करीब 250 व्यक्तियों का संघ गया गुरु दर्शन को सूरत
साहूकारपेट।जो व्यक्ति क्रोध, गुस्से की गिरफ्त में आ जाता है, वह सदैव स्वयं तो अशांत रहता है ही, साथ में परिवारीक वातावरण को भी अशांत बना देता है। उपरोक्त विचार तेरापंथ सभा भवन में 'कषाय मुक्ति' प्रवचन माला के अन्तर्गत गुरुवार को मुनि हिमांशुकुमारजी ने कहें।
मुनि श्री ने आगे कहा कि क्रोध विष, आग, चण्डाल, वायरस, पागलपन, अंधें, तुफान, दीमक के समान है। क्रोधी व्यक्ति का जीवन अस्तव्यस्त हो जाता है। हमारे अवचेतन मन में बार बार उत्पन्न होने वाले नकारात्मक विचार, प्रभाव के कारण स्रावों का गलत दिशाओं में गति होने से व्यक्ति क्रोधित दशा में रहता है।
मुनि श्री ने क्रोध आने के कारणों का धर्मपरिषद् से लेते हुए अनेकों कारण बताते हुए कहा कि रागभाव, मन के विपरीत कार्य होने, अहं पर चोट के कारण, शारीरीक कमजोरी, बिमारी की अवस्था, गलती को बार बार दोहराने, स्वार्थ पूर्ति में बाधा पड़ने, अनुचित- गलत व्यवहार होने पर, हार्मोंस के असंतुलन, मोहनीय कर्म के उदय, तामसिक भोजन, नियमित रुखा भोजन, अत्यधिक समस्याओं से ग्रस्त होने, श्वास का छोटा होना, अनिन्द्रा, दवाओं के साइड इफेक्ट्स इत्यादि अनेकों कारणों से जीवन में क्रोध- गुस्से की स्थिति आ सकती है। अतः क्रोध की लकीर को छोटा करने के लिए जीवन में क्षमा, शांति, सहिष्णुता, समता आदि से बड़ी लकीर खिचनी चाहिए।
मुनि श्री हेमंतकुमार जी ने कहा कि उत्तराध्यन सूत्र में बताया गया है कि गुरु की आज्ञा में रहने, एकाग्रचित्त रहने, तप- इन्द्रिय संयम, प्रिय- सरल व्यवहार और प्रिय- मधुर वाणी बोलने वाला सम्यग ज्ञान की दिशा में आगे बढ़ सकता है।
★ गुरु दर्शन को सूरत पहुंचा चेन्नई श्रावक समाज
तेरापंथी सभा, तेरापंथ ट्रस्ट साहूकारपेट, तेरापंथ ट्रस्ट माधावरम् से लगभग 250 श्रावक समाज का संग गुरुदेव आचार्य श्री महाश्रमणजी के दर्शन, खमतखामणा करने, आराधना करने, आलोयणा लेने के सोद्देश्य से चेन्नई से मुनिवंदों एवं साध्वीवृंदों से मगलपाठ श्रवण कर सूरत के लिए प्रस्थान किया।