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ज्ञानवान के साथ बने संस्कारवान - आचार्य महाश्रमण

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– आचार्य प्रवर ने दी मानव जीवन को सार्थक बनाने की प्रेरणा

– मुंबई प्रवास की स्मारिका का पूज्य चरणों में विमोचन

 सरदवाड़ी, पुणे।जनकल्याण के परम उद्देश्य के साथ अणुव्रत अनुशास्ता युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी धवल सेना के साथ महाराष्ट्र में विचरण करा रहे है। पुणे–नगर हाइवे मार्ग पर गतिमान गुरुदेव नित्य विभिन्न क्षेत्रों में पधार कर जनता को सद्भवाना, नैतिकता एवं नशामुक्ति हेतु प्रेरित कर रहे है। आज साथ प्रातः आचार्य श्री ने रांजणगांव से मंगल प्रस्थान किया। स्थानीय जैन समाज के निवेदन पर गुरुदेव जैन भवन में पधारे एवं मंगल पाठ प्रदान किया। तत्पश्चात पूज्यवर वहां से गतिशील हुए। कुछ किलोमीटर की दूरी पर मार्गस्थ कोरेगांव में जैन समाज के श्रद्धालुओं ने गुरुदेव का सड़क मार्ग पर स्वागत किया। आचार्य श्री ने उन्हें प्रेरणा प्रदान की। सामने से पड़ती चिलचिलाती धूप में भी शांतिदूत अपनी अनवरत गति से गंतव्य हेतु गतिमान थे। लगभग 11 किमी विहार कर आचार्यश्री सरदवाड़ी में अभिनव विद्यालय में प्रवास हेतु पधारे। जहां प्रिंसिपल, शिक्षकों सहित विद्यार्थियों ने आचार्य श्री का स्वागत किया। आज का गुरुदेव का प्रवास यही हुआ। चेन्नई, सूरत, मुंबई आदि कई क्षेत्रों से आज बड़ी संख्या में श्रावक समाज गुरुदेव के दर्शनार्थ उपस्थित हुआ।

मंगल प्रवचन में गुरुदेव ने कहा – मानव जीवन पाकर भी जो व्यक्ति धर्म नहीं करता व इस जीवन को यूं ही गँवा देता है, वह अपने हाथ में आये चिंतामणि रत्न समान इस जन्म को खो देता है। न जाने फिर कब यह मानव जीवन मिलेगा, इसे सार्थक करने का प्रयास होना चाहिए। साधु बनना तो सबके लिए संभव नहीं पर गृहस्थ रहते हुए भी इस जीवन का सही व सारपूर्ण उपयोग करना चाहिए। आजकल कितने बच्चे देश व विदेश में पढ़ते हैं व ज्ञान ग्रहण करते है। ज्ञान का जीवन में बड़ा महत्व है। भूगोल, खगौल, विज्ञान व अनेक भाषाओँ का ज्ञान भी वे ग्रहण करते हैं, पर इसके साथ वें जीवन के विज्ञान को भी समझे, उनमें संस्कारों का विकास भी होता रहे।

आचार्य श्री ने आगे बताया कि विद्या विनय से सुशोभित होती है। अतः जरूरी है कि विद्यार्थी ज्ञानवान बनने के साथ विनयवान भी बनें। विनय उनके व्यवहार में आये व विद्या और विनय के साथ उनके अच्छे संस्कार भी पुष्ट बनें। ईमानदारी एक सर्वोत्तम नीति है यह भाव सबके भीतर में होना चाहिए। आज के बच्चे ही भविष्य में बड़े बनेंगे। बच्चों के संस्कार निर्माण में माता-पिता व शिक्षकों का महत्वपूर्ण योग होता है। वर्तमान समय में सोसियल मिडिया जैसे उपक्रमों से भी अच्छे संस्कार ग्रहण करने का प्रयास हो। अन्यावश्यक मोबाईल का उपयोग नहीं। उसके उपयोग की भी सीमा हो। 

तत्पश्चात विद्यालय की ओर से प्रिंसिपल अरुण गोरडे सर एवं खामके सर ने स्वागत में विचार रखे। 

इस अवसर पर मुंबई से समागत चातुर्मास प्रवास समिति के अध्यक्ष श्री मदन तातेड सहित पदाधिकारियों ने आचार्य श्री के मुंबई प्रवास की स्मारिका "युगप्रधान की यशस्वी यात्रा" गुरुदेव के चरणों में भेंट की।

 

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