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साधु को शुद्ध दान देने से होती है कर्म निर्जरा : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण

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-श्रमणोपाषक द्वारा साधु को दिए गए दान के प्रतिफल को आचार्यश्री ने किया वर्णित  

-शांतिदूत ने दिया उपासक श्रेणी को खूब विकास का दिया आशीर्वाद   

 मीरा रोड (ईस्ट), मुम्बई। भगवती सूत्र में भगवान महावीर से प्रश्न किया गया कि श्रमणोपाषक अर्थात श्रावक द्वारा साधु को असन, पान, खाद्य, स्वाद का दान दिया जाता है, उसे कर्म की दृष्टि से क्या होता है? भगवान महावीर ने उत्तर दिया कि साधु को दान देने वाले श्रावक को एकान्ततः कर्म निर्जरा होती है। उसको पाप कर्म का बन्ध नहीं होता। साधु को जो असन, पान, खाद्य, स्वाद से जो प्रतिलाभित करता है, उससे उस श्रावक के कर्म निर्जरा होती है। शुद्ध साधु हो और श्रावक भी अपनी भावना से दे और वस्तु भी कल्पनीय है तो उसके कर्म कटते हैं, लाभ मिलता है। जो श्रावक अकल्पनीय, सचित्त वस्तु का दान देता है, उसे बहुतर निर्जरा और अल्पतर पाप कर्म का बंध होता है। अनजान में सचित्त वस्तु अथवा अकल्पनीय भी दे दिया हो तो उस श्रावक को निर्जरा का लाभ होगा, पाप का बंध नहीं होगा। 

दान का प्रसंग है, दान के अनेक प्रकार और विभिन्न रूप बताया गया है। इससे यह प्रेरणा ली जा सकती है कि आदमी की भावना कैसी है, इसका अपना गहरा प्रभाव होता है। अगर आदमी की भावना शुद्ध हो और अनजाने में सचित्त वस्तु का दान भी दे दिया तो उसे पाप का नहीं कर्म निर्जरा का लाभ प्राप्त होता है। शुद्ध श्रावक, वस्तु भी शुद्ध और दान देने वाला भी साधु हो तो वह दान धर्म की दृष्टि से लाभदायी होता है और श्रावक को अच्छा लाभ होता है। आदमी को शुद्ध दान करने का प्रयास करना चाहिए। उक्त प्रेरणा जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने सोमवार को समुपस्थित जनता को प्रदान की। 

मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री कालूयशोविलास की आख्यानमाला को आगे बढ़ाते हुए आचार्यश्री कालूगणी द्वारा जोधपुर में 22 दीक्षाएं प्रदान करने के प्रसंग और उस समय की भव्यता को सरसशैली में व्याख्यायित किया। गुरुमुख से इसका संगान और वर्णन सुनकर श्रद्धालु जनता निहाल थी। 

गुरु आज्ञा से श्री सुमेरमल सुराणा ने भी आचार्यश्री कालूगणी के प्रभाव के संदर्भ में अपनी अभिव्यक्ति दी तो आचार्यश्री ने इस संदर्भ में प्रेरणा प्रदान की। उपासक श्रेणी सेमिनार के तीसरे दिन इस सेमिनार के व्यवस्थापक श्री जयंतिलाल सुराणा ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। उपासक श्रेणी ने गीत का संगान किया। उपासक श्रेणी के आध्यात्मिक पर्यवेक्षक मुनि योगेशकुमारजी ने अपनी अभिव्यक्ति दी। 

आचार्यश्री ने उपासक श्रेणी के समिनार के संदर्भ में पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि हमारे धर्मसंघ में एक ऐसा विंग है जो अच्छा कार्य कर रहा है। उपासक श्रेणी बहुत उपयोगी समुदाय है। तेरापंथी महासभा के तत्त्वावधान में चलने वाला एक गुणवत्ता पूर्ण आयाम है। इस सेमिनार के माध्यम से अच्छी ट्रेनिंग मिल सकती है। उपासक श्रेणी में भी संख्या वृद्धि होती रहे। अच्छा ज्ञान, अच्छे संस्कार, बौद्धिकता के साथ इन वर्षों में रूप निखरा है, आगे और भी निखरता रहे। क्षेत्रों में जाएं, वहां धर्म का खूब प्रभाव बढ़ाएं। चिंतन-मंथन के द्वारा और विकास का प्रयास हो। ‘शांति सौरभ’ पुस्तक को पूज्यप्रवर के समक्ष लोकार्पित किया गया। इस संदर्भ में श्री कैलाश बोराणा ने अपनी अभिव्यक्ति दी तो आचार्यश्री ने पुस्तक के संदर्भ में पावन आशीर्वाद प्रदान किया। 

 

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