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सूरत की धरा के कण-कण में आध्यात्मिक संस्कार समाहित है-मुनि श्री उदित कुमार

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हमारे भीतर करुणा की चेतना का विकास हो-मुनि श्री मोहजीत कुमार*

तेरापंथ भवन में फैली मानवता की अनूठी महक

(गणपत भंसाली)
सूरत। शनिवार को सिटीलाइट स्थित तेरापंथ भवन में चहुं और मानवता की महक फैली नजर आई। व विविधता का संगम दिखा। अवसर था शांतिदूत आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनि श्री उदित कुमार जी व मुनि श्री मोहजीत कुमार जी आदि संतों के सान्निध्य में "निड ऑफ ह्यूमन वेल्यू इन लाइफ" विषय पर एक संगोष्ठी का। संगोष्ठी का आगाज श्री शैलेश मेहता ने अणुव्रत संगान के द्वारा किया। मुनि श्री उदित कुमार जी ने प्रासंगिक उद्बोधन देते हुए फ़रमाया कि आचार्य श्री महाश्रमण अक्षय तृतीया प्रवास व्यवस्था समिति के तत्वाधान में आज की संगोष्ठी बहुत ही प्रभावी नजर आ रही है और इसकी थीम "नीड ऑफ ह्यूमन राइट इन लाइफ" (जीवन में मानवीय मूल्यों की आवश्यकता) बहुत ही प्रासंगिक है। अब प्रश्न उठता है क्या हमारे जीवन में मानवीय मूल्य नहीं है? मुनि श्री ने कहा कि यह तो हमारे देश की अद्वितीय संस्कृति है व  देश की अनूठी विरासत है व देश का गौरव है कि यहां ह्यूमन वैल्यू हर व्यक्ति के जीवन में अणु-अणु व कण-कण में विद्यमान है, सम्भवत बहुत कम ऐसे व्यक्ति होंगे कि  जिसके भीतर मानवीय मूल्यों का अभाव होगा। बस काम इतना सा ही करना है कि जिनमें मानवीय मूल्य जागृत है उन्हें पूर्णरूपेण जागृत करना है और जहां कहीं भी ये मूल्य सुषुप्त अवस्था मे है तो उन्हें जागृत करना है, उसे सोने नहीं देना है। जिसके भीतर में है और जो आवरण आया हुआ है, उस आवरण को हटाना है। मुनि श्री ने फरमाया की समय-समय पर महापुरुष,संतजन व विशिष्ट व्यक्तित्व की संगत लगती है तो वे मानवीय मूल्यों की पुनर्स्थापना हेतु प्रयत्न रहते हैं। यह सम्भव है कि महापुरुषों व प्रत्येक धर्म गुरु की धर्मचर्या अलग हो सकती हैं लेकिन उनके कार्यक्रम "सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय" की तर्ज पर ही होते हैं। 

