सूरत। जन-जन का कल्याण करने वाले, सद्भावना व नैतिकता जैसे शुभ संकल्पों के माध्यम से जनता को सन्मार्ग दिखाने वाले युग दिवाकर खरतरगच्छाधिपति आचार्य श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. का भव्य चतुर्मास सूरत के पाल क्षेत्र में हो रहा है। शहर के पाल में श्री कुशल कांति खरतरगच्छ जैन श्री संघ पाल स्थित श्री कुशल कांति खरतरगच्छ भवन में होना मानों सूरत शहरवासियों के लिए एक अविस्मरणीय समय बन गया है। श्रद्धालु आध्यात्मिकता का पूरा लाभ लेने का प्रयास कर रहे हैं। शुक्रवार 20 सितंबर को श्री कुशल कांति खरतरगच्छ भवन में युग दिवाकर खरतरगच्छाधिपति आचार्य श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. ने प्रवचन में कहा कि बिना विनय में आगे नहीं बढ़ सकते। अध्यात्म, आत्मा और साधना के क्षेत्र में आगे बढ़ना है तो अपने अंतर में विनय धारण करना होगा। विनय से कोमलता, नम्रता और हमारी दृष्टि में सरलता आ जाती है। आनंद के साथ झेले जाने वाले कष्ट आदमी को मजबूत करते है।
उन्होंने कहा कि अहंकार हमेशा बाहर के कारण होता है, स्वयंम के कारण होनेवाला गौरव है। आज पांचवे अध्ययन की शुरूआत हुई। 45 आगम है, लेकिन एक उत्तराध्ययन सूत्र भी अच्छे से पढ़, सून, समझ लिया जाए तो निश्चित रूप से आत्मा का कल्याण हो जाएगा। उत्तराध्ययन सूत्र जीवन के राज, कला, महत्ता समझाता है। आचार्यश्री ने कहा कि मृत्यू कैसी हो यह बहुत महत्वपूर्ण प्रश्न है। मृत्यू कब हो यह महत्वपूर्ण नहीं हैं, क्योंकि वह हमारे हाथ में नहीं है। मृत्यू दो प्रकार के होते है हसते- हसते मरना और रोते - रोते मरना। नवकार का जाप करते हुए मृत्यू से बिना भयभीत हुए मुझे तो आत्मा का कल्याण करना है यह सोचते हुए मरण समाधि है। उन्होंने कहा कि जिसका समाधि मरण होता है वहीं सद्गति को प्राप्त करता है, सक्लेश मरण वाला निम्म गति को प्राप्त करता है। संसार से कोई भी व्यक्ति तृप्त नहीं हो सकता। धर्म जिसे समझ आ गया वह परम तृप्ति का अनुभव करता है। हमारे अंदर समाधि मरण की जिज्ञासा होनी चाहिए। समाधि मरण हो इसका निर्णय आपका वर्तमान करता है।