-तेरापंथ के आद्य अनुशास्ता का जन्मदिवस ‘बोधि दिवस’ के रूप में हुआ समायोजित
-वर्तमान अनुशास्ता संग चतुर्विध धर्मसंघ ने महामना के प्रति व्यक्त की विनयांजलि
-मुम्बई में 21 रंगी तपस्या प्रारम्भ, आचार्यश्री ने तपस्वियों को कराया प्रत्याख्यान
घोड़बंदर, मुम्बई।मायानगरी मुम्बई के बाहरी भाग में स्थित घोड़बंदर के नन्दनवन परिसर में बने भव्य एवं विराट तीर्थंकर समवसरण में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के देदीप्यमान महासूर्य, अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में तेरापंथ धर्मसंघ के आद्य आचार्य महामना भिक्षु का जन्मदिवस बोधि दिवस के रूप में हर्षोल्लासपूर्ण वातावरण में समायोजित किया गया। आचार्यश्री ने महामना के गुणों का गुणगान करते हुए उनका श्रद्धासिक्त स्मरण कर अपनी विनयांजलि अर्पित की। साथ मुम्बई महानगर में 21 रंगी तपस्या का भी आगाज हुआ। आचार्यश्री ने तपस्वियों को त्याग कराया और मंगलपाठ सुनाया।
शनिवार को तीर्थंकर समवसरण में तेरापंथ धर्मसंघ के प्रथम आचार्य, आद्य अनुशास्ता आचार्यश्री भिक्षु का जन्मदिवस ‘बोधि दिवस’ के रूप में समायोजित हुआ। वर्तमान अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी के मंगल महामंत्रोच्चार के साथ इस कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। साध्वी निर्माणश्रीजी, मुनि योगेशकुमारजी व मुनि मोहजीतकुमारजी ने अपने आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। साध्वी स्तुतिप्रभाजी व साध्वीवृंद ने गीत का संगान किया। साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने महामना भिक्षु के प्रसंगों का वर्णन किया।
युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समुपस्थित जनता को पावन संबोध प्रदान करते हुए कहा कि जो वीर पुरुष होते हैं वे महान पथ पर समर्पित हो जाते हैं। श्रद्धा और समर्पण में गहरा सम्बन्ध है। जिसके प्रति श्रद्धा होती है, उसके लिए कोई कष्ट भी सहना होता है तो सहन किया जा सकता है। वीर पुरुष उस महान पथ के प्रति प्रणत हो जाते हैं।
आज आषाढ़ शुक्ला त्रयोदशी है। परम पूज्य, परम वंदनीय, तेरापंथ धर्मसंघ के प्रथम अनुशास्ता आचार्यश्री भिक्षु का जन्मदिवस है। आचार्यश्री भिक्षु का जन्म आषाढ़ शुक्ला त्रयोदशी को राजस्थान के कंटालिया में हुआ। आचार्य भिक्षु के साथ मानों शुक्ला त्रयोदशी निकटता से जुड़ी हुई है। उनका जन्म आषाढ़ शुक्ला त्रयोदशी को और महाप्रयाण भाद्रव शुक्ला त्रयोदशी को हुआ। मानों तिथियों में नैकट्य है तो उनके जन्मस्थान और महाप्रयाण स्थान में भी क्षेत्रीय दूरी नहीं है। कंटालिया उनका जन्मस्थान और सिरियारी महाप्रयाण स्थल है। आदमी वर्तमान जीवन में किए हुए कर्मों के अलावा पूर्व जन्मों के कर्मों को भी साथ लेकर आता है। इसलिए भविष्य का निर्धारण अतीत के कार्यों को लेकर भी किया जाता है। भविष्य के कार्यों में अतीत का भी अपना योगदान होता है। वे आज की तिथि को जन्मे। उनके पास जन्म से भी बौद्धिक बल और मेधाशक्ति थी। युवावस्था में उन्होंने साधुत्व को स्वीकार किया और अपने ज्ञान व विवेक से अपने गुरु के विश्वासपात्र हो गए। वे बुद्धिमान होने के साथ समझाने में कुशल थे।
आदमी के जीवन का कोई-कोई कष्ट अच्छा मार्ग दिखाने वाला भी हो सकता है। उनके जीवन में भी ऐसा ही हुआ, श्रावकों को समझाने के बाद बुखार आया और उसमें जो चिन्तन अथवा बोध हुआ। उस बोध के आधार पर आचार्यश्री भिक्षु ने एक धर्मक्रांति की और तेरापंथ धर्मसंघ की स्थापना हो गई। आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के समय में महामना आचार्य भिक्षु के जन्मदिवस को ‘बोधि दिवस’ में मनाया जाने लगा। वे एक आधार पर पर निर्भिकता के साथ उस महान पथ के प्रति प्रणत हुए। वे हमारे आद्य आचार्य थे। आचार्यश्री ने उनके प्रति श्रद्धा प्रणति अर्पित करते हुए ‘ज्योति का अवतार बाबा’ गीत का आंशिक संगान किया।
बोधि दिवस के अवसर पर मुम्बईवासियों द्वारा आरम्भ हुए इक्कीसरंगी तपस्या के संदर्भ में उपस्थित तपस्वियों को आचार्यश्री ने तपस्या के संदर्भ में प्रत्याख्यान कराते हुए उन्हें मंगलपाठ सुनाया। डालचन्द कोठारी ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी।