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सुशिक्षित एवं सुसंस्कारी नारी करती है राष्ट्र के उज्ज्वल भविष्य का निर्माण - राज्यपाल आचार्य देवव्रत

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सुसंस्कारी  समाज की निर्मात्री है नारी -आचार्य श्री महाश्रमण

अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल के त्रिदिवसीय राष्ट्रीय अधिवेशन संरक्षणम् में मुख्य अतिथि गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने दिया महत्वपूर्ण उद्बोधन

सूरत।महा तपस्वी युग प्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी के मंगल सानिध्य में भगवान महावीर यूनिवर्सिटी, वेसु में 20 से 22 सितंबर तक आयोजित त्रिदिवसीय अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल के 49वें वार्षिक महिला सम्मेलन ‘संरक्षणम्’ के पहले दिन सम्मेलन में राज्यपाल आचार्य देवव्रत की मुख्य अतिथि के रूप में विशेष उपस्थिति रही।
             इस अवसर पर राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने कहा कि आचार्य श्री महाश्रमण जी महान धर्माचार्य है आपका समग्र जीवन मानवता के लिए समर्पित है आपके दर्शन पूर्व में भी मैंने कई बार किए हैं और आपके बीच आकर मुझे ऐसा लग रहा है कि मैं आपके परिवार का ही सदस्य हूं। मैं पूज्य आचार्यवर के चरणों में वंदन करता हूं। 
           राज्यपाल महोदय ने महिलाओं को संबोधित करते हुए कहा कि भारतीय नारीशक्ति ने हमेशा भारत की संस्कृति और परंपराओं को गौरवान्वित किया है। भारत के प्राचीन इतिहास को देखने से लगता है कि नारी का स्थान भारतवर्ष में बहुत ऊंचा था। कुछ क्षेत्रों में तो नारी का स्थान पुरुषों से भी ऊंचा था। रामायण काल में सुलभा साध्वी का उल्लेख आता है। उसे शास्त्र में बड़े-बड़े दिग्गज विद्वान भी पराजित नहीं कर पाए थे। महासती गार्गी ने महर्षि याज्ञवल्क्य को शास्त्र चर्चा में पराजित कर दिया था। मध्यकाल में विदेशियों के आक्रमण ने भारतीय नारी समाज का शोषण किया। उनकी शक्तियों को दबा दिया गया। आज फिर से भारतीय नारी अपनी अस्मिता दिखा रही है। शिक्षा का क्षेत्र हो, सामाजिक क्षेत्र हो या राष्ट्र की सुरक्षा का क्षेत्र हो, सर्वत्र भारतीय नारी अपनी प्रतिभा दिखा रही है। लेकिन नारी जाति को अब एक बात का ध्यान रखना है कि उसकी स्वतंत्रता कहीं स्वच्छंदता में परिणमित न हो जाए। नारी अबला नहीं सबला है। उसके ऊपर बच्चों के संस्कार निर्माण की बड़ी जिम्मेदारी है। संस्कारवान बच्चा माँ और परिवार के लिए सबसे बड़ी पूंजी है। भारत के ऋषि-मुनियों ने प्राचीनकाल से ही सोलह संस्कारों की अवधारणा दी है। गर्भ संस्कार ऋषि परंपरा से स्वीकृत है।
           उन्होंने कहा कि राष्ट्र का निर्माण आधुनिक सुख-सुविधाओं के विकास से नहीं, बल्कि वीर माताओं के शौर्य, संस्कार और सतीत्व के उजागर होने से होता है। समाज और संस्कृति को उन्नति या पतन की ओर ले जाना नारीशक्ति पर ही निर्भर है, ऐसा मत व्यक्त करते हुए उन्होंने नारियों से राष्ट्र निर्माण में भागीदार बनने का आह्वान किया।
            करुणा, प्रेम, वात्सल्य और अद्भुत सहनशक्ति का स्रोत नारी है –ऐसी प्रेरणादायक परिभाषा देते हुए उन्होंने प्रकृति द्वारा नारी को दी गई अपार शक्ति के भंडार का परिवार, समाज और राष्ट्रहित में उपयोग करने की शिक्षा दी।
