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भीतर के अज्ञान को जाने–आचार्य महाश्रमण

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-गुरुदेव द्वारा भगवती पर जारी व्याख्यानमाला का क्रम

सोमवार, घोड़बंदर रोड, मुंबई।अपने पावन प्रवचनों द्वारा शास्त्र वाणी को सरल, सुबोध शब्दों में व्याख्यायित करने वाले, प्रभावी प्रवचनकार अणुव्रत अनुशास्ता आचार्य श्री महाश्रमण जी का नंदनवन, मुंबई में चातुर्मास सानंद गतिशील है। तीर्थंकर समवसरण से प्रसारित ज्ञान वाणी का श्रवण कर जनसमुदाय सदाचार मय जीवन जीने की सम्यक दिशा को प्राप्त कर रहा है। परिसर में होने वाले प्रातः कालीन वृहद मंगलपाठ, मुख्य प्रवचन कार्यक्रम, रात्रिकालीन रामायण एवं दर्शन, सेवा–उपासना का श्रावक समाज उल्लास के साथ लाभ उठा रहा है। 

मंगल प्रवचन में धर्म देशना देते हुए आचार्य श्री ने कहा– प्रवचन व प्रावचनी इन दो शब्दों का भगवती आगमन में वर्णन प्राप्त होता है। तीर्थंकर प्रभु प्रवचन कार होते हैं अतः वे प्रावचनी व आगम में प्रवचन संग्रहित है अतः उन्हें प्रवचन कहा गया है। आचार्य के पास आगम संपदा होती है और यह एक प्रकार की मंजूषा है, जिसे हम ज्ञान मंजूषा भी कह सकते है। प्रथम अंग है - आचारंग जिसमें भगवान महावीर की स्तुति भी की गई है। आगमों के ग्यारह अंगों है। जैसे- आचारंग, सुयगडो, ठाणं, समवाय, व्याख्या प्रज्ञप्ति अर्थात भगवती सूत्र, अंतगड़ दशाओ, ज्ञाता धर्म कथा, उपासक दशा, प्रश्न दशा व विपाक सूत्र। तीर्थंकर इनके प्रवचनकार होते हैं जिन्हें प्रावाचीय कहा गया है। ये आगम हमारे आत्म निर्देशक व पथ दर्शक भी होते हैं।

आचार्य प्रवर ने आगे बताया कि प्रवचन का बड़ा महत्व है। चौबीस घंटे में एक बार भी प्रवचन होने से स्वयं का भी स्वाध्याय हो जाता है, आगम वाणी का वाचन भी हो जाता है व श्रोताओं को भी लाभ मिल जाता है। ज्ञानी वह होता है जो अपने को पूर्ण ज्ञानी नहीं समझता। मेरे में ज्ञान कम व अज्ञान ज्यादा है, यह समझने वाला ज्ञान प्राप्त कर सकता है। ज्ञान अथाह है। अतः हम अपने भीतर के अज्ञान को समझने का प्रयास करते रहे तो थोडा ज्ञान भी हमारे लिए कल्याणकारी बन सकता है।

कार्यक्रम में मोतीलाल जी दुगड़ (बीकानेर–काठमांडू, नेपाल) ने अपनी आत्मकथा ’कृषि कर्म से जल विद्युत तक’ पूज्य चरणों में भेंट की एवं अपनी भावाभिव्यक्ति दी। 


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