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साधना व निर्जरा में सहयोगी बनते हैं शरीर के कर्मचारी : सिद्ध साधक आचार्यश्री महाश्रमण

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-माधापर में श्रद्धालुओं को भव से पार पहुंचाने को पहुंचे तेरापंथाधिशास्ता

-माधापरवासियों ने अपने आराध्य का किया भावभीना अभिनंदन

-तृतीय आचार्य के महाप्रयाण दिवस पर आचार्यश्री ने किया स्मरण

28.01.2025,माधापर,कच्छ।गुजरात की धरा पर पहली बार जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के महामहोत्सव ‘मर्यादा महोत्सव’ का भव्य आयोजन जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, अखण्ड परिव्राजक, महातपस्वी, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी की पावन सन्निधि में कच्छ जिले के भुज शहर में 2-4 फरवरी तक आयोजित होने वाला है। इस महामहोत्सव के लिए महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ 31 जनवरी को भुज में मंगल प्रेवश करेंगे। इसके पूर्व आचार्यश्री कच्छ जिले के अन्य गांवों और कस्बों को पावन बना रहे हैं। 

मंगलवार को प्रातःकाल की मंगल बेला में युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने वर्धमान नगर से अपने चरण गतिमान किए तो आसपास की श्रद्धालु जनता आचार्यश्री के समक्ष अपनी प्रणति अर्पित कर रही थी। आचार्यश्री ने सभी को मंगल आशीर्वाद प्रदान करते हुए अगले गंतव्य की ओर गतिमान हुए। भुज और आसपास क्षेत्र के श्रद्धालु काफी संख्या में पूज्य सन्निधि में पहुंचकर मार्ग सेवा के दुर्लभ अवसर का लाभ प्राप्त कर रहे हैं। लगभग चाढे चार किलोमीटर का विहार कर युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ माधापर में स्थित पान वल्लभ अतिथि गृह में पधारे। 

इस परिसर में आयोजित प्रातःकाल के मुख्य मंगल प्रवचन कार्यक्रम में उपस्थित जनता को महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगल पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि मानव जीवन में तीन कर्मचारी प्राप्त होते हैं, जिनके द्वारा कार्य होता है-शरीर, वाणी और मन। आत्मा को मालिक मान लिया जाए, क्योंकि आत्मा स्थाई है। शरीर, वाणी और मन स्थाई नहीं होते। मोक्ष में जाने के बाद न वहां शरीर होता है, न ही वाणी और न ही मन होता है। काम करने के लिए शरीर अच्छा कर्मचारी है और शरीर रूपी कर्मचारी के चार सहयोगी के रूप में दो हाथ और दो पैर होते हैं। जिसके माध्यम से आदमी अपने कार्य को निष्पादित कर सकता है। आदमी को इनका अच्छा उपयोग करने का प्रयास करना चाहिए। इन कर्मचारियों को मजबूत रखने का प्रयास करना चाहिए। ये सक्षम होते हैं, तो साधना और निर्जरा में सहयोग मिल सकता है। 

वाणी के द्वारा आदमी अपने विचारों का आदान-प्रदान करता है। मन भी एक ऐसा कर्मचारी है, जिसके माध्यम से चिंतन और स्मृति भी करता है। आगे के कार्यों की योजना बनाने आदि का कार्य मन करता है। आज माघ कृष्णा चतुर्दशी है। चतुर्दशी को हाजरी का दिन है और आज का दिन हमारे धर्मसंघ के तीसरे आचार्यश्री रायचन्द्रजी स्वामी के महाप्रयाण के साथ भी जुड़ा हुआ है। वि.सं. 1908 में उनका महाप्रयाण हुआ था। वे छोटी अवस्था में दीक्षित हुए थे। आचार्यश्री भिक्षु स्वामी के समय में दीक्षित हुए और वे आचार्यश्री भिक्षु स्वामी और आचार्यश्री भारमलजी स्वामी के सान्निध्य में उन्हें रहने का अवसर मिला। वे युवावस्था में धर्मसंघ के आचार्य बने। तीस वर्षों का उनका आचार्यकाल रहा। वे सबसे पहले तेरापंथ के आचार्य थे, जो गुजरात और कच्छ में पधारे थे। 

मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने हाजरी के क्रम को संपादित किया। आचार्यश्री की अनुज्ञा से साध्वी देवार्यप्रभाजी व साध्वी आर्षप्रभाजी ने लेखपत्र का वाचन किया। आचार्यश्री ने दोनों साध्वियों को तीन-तीन कल्याणक बक्सीस किए। तदुपरान्त साधु-साध्वियों ने अपने स्थान खड़े होकर लेखपत्र का उच्चरित किया। 

तेरापंथी सभा-माधापर के अध्यक्ष श्री सुरेशभाई मेहता, समस्त जैन समाज के प्रमुख श्री हितेशभाई खण्डोल, मूर्तिपूजक जैन संघ के प्रमुख श्री बसंतभाई मेहता, स्थानकवासी जैन संघ के प्रमुख श्री बसंतभाई भाभेरा, यक्ष बोतेरा संघ के मैनेजिंग ट्रस्टी श्री नरेशभाई शाह ने अपनी-अपनी भावाभिव्यक्ति दी। स्थानीय तेरापंथ महिला मण्डल ने स्वागत गीत का संगान किया। ज्ञानशाला की बालिका काव्यश्री खाण्डोल ने अपनी बालसुलभ प्रस्तुति दी। सूरत चतुर्मास व्यवस्था समिति द्वारा पूज्य सन्निधि में सोश्यल मिडिया का प्रतिवेदन लोकार्पित किया गया। 

 

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