अणुव्रत आंदोलन से नशा मुक्ति व नैतिकता भरा अभियान

अणुव्रत में अपने पर अपना अनुशासन का महत्व बताया गया है अथार्त  हम स्वयं पर अनुशासन करें और अनुशासन करने की पूरी एक प्रक्रिया है। अणुव्रत आंदोलन किसने शुरू किया ?  यह उल्लेखनीय है कि अणुव्रत आंदोलन का सूत्रपात एक जैन आचार्य ने  किया,  जैन आचार्य जैन साधु आदि आचार सहिंता की पालना तत्परतापूर्वक करते है,  किंतु अणुव्रत के प्रचार प्रचार में जैनत्व कभी बाधक नहीं बना। अणुव्रत आंदोलन के प्रवर्तक आचार्य श्री तुलसी से जब अपना परिचय देने को कहा गया तो उन्होंने कहा कि सबसे पहले में मानव हूं, फिर भारतीय हूं, फिर जैन हूं और उसके बाद जैन परंपरा में एक संप्रदाय का आचार्य हूं। अगर इस तरह से कोई व्यक्ति कार्य करें तो वह कार्य कितना सफल हो जाता है। और यही बात अपने उनके उत्तराधिकारी आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी करते रहे हैं। कोबा की प्रेक्षा विश्व भारती में आचार्य श्री महाप्रज्ञ के पास पूर्व राष्ट्रपति श्री अब्दुल कलाम पधारे और बोले कि गुरु जी तो आप क्या संदेश देना चाहते हैं ? तो महाप्रज्ञ बोले कि राष्ट्रपति महोदय आपको काम ये करना है कि जो पॉलिटिकल पार्टियां होती है वे सभी अपने अपने ढंग से काम करती है, लेकिन जब प्रश्न राष्ट्र का आता है, तो वहां सारे दल एकमत हो जाते है, अतः उन सभी पार्टियों के नेताओं को मानवीय मूल्यों की रक्षा व पुनर्स्थापना हेतु प्रेरित करना हैं। व इस बिंदु पर सभी को आगे बढ़ना चाहिए। मुनि श्री ने कहा कि धर्म सम्प्रदाय से जुड़े सन्तजनों ऋषि मुनियों की बात का समाज-सोसायटी में बहुत बड़ा प्रभाव पड़ता है। ये सर्वविदित है कि सभी धर्म गुरु अपने-अपने मत व मान्यता अनुसार अपने-अपने धर्म संप्रदाय का प्रचार प्रचार करते किंतु बात जब मानवता की आती है वहां सम्प्रदाय गौण हो जाता है। परम पूज्य गुरुदेव तुलसी ने कहा है कि धार्मिकता के दो पहलू है पहला उपासना और दूसरा आचरण, व्यक्ति मंदिर जाता है, उपवास व्रत आदि करता है व अन्य विधि-विधान करता है ये तो है उसकी उपासना पद्धति और दूसरा है  आचरण, इसके अंतर्गत व्यक्ति के जीवन में धार्मिकता कितनी है ? उसका वर्ताव कैसा है ?  आचार्य श्री तुलसी ने जब अणुव्रत आंदोलन का प्रवर्तन किया तो अनेकों लोग उनसे प्रश्न करते थे कि अणुव्रत अपनाने के लिए क्या हमें सम्प्रदाय परिवर्तन करना पड़ेगा? तो आचार्य श्री कहते कि अणुव्रत स्वीकार करने के लिए सिर्फ मानवीय मूल्यों को प्राथमिकता देनी है, अणुव्रत में किसी भी धर्म-सम्प्रदाय जाति, वर्ण आदि से जुड़ा व्यक्ति शामिल हो सकता है, अणुव्रत के नियमों को अपना सकता हैं। अणुव्रत से पूर्व राष्ट्रपति डॉ श्री राजेन्द्र प्रसाद से लेकर प्रायः सभी राष्ट्रपतियों व प्रधानमंत्रियों  का जुड़ाव रहा। पंडित नेहरू ने तो यहां तक कहा था कि आप जिस मानवता युक्त धर्म की बात कर रहे हैं तो उसमें सबसे पहले मेरा नाम लिखें।  और अभी गत वर्ष जब आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी के शताब्दी वर्ष का समापन हो रहा था तो हमारे देश के वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था की ये तेरापंथ नही है बल्कि ये मेरा पंथ है। जब एक बार आचार्य तुलसी अपना काम में मग्न थे तो अचानक आर एस एस से जुड़े एक व्यक्तित्व उनके सामने खड़े हुए तो आचार्य श्री की दृष्टि गई और उनसे बोले कि अरे बिना किसी पूर्व सूचना के आप श्री का अचानक आगमन कैसे हुआ?  तो गुरुजी ने कहा कि आप सांस्कृतिक मूल्यों के उन्नयन हेतु प्रयत्नरत है तो अचानक आने में कोई दिक्कत नहीं है।

आचार्य श्री महाश्रमण जी का सूरत प्रवास 22 अप्रैल से

 अब आगामी दिनों  22 अप्रैल को उन्हीं की परंपरा के आचार्य श्री महाश्रमण जी सूरत की धरा पर पधार रहे, उनका सूरत में संक्षिप्त प्रवास रहेगा जो भगवान महावीर यूनिवर्सिटी में होना तय हुआ है। इस प्रवास के मद्देनजर समय समय पर ऐसी संगोष्ठियां आयोजित कर कुछ ऐसा निर्धारित किए जाए कि जिससे मानवता की महक फैले। 

