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आज्ञा,मर्यादा,आचार्य,गण औऱ धर्म में समाहित है मर्यादा महोत्सव का सार-आचार्य महाश्रमण

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-161वें मर्यादा महोत्सव का दूसरा दिवस

- आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के पट्टोत्सव पर आचार्यश्री ने किया श्रद्धा स्मरण 

-मुख्यमुनिश्री ने जनता को किया उद्बोधित

-श्रद्धालुओं ने श्रीचरणों में प्रस्तुत की अनेक प्रस्तुतियां

03.02.2025, सोमवार,भुज,कच्छ।भुज की धरा पर गुजरात का प्रथम तथा जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ का 161वां मर्यादा महोत्सव। भुज के ऐतिहासिक स्मृतिवन के प्रांगण में बने जय मर्यादा समवसरण में भव्य आयोजन। सोमवार को मर्यादा महोत्सव का दूसरा दिन। निर्धारित समयानुसार तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अध्यात्मवेत्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी मंच के मध्य विराजमान हुए और मंगल महामंत्रोच्चार करते हुए दूसरे दिवस का मंगल शुभारम्भ किया। 

आज के आयोजन में सर्वप्रथम मुमुक्षु बहनों ने गीत का संगान किया। तदुपरान्त मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी ने समुपस्थित विशाल जनमेदिनी को उद्बोधित किया। तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मर्यादा महोत्सव के दूसरे दिन अपनी अमृतमयी वाणी से अमृतवर्षा करते हुए कहा कि पांच शब्द हैं-आज्ञा, मर्यादा, आचार्य, गण और धर्म। इन पांच शब्दों में मार्यादा महोत्सव, साधुता, संगठन की सफलता के तत्त्व सन्निहित हैं। मैं आज्ञा की सम्यक् आराधना करूंगा। आज्ञा के प्रति एक समर्पण का भाव होना, सफलता का महत्त्वपूर्ण सूत्र प्रतीत हो रहा है। जिसकी आज्ञा से आज्ञापालक का हित हो सकता है, उसकी आज्ञा का पालन करने का प्रयास होना चाहिए। जैन आगमों और शास्त्रों की आज्ञा का पालन करने का प्रयास करना चाहिए। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ में 32 आगम मान्य हैं। आदमी को आगमों की आज्ञा पर ध्यान देने का प्रयास करना चाहिए। शास्त्रों की वाणी के प्रति जागरूक रहने का प्रयास करना चाहिए। वर्तमान में तीर्थंकर उपलब्ध नहीं तो आचार्य उनके प्रतिनिधि के रूप में होते हैं। आचार्य की आज्ञा पर ध्यान देना चाहिए। तेरापंथ धर्मसंघ में आचार्य की आज्ञा का महत्त्वपूर्ण स्थान है। साधु-साध्वियों को ऐसा त्याग भी दिलाया जाता है कि ‘आचार्य की आज्ञा को लांघने का त्याग है।’ आचार्य की आज्ञा का लांघने का त्याग है, तो आचार्य की आज्ञा का कितना महत्त्व हो जाता है।

आचार्य की कड़ी दृष्टि को भी सहन करने का प्रयास करना चाहिए। सहन करने में हीरे के समान कठोर बनना चाहिए न कि कांच की भांति अधीर। गुरुओं की कठोर वाणी को सहन करने वाला ऊंचाई को प्राप्त कर सकता है। अपने अग्रणी की आज्ञा पर भी ध्यान देने का प्रयास करना चाहिए। अग्रणी साधु-साध्वी आचार्य के प्रतिनिधि होते हैं, इसलिए उनकी आज्ञा आदि का पालन करने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने युवाचार्यश्री जीतमलजी के प्रसंग का वर्णन किया। आज्ञा की आराधना सफलता का एक सूत्र है। 