          राज्यपाल  आचार्य देवव्रत  ने कहा कि प्राचीन, मध्य और वर्तमान, इन तीन कालों में विभाजित भारत का इतिहास विविधतापूर्ण रहा है। प्राचीन काल में नारी पुरुष के समान या उससे भी अधिक सम्मानित थी, लेकिन मध्यकाल में स्थिति दयनीय हो गई। मध्यकाल में महिलाओं पर जितना अत्याचार हुआ, उतना ही वर्तमान में महिलाएँ आगे बढ़ रही हैं।
          उन्होंने परिवार और समाज की चालक शक्ति समान नारीशक्ति की सराहना करते हुए कहा कि समाज और संस्कृति की जननी नारीशक्ति ही है। भारतीय सनातन संस्कृति सदियों से नारी को देवी रूप में मानती आई है। जहाँ नारी का सम्मान होता है, वहाँ देवों का वास होता है, ऐसा भाव वेद-पुराणों ने सिखाया है। आधुनिक युग में भी अध्यात्म और परिवारवाद की संस्कृति को संजोने वाले सभी महिला सदस्यों और पदाधिकारियों को राज्यपाल ने बधाई दी।
      शांतिदूत महातपस्वी आचार्य श्री महाश्रमण जी ने अपने मंगल उद्बोधन में कहा --  समाज में स्त्री और पुरुष दोनों का समान योगदान रहा है और रहेगा। आचार्य श्री तुलसी ने समाज के निर्माण हेतु अणुव्रत आंदोलन का प्रवर्तन किया। चार दिवारी और घूंघट में रहने वाली तेरापंथ समाज की नारी के उत्थान के लिए भी उन्होंने बहुत काम किया। आज फिर से तेरापंथ समाज की महिलाएं हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही है। वे सुंदर मंच संचालन कर सकती है। प्रभावशाली वक्तव्य भी दे सकती है। उनका योगदान धार्मिक क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण रहा है। प्राचीन काल में देखें तो भगवान महावीर के समय में 14000 साधु और 36000 साध्वियां थी।  आज भी हमारे संघ में साधु 150 है जबकि साध्वियां 550 है। तो अध्यात्म के क्षेत्र में भी नारी की महत्वपूर्ण भूमिका उजागर हो रही है। तेरापंथ की नारी कन्या भ्रूण हत्या की रोकथाम के लिए सक्रिय भूमिका निभा रही है। इसका मुख्य दायित्व है संस्कार निर्माण और सत्संस्कारों की सुरक्षा। शिक्षा का क्षेत्र, सामाजिक क्षेत्र और नेतृत्व के क्षेत्र में भी नारी आगे बढ़ रही है। उसे पुरुष समाज के संरक्षण की भी आवश्यकता है। उन्होंने कहा राज्यपाल श्री देवव्रत जी प्रबुद्ध व्यक्तित्व के धारक हैं। विशिष्ट वक्ता हैं। वे कई बार हमारे पास आते रहे हैं। उन्हें मिलकर एक आनंद की अनुभूति होती है।
             साध्वी प्रमुखा श्री विश्रुतविभाजी ने कहा -- तेरापंथ की नारी अच्छी गृहिणी तो है ही साथ-साथ आत्मनिर्भरता की ओर भी आगे बढ़ रही है। बच्चों और समग्र परिवार में संस्कार सिंचन करते हुए वह स्वस्थ समाज और समृद्ध राष्ट्र के निर्माण में भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रही है।
           इस अवसर पर मंडल की उपाध्यक्ष नीलम सेठिया, महामंत्री नीतू ओस्तवाल, पुलिस आयुक्त  अनुपमसिंह गहलोत, भगवान महावीर विश्वविद्यालय के अध्यक्ष डॉ.संजय जैन, तेरापंथ चातुर्मास समिति के अध्यक्ष संजय सुराणा, महामंत्री नानालाल राठौड़, उपाध्यक्ष अंकेश शाह, अनिल चंडालिया, संजय भंसाली, भगवान महावीर यूनिवर्सिटी के संजय जैन, अनिल जैन,जगदीश जैन एवं तेरापंथ युवा परिषद के अध्यक्ष अभिनंदन गादिया, प्रिंट मीडिया प्रभारी अर्जुन मेडतवाल,अग्रणी विनोद जैन,संजय बोथरा, रत्न भालावत, तेरापंथ समाज के अग्रणी सदस्य और बड़ी संख्या में महिलाएँ उपस्थित थीं।

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