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संप्रदायातीत है अणुव्रत आंदोलन – आचार्य महाश्रमण

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अणुव्रत अमृत महोत्सव का हुआ मंगल शुभारंभ

युगप्रधान गुरुदेव ने की एक वर्षीय अणुव्रत यात्रा की घोषणा
खेरोज, साबरकांठा (गुजरात)।मंगलवार का सूर्योदय आज अपने साथ मंगल ही मंगल घड़ियां लेकर उदित हुआ। गुरुदेव के मुखारविंद से हुई विशेष घोषणाओं ने आज के दिवस को अतिविशिष्ट बना दिया। अणुव्रत आंदोलन के 75 वें वर्ष प्रवेश पर अणुव्रत अनुशास्ता आचार्य श्री महाश्रमण जी द्वारा 'अणुव्रत अमृत महोत्सव‘ शुभारंभ की घोषणा साथ ही इस एक वर्षीय यात्रा का नामकरण ’अणुव्रत यात्रा’ के रूप में करने की घोषणा से समूचे धर्मसंघ में अनूठा उल्लास छा गया। 1947 में देश की आजादी के बाद आचार्य श्री तुलसी ने स्वस्थ समाज संरचना एवं मानवीय मूल्यों की प्रतिष्ठापना के लिए अणुव्रत आंदोलन का आगाज किया। सरदारशहर में फाल्गुन शुक्ला द्वितीया विक्रम संवत 2005, 01 मार्च, 1949 को इसकी शुरुआत हुई। और फिर इससे प्रभावित होकर लाखों लोगों ने जाति, वर्ण, संप्रदाय से मुक्त इस नैतिकता के आंदोलन में जुड़कर संयम मय जीवन शैली की ओर आपके कदम बढ़ाए। यह एक सुखद संयोग है जब देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है ऐसे समय में अणुव्रत अमृत महोत्सव वर्ष का आयोजन जन–जन में नैतिकता, मानवीय मूल्यों के उन्नयन का कार्य करेगा। 

प्रातः आचार्य श्री ने हडाद ग्राम से मंगल विहार किया। मार्ग में कई स्थानों पर स्थानीय ग्रामवासी ऐसे महान संत को अपने समक्ष पा नतमस्तक हो रहे थे। पुज्यप्रवर ने अपना पावन आशीष उन्हें प्रदान किया। आज के विहार मार्ग भी प्रायः उतार–चढ़ाव युक्त रहा। बनासकांठा जिले को पावन बना गुरुदेव अब साबरकांठा जिले में विचरण कर रहे है। लगभग 07 किमी विहार कर आचार्य श्री खेरोज ग्राम में पधारना हुआ। जहां अणुव्रत से संबंधित कार्यकर्ताओं एवं विद्यार्थियों ने अणुव्रत रैली द्वारा शांतिदूत की अगवानी की। उत्तर बुनियादी उच्चतर माध्यमिक आश्रम शाला में प्रवास हेतु गुरुदेव का पदार्पण हुआ। 

मंगल उद्बोधन देते हुए आचार्य श्री ने कहा– आज अणुव्रत आंदोलन का पचहत्तर वां वर्ष प्रारम्भ हो रहा है। प्रारम्भिक काल में इसके प्रचार–प्रसार के लिए आचार्य तुलसी ने कल्पनाशील मष्तिस्क से कितना चिंतन, योजनाएं बनाई। इसे बडे उत्साह से शुरू किया व कितनी लम्बी–लम्बी यात्राओं द्वारा उन्होंने इस नैतिक आंदोलन आगे बढ़ाया। गरीब की झोपड़ी से राष्टपति भवन तक इसकी पहुँच हो गई। अणुव्रत का स्वरूप इतना व्यापक है कि बिना किसी जाति, धर्म व सम्प्रदाय के यह सबको मान्य है। इसकी कोई सीमा नहीं है। बच्चा, जवान व बूढ़ा कोई भी इसकी अनुपालना कर सकता है। बल्कि मेरा तो यहाँ तक मानना है कि कोई नास्तिक भी हो तो वह अणुव्रत व संयम का पालन कर सकता है व अच्छा जीवन जी सकता है। 

गुरुदेव ने आगे कहा कि अणुव्रत प्रारम्भ दिवस  के साथ अष्टम आचार्य श्री कालूगणी का जन्म दिवस भी जुड़ा हुआ है। अणुव्रत व मानवता को हम शुद्ध साध्य माने तो आर्थिक सुचिता को शुद्ध साधन माना जा सकता है। अपेक्षा है की साध्य और साधन दोनों शुद्ध हों। हमारी अहिंसा यात्रा भी इस आन्दोलन से जुडी हुई ही है। सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति के ये उद्देश्य अणुव्रत के सिद्धांतो से जुड़े हुए है। इस अमृत वर्ष में अणुव्रत के क्षेत्र में और कार्य हो, व्यापकता आए यह काम्य है। 

इस अवसर पर मुख्यमुनि श्री महावीर कुमार जी, साध्वीप्रमुखा श्री विश्रुतविभा जी, साध्वीवर्या संबुद्धयशा जी का सारगर्भित वक्तव्य हुआ। मुनि मनन कुमार जी ने अपने विचार व्यक्त किए।कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।
अणुव्रत विश्व भारती सोसायटी के अध्यक्ष श्री अविनाश नाहर ने अणुव्रत आचार संहिता का वाचन किया। खेड़ब्रम्हा के विधायक श्री तुषार चौधरी, अमृत महोत्सव के राष्ट्रीय संयोजक श्री संचय जैन, श्री राजेश सुराणा, श्रीमती कुसुम लुनिया, महामंत्री श्री भीखमचंद सुराणा ने विचारों को प्रस्तुति दी। श्री ऋषि दुगड़ सहित कार्यकर्ताओं ने अणुव्रत गीत का संगान किया। विद्यालय के विद्यार्थियों ने लघु नाटिका द्वारा प्रस्तुति दी। 

तदुपरांत अणुव्रत पत्रिका का नवीन अंक, प्रबोधन प्रतियोगिता 2023, ईको फ्रेंडली होली पोस्टर आदि का पुज्यप्रवर के समक्ष विमोचन किया गया।

 

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