दूसरी बात है मर्यादाओं के प्रति निष्ठा। मर्यादा का मान हम रखेंगे तो मानों मयार्दाएं हमारा मान रख सकेंगी। संगठन के मर्यादाओं के पालन के प्रति जागरूक रहने का प्रयास करना चाहिए। तीसरी बात बताई गई कि मैं आचार्य की सम्यक् आराधना करूंगा। आचार्य की आज्ञा ही नहीं, उनकी इंगित पर ध्यान देना और उसे समझने का प्रयास करना, उनके प्रति विनयपूर्ण व्यवहार रखना, अप्रमत्त रहकर आचार्य की सुसुश्रा करना बहुत अच्छी बात होती है। सेवा के प्रति जागरूकता के लिए मुनि खेतसीजी स्वामी के प्रसंगों का आचार्यश्री ने वर्णन किया। चौथी बताई गई कि गण का अनुगमन करना। संघ है तो संघ की सेवा की भावना भी रखनी चाहिए। जितना संभव हो सके, संघ की सेवा करने का प्रयास करना चाहिए। आवेश में कभी संघ को छोड़ना नहीं चाहिए। छूटे तो कभी यह शरीर छूट जाए, लेकिन संघ का परित्याग करने से बचने का प्रयास करना चाहिए। पांचवी बात बताई गई कि धर्म कभी नहीं छोडूंगा। अहिंसा, संयम और तप रूपी धर्म को कभी छोड़ना नहीं चाहिए। शरीर से प्राण भले छूट जाए, लेकिन धर्म को नहीं छोड़ना चाहिए। धर्म के प्रति ऐसी निष्ठा होनी चाहिए। 

आचार्यश्री ने आगे कहा कि आचार्यश्री तुलसी ने मुनिश्री नथमलजी स्वामी टमकोर को अपना युवाचार्य बनाया। आज माघ शुक्ला षष्ठी है। आचार्यश्री महाप्रज्ञजी का आचार्य पदारोहण दिवस है। आज के दिन आचार्यश्री तुलसी ने दिल्ली में उन्हें आचार्य पद पर प्रतिष्ठित हुए। ऐसा अवसर इस धर्मसंघ में एक ही बार आया कि अपने गुरु और आचार्य के रहते हुए ही आचार्य पद प्राप्त किया। आचार्य के छत्तीस गुण बताए गए हैं। उनका आयुष्य नब्बे वर्ष का रहा। उनका लम्बा संयम पर्याय रहा। हम आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के प्रति श्रद्धा अभिव्यक्त करता हूं। आज मर्यादा महोत्सव का दूसरा दिन है। इस प्रकार हम सभी पांचों शब्दों के प्रति जागरूक रहें। 

मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री महाश्रमण मर्यादा व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री कीर्तिभाई संघवी ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। तेरापंथ समाज भुज-कच्छ ने संयुक्त रूप में गीत का संगान किया। भुज से संबद्ध मुनि अनंतकुमारजी ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने उन्हें मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। भुज ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी। जैन विश्व भारती के पदाधिकारियों द्वारा ‘शासनश्री साध्वी अशोकश्री पावन पथगामिनी’ पुस्तक आचार्यश्री के समक्ष लोकार्पित की गई। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। 

संस्था शिरोमणि तेरापंथी महासभा के अध्यक्ष श्री मनसुखलाल सेठिया, अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के अध्यक्ष श्री रमेश डागा, तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम के अध्यक्ष श्री हिम्मत माण्डोत, जैन विश्व भारती के अध्यक्ष श्री अमरचंद लुंकड़, अणुव्रत विश्व भारती सोसायटी के अध्यक्ष श्री प्रताप दुगड़, विकास परिषद के सदस्य श्री पदमचन्द पटावरी ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। आगामी मर्यादा महोत्सव छोटी खाटू में आयोजित है। इस संदर्भ में छोटी खाटू तेरापंथ समाज अपना आमंत्रण लेकर गुरु सन्निधि में उपस्थित हुआ और गीत को प्रस्तुति दी। आचार्यश्री ने कहा कि छोटी खाटू में वर्ष 2026 का मर्यादा महोत्सव घोषित है। खूब आध्यात्मिकता-धार्मिकता बनी रहे। चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति-अहमदाबाद ने भी गीत को प्रस्तुति दी। अक्षय तृतीया व्यवस्था समिति-डीसा की ओर श्री रतनलाल मेहता ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री के मंगलपाठ के साथ मर्यादा महोत्सव के दूसरे दिन का कार्यक्रम सुसम्पन्न हुआ।

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