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आत्म युद्ध कर तरे भवसागर से–आचार्य महाश्रमण

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प्रथम बार तेरापंथ प्रणेता के पदार्पण पर खेड़ब्रह्मा में उत्सव का माहौल

अणुव्रत अनुशास्ता के स्वागत में उपस्थित हुई स्थानीय राज्यसभा सांसद

,खेड़ब्रह्मा, साबरकांठा (गुजरात)।53 हजार किलोमीटर से अधिक की पदयात्रा कर मानवता के उत्थान का महनिय कार्य करने वाले जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम अधिशास्ता युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण अपनी अणुव्रत यात्रा के साथ उत्तर गुजरात क्षेत्र को पावन बना रहे है। आज शांतिदूत का खेड़ब्रम्हा में पदार्पण पर सकल समाज द्वारा भव्य स्वागत किया गया। खेड़ब्रम्हा में प्रथम बार किसी तेरापंथ के आचार्य के पदार्पण से सिर्फ जैन समाज ही नहीं अपितु जैनेत्तर समाज में भी विशेष उत्साह उमंग छाया हुआ था। 

इससे पूर्व प्रातः आचार्य श्री महाश्रमण ने अगिया ग्राम से मंगल प्रस्थान किया। मार्गवर्ती राधीवाड़ एवं कंपा के ग्रामीणों ने अणुव्रत यात्रा के आगमन पर शांतिदूत का भावभीना स्वागत किया। विहार के दौरान आरडेकता इंस्टीट्यूट के समक्ष विद्यार्थियों को भी पुज्यप्रवर का पावन प्रेरणा पाथेय प्राप्त हुआ। गुरुदेव ने उन्हें सद्भावना, नैतिकता एवं नशामुक्ति को जीवन में अपनाने की प्रेरणा प्रदान की। आचार्यश्री के खेड़ब्रम्हा पदार्पण से आज क्षेत्र में उत्सव सा माहौल छाया हुआ था। विशाल जुलूस में श्रद्धालु जयघोषों के साथ शांतिदूत का अपनी धरा पर स्वागत कर रहे थे। जैन समाज की अर्ज पर स्थानीय विमलनाथ जिनालय स्थित जैन उपाश्रय एवं जैन स्थानक में पधार कर गुरुदेव ने मंगलपाठ प्रदान किया। मार्ग में जगह–जगह श्रद्धानत भक्तजनों को आशीर्वाद प्रदान करते हुए आचार्य श्री लगभग 11 किमी. का विहार कर डी.एच त्रिवेदी स्कूल में प्रवास हेतु पधारे। सायं पुज्यप्रवर का रात्रि प्रवास हेतु तेरापंथ भवन में पधारना हुआ।

धर्मसभा में संबोधित करते हुए गुरुदेव ने कहा– इस दुनिया में हर प्राणी को शांति अभिष्ट है और सब शांति चाहते हैं। कभी–कभी कही युद्ध भी हो जाता है, शांति का विनाश भी हो जाता है और फिर युद्ध विराम की बात भी आती है। यह तो बाहरी युद्ध की बात हो गई। किंतु उससे भी महत्वपूर्ण है आत्म-युद्ध। हम आत्म युद्ध करे, स्वयं स्वयं से युद्ध करे। यह आध्यात्मिक युद्ध है। भीतर में जो कषाय है, हिंसा, घृणा, राग के भाव है उनसे लड़े और दूर करने का प्रयास करे। व्यक्ति की आत्मा का मोहनीय कर्म सबसे बड़ा शत्रु है। उसे परास्त करने का प्रयास करे।

आचार्य श्री ने आगे बताया कि आत्म युद्ध यानी असद से सद की ओर प्रस्थान करना है। तमस से प्रकाश की ओर प्रस्थान करना है। क्रोध को उपशम द्वारा, अहंकार को नम्रता द्वारा, माया को ऋजुता और लोभ को अनासक्ति द्वारा जीता जा सकता है। यह आत्म युद्ध व्यक्ति को इस भव सागर से तराने वाला होता है। भीतर की दूर्वृत्तियों को जीतकर अपनी आत्मा को हम निर्मल बनाएं। 
प्रसंगवश आचार्य श्री ने कहा कि आज हमारा खेड़ब्रम्हा में आना हुआ है। पूर्व में आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी अपनी युवाचार्य अवस्था में यहा पधारे थे। लगभग 40 वर्ष पूर्व की वह बात है। यहां की जनता में धार्मिक चेतना बढ़ती रहे। 

इस अवसर पर इस अवसर पर राज्यसभा सांसद रमीलाबेन बारां ने अपने क्षेत्र में शांतिदूत का अभिनंदन करते हुए कहा कि आपके आगमन से हमारी यह धरा धन्य हो गई है। आपके संदेशों को हम अपने जीवन में अपनाकर औरों को भी प्रेरित करेंगे। 
अभिव्यक्ति के क्रम में तेरापंथ सभा संरक्षक शंकरलाल पितलिया,सभाध्यक्ष सुरेश छाजेड़,महिला मंडल अध्यक्षा श्रीमती हीना दक, विपिन पिपलिया,प्रेक्षा पितलिया, जितेंद्रभाई मेहता,विनोद सूर्या,नट्टू भाई पटेल,डॉ. परेशभाई आदि ने अपने विचार रखे। युवक परिषद, महिला मंडल, कन्या मंडल के सदस्यों ने सामूहिक गीत का संगान किया। ज्ञानशाला के बच्चों ने महाश्रमण अष्टकम की प्रस्तुति दी।

 

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