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संयम और तप द्वारा आत्मानुशासन को बनाएं पुष्ट : महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण

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-गांधीधाम प्रवास के दूसरे दिन नागरिक अभिनंदन समारोह का हुआ आयोजन

- उपस्थित गणमान्यों ने की शांतिदूत की अभिवन्दना

-आचार्यश्री ने गांधीधामवासियों को दिया सद्गुण सम्पन्नता का आशीष

06.03.2025, गुरुवार,गांधीधाम,कच्छ।गुजरात के कच्छ जिले के एक प्रमुख नवीन शहर गांधीधाम में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ पधार गए हैं। आचार्यश्री का गांधीधाम में पन्द्रह दिवसीय प्रवास निर्धारित है। गांधीधामवासी अपने आराध्य को अपने शहर में पाकर अत्यंत हर्षान्वित हैं। अपने आराध्य की सेवा में दिन-रात सेवा और साधना में जुटे हुए हैं। देश की आजादी के बाद नवीन शहर के रूप में बसा गांधीधाम वर्तमान में भारत के इस पश्चिमी भाग का एक मुख्य शहर बना हुआ है। 

अमर पंचवटी में विराजमान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने गुरुवार को अपने प्रवास के दूसरे दिन ‘महावीर आध्यात्मिक समवसरण’ में समुपस्थित जनमेदिनी को पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि एक शब्द है-आत्मानुशासन और दूसरा शब्द है-परानुशासन। दोनों शब्दों में अनुशासन सन्निहित है। आत्मानुशासन वह होता है, जहां व्यक्ति स्वयं पर स्वयं अनुशासन कर लेता है। ‘अपने से अपना अनुशासन’ आत्मानुशासन होता है और जो किसी दूसरे के द्वारा दूसरे पर अनुशासन किया जाता है, वह परानुशासन हो जाता है। शास्त्र में दोनों की बातें बताई गई हैं। 

इसमें अच्छी बात यही है कि आदमी स्वयं द्वारा अपनी आत्मा का अनुशासन रखने का प्रयास करे। अपनी आत्मा पर स्वयं का नियंत्रण हो। प्रश्न हो सकता है कि स्वयं पर अनुशासन किस रूप में और किस तरीके से रखा जा सकता है? उत्तर दिया गया कि आत्मा के साथ शरीर, वाणी और मन भी जुड़ा हुआ होता है। शरीर होता है तो इनसे संबद्ध इन्द्रियां भी होती हैं। यदि कोई अपने शरीर, वाणी और मन पर अनुशासन रखे और इन्द्रियों पर अनुशासन रखे तो इससे आत्मानुशासन की बात पुष्ट हो सकती है अथवा आत्मानुशासन सिद्ध हो सकता है। आत्मानुशासन को साधने के लिए शरीर, वाणी, मन और इन्द्रियों को अपने वश में करने का प्रयास करना चाहिए। आत्मानुशासन के लिए आदमी को संयम और तप की साधना करना चाहिए। जीवन में संयम और तप होता है तो आत्मानुशासन पुष्ट बन सकता है। 

आदमी शरीर पर आत्मानुशासन के लिए अपने शरीर को अनुशासित रखने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को अपने हाथ, पैर, वाणी, नेत्र आदि संयम रखने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को आत्मानुशासन के लिए तप भी करने का प्रयास करना चाहिए। संयम और तप के द्वारा अपने शरीर पर अनुशासन किया जा सकता है। तप के द्वारा भी आदमी अपने शरीर, मन और वाणी को संयमित और अनुशासित रख सकता है। आदमी कभी जप करता है तो मन पता नहीं कहां-कहां जाने लगता है, आदमी को ध्यान देकर वापस उसे जप में लगाने का प्रयास करना चाहिए। आदमी के मन में अच्छे विचार आएं। किसी का बुरा करने का विचार न आए, सब सुखी और सभी निरामय रहें, ऐसे उन्नत विचार करने का प्रयास हो। 

आचार्यश्री ने आगे कहा कि 12 वर्षों के बाद गांधीधाम आना हुआ है। यहां के लोगों में धार्मिकता-आध्यात्मिमकता और सद्गुण सम्पन्नता रहे, यह काम्य है। 

आज के कार्यक्रम में आचार्यश्री का नागरिक अभिनंदन समारोह का भी समायोजन किया गया। इस कार्यक्रम में दीनदयाल पोर्ट ऑथोरिटी-काण्डला के श्री नवीश शुक्ला, इंडियन फोरेन सर्विसेज के कमिश्नर श्री दिनेश सिंह, अमरचंद सिंघवी इण्टरनेशनल स्कूल प्रिंसिपल श्री मृदुल वर्मा, अग्रवाल समाज के पूर्व अध्यक्ष श्री सुरेश गुप्ता,  गांधीधाम चेम्बर ऑफ कामर्स एण्ड इंडस्ट्रीज के अध्यक्ष श्री महेश पुंज, श्री गुरुनानक सिंह सभा सिक्ख समाज की ओर श्री सतपाल सिंह, आठ कोटि मोटी पक्ष के अध्यक्ष श्री रोहितभाई शाह, तेरापंथी सभा-गांधीधाम के सहमंत्री श्री जितेन्द्र सेठिया ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने सम्पूर्ण समाज को मंगल आशीर्वाद  प्रदान किया।

 

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