्थ जीवन में संयम, सादगी, साधना के साथ-साथ हिंसा से आदि से बचने का प्रयास करे तो वर्तमान जीवन भी अच्छा और आगे की गति भी अच्छी हो सकती है। जीवन में अशुद्ध पैसे से दूरी हो, ईमानदारी रहे। जीवन के अंतिम दिनों में व्यापार आदि कार्यों से मुक्त होकर धर्म, ध्यान, साधना में समय लगाकर अपने परलोक को भी संवारने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री ने मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री तुलसी द्वारा अष्टमाचार्य द्वारा राजस्थानी भाषा में लिखित जीवनवृत्त का सरसशैली में वाचन किया। महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी को आध्यात्मिक भेंट अर्पित करने के उद्देश्य से मुम्बईवासियों ने एक जुलाई से 21 रंगी तपस्या का प्रारम्भ किया था। इस तपस्या में 21 दिनों की तपस्या के कम से कम 21 तपस्वी, 20 दिनों के 21 तपस्वी, 19 दिनों के 21 तपस्वी-इसी प्रकार क्रम से एक दिन की तपस्या में भी 21 तपस्वी होने चाहिए। इस विधान से की जा रही तपस्या के आखिरी दिन भी तपस्वियों ने अपने आराध्य के श्रीमुख से अपनी-अपनी तपस्याओं का प्रत्याख्यान किया। आचार्यश्री ने मंगल आशीर्वाद के साथ तपस्वियों को तपस्या का प्रत्याख्यान कराया। गुरु की इस कृपा को प्राप्त कर तपस्वी निहाल थे। आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में जैन विश्व भारती के पदाधिकारियों आदि ने साध्वी जिनप्रभाजी अनुवादित 25 बोल की पुस्तक ‘की टू जैन फण्डामेंटल’ को लोकार्पित किया गया। कार्यक्रम में साध्वीवर्याजी ने उपस्थित जनता को उद्बोधित किया।