उद्योगपतियों, स्कूल प्रबन्धको व हॉस्पिटल संचालकों से नशा मुक्ति आदि की अपील

यहां जो महानुभाव बैठे हैं, उसमें से प्रत्येक व्यक्ति अपने आप मे एक संस्था है। लोग अलग-अलग कंपनी में काम करते हैं, वहां ह्यूमन वैल्यू को कैसे प्रैक्टिकल में साकार रूप दे सकते हैं। मैं कई व्यक्तियों से परिचित हूं और कई व्यक्तियों के बारे में मुझे जानकारी है। मुझे लगता है कि मेरे सामने जो बैठे हैं, उन तक बात पहुंचने का मतलब और हजारों-हजारों लोगों तक हमारी बात पहुंचाने जैसा है, वह भी बहुत प्रभावी ढंग से इस कार्य को आगे बढ़ाया जा सकता है। मानवता के प्रचार-प्रसार हेतु हम हॉस्पिटल, उद्योग-व्यापार आदि सर्वत्र प्रभावी भूमिका निभा सकते हैं। अगर कोई व्यक्ति राहत दरों पर हॉस्पिटल सेवाएं उपलब्ध करा रहे हैं तो वहां मरीज के स्वस्थ हो जाने के पश्चात उससे अपील की जाए कि वो व उनके परिवार जन जिंदगी में कभी नशा नही करेंगे, इससे आपका शरीर स्वस्थ रहेगा आपकी आत्मा भी निर्मल रहेगी। इसी तरह एज्युकेशन से जुड़े अनेकों लोग हमारे सामने मौजूद है जिनके यहां सैकड़ों अध्यापक सेवारत व हजारों विद्यार्थी अध्ययनरत रहते हैं तो वे अपने स्कूल, कॉलेज व यूनिवर्सिटी आदि में अध्यापकों से कहे कि वे विद्यार्थियों को नशा न करने की प्रेरणा दें। अणुव्रत में शिक्ष व विद्यार्थी अणुव्रत भी है। शिक्षक और विद्यार्थी अणुव्रत का मतलब है छोटे-छोटे नियम जो संप्रदायवाद से सर्वथा मुक्त है। सामाजिक संस्थाओं से जुड़े हुए जो लोग हैं जिन जिन समाजों से जुड़े हुए हैं वे आपस मे समरसता बढ़ाने हेतु प्रयत्न करें। किसी प्रकार  का आपसी मनमुटाव व भ्रांतियां हो तो उन्हें दूर करें व आपसी समरसता बढ़ाएं  तो भी यह भी बहुत बड़ा काम हो सकता है। हमारा शारीरिक स्वास्थ्य अच्छा रहे ऐसे व्यापारी वर्ग से जुड़े हुए हैं वे कोई ऐसी वस्तु न बेचे जिसमें मिलावट हो और वो वस्तु हमारे स्वास्थ्य से जुड़ी हुई है। यह मानवीय मूल्य का एक बहुत बड़ा कार्य हो जाएगा। मेरे सामने कई उद्योगपति बैठे हैं मैं उनसे अपील करना चाहूंगा अपने उद्योग में जो श्रमिक व कर्मचारी काम करते हैं, उनके लिए नशा मुक्ति का अभियान चलाएं और आपको विश्वास हो जाए कि फलां कर्मचारी नशा मुक्ति की ओर कदम बढ़ा रहा है तो आप ऐसी प्रोत्साहन योजना चलाएं कि जो नशा मुक्त रहेगा उनके लिए मैं यह स्कीम चला लूंगा, या इतनी अतिरिक्त रकम आपके खाते में डाल लूंगा। अपने-अपने फील्ड का आपको नॉलेज है उसे ऐसी कोई योजना बने और इस योजना को लागू करें। आप एक समिति का गठन करें और उस योजना को व्यवस्थित रूप दें और आचार्य श्री महाश्रमण जी पधारे तब एक ऐसा डिक्लेरेशन के रूप में बनाए जो कि वर्ष 2024 में आचार्य श्री महाश्रमण जी जब चातुर्मास हेतु सूरत पधारे तब उसे एक कार्यक्रम के रूप में रखा जाए। तो अच्छा काम हो सकता है। मेरा मानना है कि सूरत की माटी में आध्यात्मिक संस्कार है मानवता के संस्कार है, बस उन्हें केवल पुनर्जीवित करना हैं। जिन्होंने इस संगोष्ठी की रूपरेखा बनाई है, अपना चिंतन दिया व समय दिया उनके लिए धन्यवाद कहना बहुत छोटी बात है उन्होंने बहुत बड़ा कार्य किया है।


