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बुद्धि, प्रज्ञा, विनय व समर्पण के अद्भुत संयोग पुरुष थे- आचार्य महाप्रज्ञ

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साध्वी डा. गवेषणाश्रीजी ने आचार्य महाप्रज्ञ को समर्पित की भावांजलि

सेलम। तेरापंथ भवन में आयोजित आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की 14वीं पुण्यतिथि के अवसर पर अपने उद्बोधन में साध्वी डा. गवेषणाश्रीजी ने कहा कि आचार्य श्री महाप्रज्ञ- आचार्य श्री तुलसी के सक्षम उत्तराधिकारी थे, जिसमें बुद्धि, प्रज्ञा, विनय व समर्पण का अद्भुत संयोग था। वे दार्शनिक, कवि, वक्ता, साहित्यकार तो थे ही, पर साथ में प्रेक्षाध्यान पद्धति के अनुसंधाता व प्रयोक्ता थे। आपका आभामंडल, अर्न्तदृष्टि, अतींद्रिय चेतना विलक्षण था। अपूर्व समर्पण व विनय ने उनको अज्ञ से प्रज्ञ, प्रज्ञ से महाप्रज्ञ बना दिया। 
साध्वीश्री मयंकप्रभाजी ने कहा- आचार्य महाप्रज्ञजी का व्यक्तित्व असीम और अमाप्य था। आप राष्ट्र संत नहीं, विश्वसंत थे। वे ग्रंथ नहीं, महाग्रंथ थे। उन्होंने साहित्य नहीं, अमृतकुंभ हमारे सामने छोड़ गये। वे अपने विचारों से, लेखनी से, सारे संसार को नई दिशा, नई शक्ति, नई ऊर्जा दी। साध्वीश्री मेरुप्रभाजी ने सुमधुर गीतिका से अपनी भावांजलि अर्पित की।
कार्यक्रम की शुरुआत कीर्ति बोहरा के मंगलाचरण से हुई। अनुभवी, कर्मठ कार्यकर्ता केवलचंदजी बोहरा, सभामंत्री प्रवीणजी बोहरा, तेममं मंत्री सरिताजी चोपड़ा, वि ट्रस्ट चेयरमैन श्री वीरेंद्रजी सेठिया ने अपने विचारों के साथ गुरुचरणों में श्रद्धांजली अर्पित की। तेरापंथ महिला मंडल की बहनों ने कव्वाली की विधा के साथ अपनी प्रस्तुति दी। साध्वीश्री दक्षप्रभाजी कुशलतापूर्वक संचालन किया।
समाचार सम्प्रेषक : स्वरूप चन्द दाँती

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