हाल ही में दिल्ली हाईकोर्ट ने एक फैसले में यह स्पष्ट किया कि स्कूल परिसर में स्मार्टफोन पर प्रतिबंध लगाना कानूनी रूप से उचित नहीं है और अब तक स्कूलों में छात्रों द्वारा स्मार्टफोन लाने से कोई गंभीर नुकसान सामने नहीं आया है। इस फैसले के बाद समाज में नई बहस छिड़ गई है। आज का दौर टेक्नोलॉजी का है और इसमें कोई दो राय नहीं कि बच्चों को स्मार्टफोन के उपयोग से रोकने का अर्थ उन्हें तकनीकी विकास से दूर रखने जैसा है। लेकिन, दूसरी ओर यह भी सच है कि देश के विभिन्न हिस्सों से स्कूली बच्चों द्वारा स्मार्टफोन के दुरुपयोग के कई विवादास्पद मामले सामने आए हैं। ऐसे में हाईकोर्ट का फैसला और समाज का मत दोनों ही महत्वपूर्ण हैं।
स्मार्टफोन के सकारात्मक पहलू
स्मार्टफोन के माध्यम से अध्ययन-अध्यापन की प्रक्रिया आसान, ज्ञानवर्धक और मनोरंजक बन सकती है। इंटरनेट के जरिए छात्र आसानी से शैक्षणिक सामग्री, वीडियो और ऑनलाइन पाठ्यक्रम तक पहुंच सकते हैं। स्मार्टफोन के जरिये छात्र किसी भी विषय पर तुरंत और अद्यतन जानकारी प्राप्त कर सकते हैं, जिससे उनकी ज्ञानवृद्धि और समझ का स्तर बेहतर होता है। साथ ही, वे तकनीकी रूप से भी अधिक सक्षम बनते हैं।
आज के दौर में पुस्तकालय में घंटों समय बिताने के बजाय स्मार्टफोन के माध्यम से त्वरित और प्रभावी अध्ययन सामग्री प्राप्त हो सकती है, जिससे न केवल समय की बचत होती है बल्कि छात्रों को नवीनतम जानकारी भी मिलती है। आज के समय में तकनीकी ज्ञान के बिना बेहतर करियर की संभावनाएं कमजोर नजर आती हैं। स्मार्टफोन छात्रों को डिजिटल और वर्चुअल दुनिया से परिचित कराता है, जिससे उनकी तकनीकी दक्षता बढ़ती है और भविष्य में उन्हें रोजगार के बेहतर अवसर मिल सकते हैं।
ऑनलाइन शिक्षा के दौर में गूगल मीट, ज़ूम जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से छात्र और शिक्षक के बीच संवाद आसान हो गया है। यदि छात्रों को किसी विषय पर शंका हो तो वे तुरंत शिक्षकों से संपर्क कर अपनी समस्याओं का समाधान पा सकते हैं।
स्मार्टफोन के नकारात्मक पहलू
हालांकि, स्मार्टफोन के सकारात्मक पहलुओं के बीच इसके दुष्प्रभावों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। स्मार्टफोन में सोशल मीडिया, गेम्स और कई लुभावने एप्स होते हैं, जो छात्रों का ध्यान पढ़ाई से भटका सकते हैं। इससे उनकी अध्ययन एकाग्रता प्रभावित हो सकती है।
यह देखा गया है कि मोबाइल के माध्यम से पढ़ने वाले छात्र अक्सर एकाग्रता के अभाव से जूझते हैं, क्योंकि वे एक साथ कई विंडो खोलकर कई चीजों को देखने के आदी हो जाते हैं। कम उम्र के बच्चों को यदि स्मार्टफोन के उपयोग की खुली छूट दी जाए तो उनकी एकाग्रता और अध्ययन क्षमता कमजोर हो सकती है।
इसके अलावा, स्मार्टफोन का अत्यधिक उपयोग बच्चों के लिए लत बन सकता है, जिससे वे लंबे समय तक फोन में व्यस्त रहते हैं। इससे आंखों की समस्या, सिरदर्द और मानसिक तनाव जैसी स्वास्थ्य समस्याएं भी उत्पन्न हो सकती हैं।
स्मार्टफोन के गलत उपयोग से छात्र नकल करने, कॉपी-पेस्ट कर गृहकार्य या प्रोजेक्ट बनाने जैसी आदतों में फंस सकते हैं। कई बार छात्र चैट जीपीटी या अन्य एआई टूल्स से बिना समझे अधूरी जानकारी प्राप्त कर लेते हैं, जिससे उनकी रचनात्मकता और सीखने की क्षमता कमजोर हो सकती है।
साथ ही, साइबर बुलिंग, पोर्न सामग्री और अन्य अनुचित कंटेंट तक बच्चों की पहुंच बढ़ सकती है, जिससे उनका मानसिक और सामाजिक विकास प्रभावित हो सकता है। माता-पिता पर भी महंगे स्मार्टफोन खरीदने और उसे मेंटेन करने का आर्थिक बोझ बढ़ सकता है।
निष्कर्ष
निश्चित रूप से स्मार्टफोन के फायदे और नुकसान दोनों ही हैं। यह छात्रों के लिए ज्ञान का खजाना भी साबित हो सकता है और गलत दिशा में जाने का कारण भी बन सकता है। इसलिए, स्कूलों में स्मार्टफोन के उपयोग पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाने के बजाय इसके नियंत्रित और उद्देश्यपूर्ण उपयोग पर जोर दिया जाना चाहिए। स्कूल प्रबंधन और अभिभावकों को मिलकर यह सुनिश्चित करना होगा कि स्मार्टफोन छात्रों के अध्ययन और व्यक्तित्व विकास के लिए सहायक बने, न कि उनके पतन का कारण।
आखिरकार, तकनीक का उद्देश्य ज्ञानवर्धन और सुविधा प्रदान करना है, न कि छात्रों के मनोबल और भविष्य को कमजोर करना। इसलिए, संतुलित दृष्टिकोण अपनाते हुए स्मार्टफोन के विवेकपूर्ण और सीमित उपयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।