हमारे भीतर करुणा की चेतना का विकास हो-मुनि मोहजीत कुमार

इस अवसर पर मुनि श्री मोहजीत कुमार जी ने कहा कि मानवीय मूल्यों को सुरक्षित रखने के लिए जरूरी है हमारे भीतर करुणा की चेतना का विकास हो व हमारे भीतर वो भाव प्रकट हो जो व्यक्ति के भीतर मानवता के साथ जुड़े हो। हर इंसान को इंसान की भाषा में समझने का प्रयत्न करना चाहिए हमारा मान हमारा गांव हमारा चिंतन हमारा धर्म हमारा विश्वास अगर अपने स्वयं के प्रति जागरूक है स्वयं के प्रति जागरूक होने के साथ मानवीय मूल्यों के साथ जागरूक होना जरूरी है। अपने ऋषि-मुनियों के परम्परा में प्रत्येक धर्म, प्रत्येक जाति व प्रत्येक संप्रदाय जो स्वयं मानवीय मूल्यों को आत्मसात करते हुए वे स्वयं मानवीय मूल्यों को अपने भावों को जीवन में साथ में जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं। विश्वास को गिराने का प्रयास किया। अगर कहीं प्रेम की कमी है करुणा की कमी है मित्रता की कमी है सह्रदयता की कमी है, विश्वास की कमी है तो वहां मानवीय मूल्य नीचे चले जाते हैं व व्यक्ति में स्वार्थ की चेतना बढ़ जाती है । मुनि श्री कहा कि प्रेक्षा प्रणेता आचार्य श्री महाप्रज्ञ 2003 में सूरत में पधारे थे आपने उनको सुना, उनके व्यक्तित्व को परखा, अब शांतिदूत आचार्य श्री महाश्रमण जी मानवीय मूल्यों की प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए जनजीवन तक पहुंचाने के लिए वे यात्रा कर रहे हैं लगभग 55000 किलोमीटर तक की यात्रा आप कर चुके हैं। आपकी यात्रा कासबसे पहला सूत्र है सद्भावना सद्भावना के भीतर है तो उस व्यक्ति का जीवन स्वयं बोलता हुआ नजर आएगा। हम स्वयं भगवान बने ये अच्छी बात है लेकिन दूसरों के प्रति सद्भावना रखने की भावना आत्मसात करनी आवश्यक है। समझदार व बुद्धिमान के साथ साथ व्यक्ति अगर व्यवहार जगत में दक्ष हो तो यह मूल्य हमारे जीवन के साथ जुड़कर जनजीवन के कल्याण के साथ सही हो या गलत हो तो स्वयं की प्रतिष्ठा को आदर बन जाता दर्द बन जाता है हमारे जीवन के साथ जुड़े हुए हैं उन जीवन मूल्यों को परखने की कोशिश करें हम उन मूल्यों के साथ जुड़कर अपने भावों को अपनों को अपने हृदय के चिंतन को स्वयं तक सीमित ना रखें चिंतन को विकास के शिखर तक ले जाने का प्रयोग करें। 

संगोष्ठी में अनेक समाज अग्रणियों की रही मौजूदगी

इस संगोष्ठी में सूरत के अनेक अग्रणी समाज सेवियों की मौजूदगी रही। व सभी ने समाज मे मानवता की महक भरे प्रयासों की आवश्यकता बताई। विशेष कर स्वामी नारायण सम्प्रदाय के संत श्री सुव्रत स्वामी जी, समाज सेवी व सौराष्ट्र जल धारा ट्रस्ट व किरण हॉस्पिटल के प्रबन्धक पदमश्री मथुर भाई सवानी, पटेल समाज के अग्रणी कानजी भाई भलाला,वीर नर्मद दक्षिण गुजरात यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर किशोर सिंह चावड़ा, सूरत मनपा में स्टैंडिंग कमेटी के चेयरमैन परेश पटेल,जीतू भाई शाह, पूर्व पुलिस अधिकारी आर.जे.पटेल, राष्ट्रीय स्वयं संघ के श्री सुरेश पटेल ने अपने ह्रदय के उद्गार प्रकट किए व मानवता भरे विभिन्न प्रयासों की आवश्यकता बताई। इस अवसर पर डोनेट लाइफ संस्था के नीलेश भाई मांडलेवाला, पदम श्री कनु भाई टेलर, जैनम सिक्युरिटी के मिलन भाई पारिख, पर्यावरण प्रहरी विरल देसाई, डॉक्टर एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष डॉक्टर निर्मल चोरड़िया उपस्थित थे। इस संगोष्ठी की सरंचना भरत भाई शाह (छायड़ो)अशोक कानूगो,प्रो.डॉ.संजय जैन,बालू भाई पटेल,संजय सुराणा, राकेश भाई दोशी ने की। आभार श्री अशोक कानूगो ने प्रकट किया व संगोष्ठी का संचालन विश्वेश संघवी ने किया।

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