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लाभ होने पर भी न आए लोभ: शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण

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ज्योतिचरण के मंगल शुभागमन से हिम्मतनगर में छाया उल्लास

-हिम्मतनगर में तेरापंथ के प्रथम आचार्य के रूप में युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण का मंगल पदार्पण 

-श्रद्धालुओं ने किया भव्य अभिनंदन, आचार्यश्री श्री पहुंचे उमिया धाम

-मार्ग में अपना काफिला रोक उपराज्यपाल प्रफुल्ल भाई पटेल ने किया आचार्यश्री के दर्शन

हिम्मतनगर, साबरकांठा (गुजरात)।मानवता के कल्याण के लिए, जन मानस को सन्मार्ग दिखाने के लिए अपनी अणुव्रत यात्रा के साथ जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, मानवता के मसीहा, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना संग मंगलवार को उत्तर गुजरात के साबरकांठा जिले के हिम्मतनगर में मंगल प्रवेश किया तो अपने हिम्मतनगर का जन-जन श्रद्धाभावों से विभोर हो उठा। तेरापंथ धर्मसंघ की आचार्य परंपरा के प्रथम आचार्य के रूप में आचार्यश्री का मंगल पदार्पण जन-जन को आह्लादित बनाए हुए था। भव्य स्वागत जुलूस के साथ आचार्यश्री हिम्मतनगर स्थित उमिया माता मन्दिर धाम परिसर में पधारे। 

मंगलवार को प्रातः वक्तापुर से आचार्यश्री ने हिम्मतनगर की ओर प्रस्थान किया। हिम्मतनगर के वासी अपने आराध्य के अभिनंदन को विहार से पूर्व ही पहुंच गए थे। मार्ग में अनेक स्थानों पर श्रद्धालुजनों पर आशीषवृष्टि करते हुए आचार्यश्री गंतव्य की ओर गतिमान थे। 

अपने काफिले के साथ दमन-दीव व दादरा नगर हवेली के उपराज्यपाल श्री प्रफुल्ल भाई पटेल कहीं जा रहे थे। मार्ग में उन्होंने आचार्यश्री को गतिमान देखा तो अपना काफिला रोककर आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में उपस्थित हुए सभक्ति नमन किया तो आचार्यश्री ने उन्हें मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। उपराज्यपाल का इस तरह आचार्यश्री के दर्शन करना उपस्थित श्रद्धालुओं को आह्लादित बना रहा था। 

आचार्यश्री जैसे ही हिम्मतनगर की सीमा में पधारे तो अपनी आस्थाभावों के साथ उपस्थित जनता ने आचार्यश्री का भावभीना अभिनंदन किया। हिम्मतनगर में पहली बार तेरापंथ के किसी आचार्य का मंगल पदार्पण पूरे वातावरण को आध्यात्मिकता से ओतप्रोत बनाए हुए था। बुलंद जयघोष से पूरा वातावरण गुंजायमान हो रहा था। स्वागत जुलूस के साथ आचार्यश्री उमिया माता मंदिर धाम परिसर में पधारे। 

धाम परिसर में उपस्थित जनता को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि मनुष्य के भीतर अनेक वृत्तियां होती हैं। उसमें एक लोभ की वृत्ति भी होती है। यह दुर्वृत्ति होती है। आदमी अपराध में चला जाता है। हिंसा, हत्या, चोरी, झूठ आदि जैसे पाप भी कर लेता है। इन सभी पापों का मूल कारण लोभ की वृत्ति होती है। लोभ को नियंत्रित करने की साधना बड़ी साधना होती है। व्यक्ति को जब किसी कार्य में लाभ प्राप्त होता है तो उसका लोभ भी उसी प्रकार से बढ़ने लगता है, वह निरंतर लाभ का लोभी बन सकता है। इससे बचने के लिए आदमी को लोभ की ओर नहीं, बल्कि संतोष की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। लाभ होने पर भी लोभ न बढ़े, यह अच्छी बात हो सकती है। आदमी को लोभ की वृत्ति को यथासंभव कम करने का प्रयास करना चाहिए। 

आचार्यश्री की मंगल प्रेरणा से पूर्व उपस्थित जनता को साध्वीप्रमुखा साध्वी विश्रुतविभाजी ने उद्बोधित किया। आचार्यश्री ने हिम्मतनगर की जनता को धार्मिक-आध्यात्मिक क्षेत्र में विकास करने का मंगल आशीर्वाद भी प्रदान किया। आचार्यश्री के स्वागत में स्थानीय तेरापंथी सभा के अध्यक्ष श्री सुशील भाई चावत, उत्तर गुजरात श्रावक समिति के अध्यक्ष श्री केतनभाई डूंगरवाल, मूर्तिपूजक समाज के श्री सीसी सेठ, स्थानीय दिगम्बर समाज के श्री सुरेश मुनोत ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। स्थानीय तेरापंथ महिला मण्डल से स्वागत गीत का संगान किया। उत्तर गुजरात के 17 ज्ञानशाला से आए ज्ञानार्थियों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी। 

 

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