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विनय के भाव से चित्त रह सकता है प्रसन्न : महातपस्वी महाश्रमण

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  -12 किलोमीटर का विहार कर शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी पहुंचे आजोल 

-सी.एम.डी. शाह हाइस्कूल में पड़े पूज्यचरण, पुनः गांधीनगर जिले में प्रवेश  

-विनयशीलता के विकास को आचार्यश्री ने किया उत्प्रेरित  

आजोल, गांधीनगर (गुजरात)।भारत के पश्चिमी भाग में अवस्थित गुजरात प्रदेश में अपनी अणुव्रत यात्रा के साथ गतिमान जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी वर्तमान में उत्तर गुजरात की धरा को अपनी चरणरज से पावन और अपनी अमृतवाणी से लोगों के मानस को अभिसिंचन प्रदान कर रहे हैं। रविवार को प्रातः की मंगल बेला में आचार्यश्री विजापुर से गतिमान हुए। विजापुर गांव राजस्थान के महसाणा जिले में अवस्थित है। सुबह से ही आसमान में छाए बादल और तीव्र हवा के कारण मौसम कुछ बदला-बदला सा प्रतीत हो रहा था। हालांकि कुछ समय बाद ही बादलों को चीरता हुआ सूर्य प्रकट हुआ तो कुछ समय बाद बादलों से उसे पुनः ढंक दिया। इस आपाधापी में हल्की बूंदे भी आईं, किन्तु हवाओं ने बादलों को कहीं और धकेल दिया। तेज हवा कुछ समय बाद तक चलती रही। इस दौरान विहार के दौरान प्रायः मौसम खुशनुमा बना रहा। आचार्यश्री ने एक किलोमीटर का अतिरिक्त चक्कर लेते हुए विजापुर में स्थित स्थानक और तेरापंथ भवन में भी पधारे और श्रद्धालुओं को मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। विहार के दौरान आचार्यश्री मेहसाणा जिले से पुनः गांधीनगर जिले की सीमा में पावन प्रवेश किया और लगभग बारह किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री आजोल गांव में स्थित सी.एम.डी. शाह हाइस्कूल में पधारे। 

प्रार्थना हॉल में आयोजित मंगल प्रवचन में समुपस्थित जनता को आचार्यश्री ने पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि शास्त्रों में वर्णित चार प्रकार की समाधियों में पहली समाधि है विनय समाधि। व्यक्ति का चित्त प्रसन्न होता है तो बीमारी भी मानों कम परेशान करती है और यदि व्यक्ति का चित्त अशांत हो तो छोटी-मोटी कठिनाई भी परेशान कर देती है। चित्त की प्रसन्नता के लिए आदमी को अपने भीतर विनयशीलता का विकास करने का प्रयास करना चाहिए। अपने से बड़ों के प्रति विनय, गुरु के प्रति, अपने से छोटों के प्रति विनय का अच्छा भाव हो तो चित्त प्रसन्न रह सकता है। आचार्यश्री ने समय के महत्त्व को भी व्याख्यायित करते हुए लोगों को उचित समय पर उचित कार्य करने की प्रेरणा प्रदान की। 

मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में शासनश्री साध्वी ज्ञानप्रभाजी की स्मृतिसभा का आयोजन हुआ। आचार्यश्री ने दिवंगत साध्वीजी का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनकी आत्मा के प्रति मध्यस्थ भाव व्यक्त करते हुए चतुर्विध धर्मसंघ के साथ चार लोगस्स का ध्यान किया। उनकी स्मृति में साध्वीप्रमुखाश्रीजी, मुख्यमुनिश्रीजी व साध्वी उदितयशाजी ने अपनी भावांजलि अर्पित की। इस संदर्भ में साध्वीवृंद ने गीत का संगान किया। विद्यालय के पूर्वाचार्य श्री नरेन्द्रभाई बी. सुथार व जैन संघ की ओर से श्री शितल भाई लोहरा ने अपनी अभिव्यक्ति दी। वर्तमान आचार्य श्री भूपेन्द्र भाई गोंसाई ने भी आचार्यश्री के दर्शन मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया।  

गत एक वर्ष पूर्व तेरापंथ धर्मसंघ की अष्टम साध्वीप्रमुखा शासनमाता कनकप्रभाजी का दिल्ली में महाप्रयाण हो गया था। उनका साध्वीप्रमुखा काल तेरापंथ धर्मसंघ की साध्वीप्रमुखा में सर्वाधिक पचास वर्षों से अधिक वर्षों का रहा। उन्हें तीन-तीन आचार्यों के सेवा का अवसर प्राप्त हुआ। उनकी प्रथम वार्षिक पुण्यतिथि 6 मार्च को है।

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