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अहंकार और ममकार से हो बचाव तो अपरिग्रह बन सकता है पुष्ट : शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण

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सुगुरु की कृपा पाकर सलाल हुआ निहाल 

-तीव्र आतप के मध्य लगभग 13 कि.मी. का शांतिदूत ने किया विहार  

-स्वागत में उमड़ी सलाल की जनता, जन-जन पर हुई आशीषवृष्टि  

-हर्षित सलालवासियों ने भी अपनी भावनाओं को दी अभिव्यक्ति

सलाल, साबरकांठा (गुजरात)।जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के इतिहास में नित नए स्वर्णिम अध्यायों का सृजन करने वाले, अपनी दृढ़संकल्पों के सहारे अध्यात्म जगत देदीप्यमान महासूर्य, तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी गुजरात यात्रा के दौरान उन क्षेत्रों को पावन बना रहे हैं, जिन क्षेत्रों में तेरापंथ के किसी आचार्य का पूर्व में पदार्पण नहीं हुआ है। ऐसे में तेरापंथ धर्म के अनुयायी पहली बार अपने आराध्य को अपने आंगन में पाकर मानों परमानंद की अनुभूति कर रहे हैं। इसके साथ ही इन क्षेत्रों में रहने वाले अन्य सभी वर्गों और समुदायों के लोगों को भी मानवता का कल्याण करने वाले मानवता के मसीहा आचार्यश्री महाश्रमणजी के सहज दर्शन करने और उनकी मंगलवाणी का श्रवण करने का सौभाग्य भी प्राप्त हो रहा है। ऐसा सुअवसर प्राप्त कर गुजरात की जनता आध्यात्मिकता नव संचार हो रहा है। 

बुधवार को प्रातः हिम्मतनगर के उमा विद्यालय से तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी जनकल्याण को प्रवर्धमान हुए तो हिम्मतनगरवासियों ने अपने आराध्य के प्रति अपने कृतज्ञ भावों को अभिव्यक्त किया। राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 48 पर गतिमान राष्ट्रीय संत आचार्यश्री महाश्रमणजी जैसे-जैसे आगे बढ़ते जा रहे थे, वैसे-वैसे सूर्य भी आसमान में बढ़ता जा रहा था और इसके साथ ही बढ़ती जा रही थी धूप और गर्मी। फिर भी प्राकृतिक प्रतिकूलता की परवाह किए बिना जन-जन को अपने आशीष से आच्छादित करते हुए ज्योतिचरण गतिमान थे। लगभग तेरह किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री जैसे ही सलाल नगर के निकट पधारे तो अपने आराध्य के प्रथम आगमन पर सलालवासियों ने भव्य अभिनंदन किया। तोरणद्वारों से नगर का हर मार्ग सजा-धजा नजर आ रहा था। बुलंद जयघोष श्रद्धालुओं के उत्साह को दर्शा रहा था। भव्य स्वागत जुलूस के साथ आचार्यश्री सलाल में स्थित तेरापंथ भवन में पधारे। 

भवन के निकट बने प्रवचन पण्डाल में उपस्थित जनमेदिनी को अपनी अमृतवाणी का रसपान कराते हुए शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने कहा कि आदमी के भीतर ममत्व की चेतना भी होती है। मोह, मूर्छा जहां होता है, वहां परिग्रह हो जाता है। परिग्रह हिंसा का कारण बन जाता है। कोई हिंसा, युद्ध आदि जो भी कार्य होता है, वह पहले व्यक्ति के दिमाग में होता है, फिर वह आचरण में प्रवृत्त हो जाता है। हिंसा की पृष्ठभूमि में परिग्रह भी होता है। परिग्रह और ममत्व की भावना बहुत अधिक न हो, प्रतनु रहे और कभी शरीर से भी मोह की भावना समाप्त हो, ऐसा प्रयास करना चाहिए। 

अहंकार और ममकार आदमी की चेतना को बेकार करने वाले होते हैं। आदमी को अहंकार और ममकार से बचने का प्रयास करना चाहिए और अपरिग्रह की भावना को पुष्ट बनाने का प्रयास करना चाहिए। इसी प्रकार आदमी को केवल धन का ही नहीं, अपनी विद्या का, बुद्धि का, बल का, अधिकार का घमण्ड न हो, ऐसा प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने सलाल आगमन के संदर्भ में कहा कि अणुव्रत यात्रा के रूप में आज सलाल आना हुआ है। यहां के लोगों में सद्भावना, नैतिकता व अपरिग्रह की भावना बनी रहे। 

आचार्यश्री के मंगल प्रवचन से पूर्व साध्वीप्रमुखा साध्वी विश्रुतविभाजी ने भी सलालवासियों को आध्यात्मिक प्रेरणा प्रदान की। अपने आराध्य के प्रथम आगमन और दर्शन से हर्षित सलालवासियों ने अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति दी। स्थानीय तेरापंथी सभा के अध्यक्ष श्री मिश्रीलाल चोरड़िया, दिगम्बर समाज की ओर से श्री दिनेश भाई गांधी, स्थानकवासी जैन संघ की ओर से श्री पंकज बणवट, अखिल भारतीय संत समिति के संयुक्त महामंत्री महंत श्री सुनीलदासजी, तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम के महामंत्री श्री विमल शाह, स्थानीय तेरापंथ महिला मण्डल की अध्यक्ष श्रीमती ललिता श्रीश्रीमाल व बालिका तपस्वी जैन ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। स्थानीय तेरापंथ महिला मण्डल व तेरापंथ कन्या मण्डल की कन्याओं ने पृथक्-पृथक् स्वागत गीत के माध्यम से अपने आराध्य के श्रीचरणों की वंदना की। 

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