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ईमानदारी है सर्वोत्तम नीति - युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण

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- नवदीक्षित मुनि चंद्रप्रभ जी की बड़ी दीक्षा का हुआ आयोजन

- पांडेसरा को कृतार्थ कर भेस्तान पधारे शांतिदूत

- चार दिवसीय प्रवास हेतु कल होगा उधना में पदार्पण

 भेस्तान,सूरत।टेक्सटाइल सिटी सूरत को अध्यात्म के रंग में रंगने वाले अध्यात्म जगत के महासूर्य युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी के पावन सान्निध्य से सूरत के उपनगर पावनता को प्राप्त कर रहे है। चातुर्मास संपन्नता पश्चात पांडेसरा को पावन बना आज प्रातः आचार्य श्री ने भेस्तान के लिए मंगल विहार किया। मार्गस्थ श्रद्धालुओं के निवास स्थानों, प्रतिष्ठानों के समक्ष मंगल पाठ प्रदान करते हुए आचार्य श्री गंतव्य के लिए प्रस्थित हुए। स्थानीय जैन स्थानकवासी भवन में पधार कर प्रेरणा पाथेय प्रदान किया। विहार के दौरान जीआईडीसी क्षेत्र में स्थित विशाल फैक्ट्रियां सूरत के बढ़ते औद्योगिक विकास को दर्शा रही थी। जगह जगह श्रावक समाज समूह में अपने आराध्य के स्वागत हेतु उपस्थित था। भेस्तान में नवनिर्मित तेरापंथ भवन का आचार्य श्री की सन्निधि में लोकार्पण हुआ। पूर्व में सन् 2023 में गुरुदेव के सान्निध्य में ही इसका शिलान्यास हुआ था। अध्यात्म सुमेरु का आशीष प्राप्त कर भेस्तान वासी कृतज्ञता की अनुभूति कर रहे थे। भेस्तान के भाग्योदय स्कूल में एक दिवसीय प्रवास हेतु गुरुदेव का पदार्पण हुआ। आज नवदीक्षित मुनि चंद्रप्रभ जी की बड़ी दीक्षा समारोह का भी आयोजन हुआ। जिसमें आचार्य श्री ने नवदीक्षित मुनि को पांच महाव्रतों का विस्तृत स्वीकरण कराते हुए छेदोपस्थापनीय चारित्र में प्रवेश करवाया।


मंगल प्रवचन में युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी ने कहा – मनुष्य जन्म प्राप्त होना बड़ा दुर्लभ है। चौरासी लाख जीव योनियों में मनुष्य जीवन मिलना एक उपलब्धि है। इस जीवन को धार्मिकता से कैसे जीया जाएं इस पर विचार करना जरूरी है। एक ईमानदारी का जीवन व दूसरा बेईमानी का जीवन होता है। एक ऊबड़-खाबड़ रास्ता और दूसरा सीधा-सपाट मंजिल तक पहुँचाने वाला रास्ता। साध्य और साधन में साध्य का स्थान मुख्य होता है, इसलिए पहले साध्य का निर्धारण करे। मोक्ष को साध्य बनाना एक बहुत अच्छी बात है और उसकी प्राप्ति के लिए साधन का भी ज्ञान हो।अशुद्ध-साधन से शुद्ध साध्य की प्राप्ति कैसे हो सकती है ? सम्यक ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप ये चार मोक्ष प्राप्ति के साधन हैं व ये जिनेश्वर देव द्वारा प्रज्ञप्त मार्ग है।

गुरुदेव ने आगे फरमाया कि ईमानदारी भी इनसे सम्बद्ध शुद्ध तत्व है। ईमानदारी परेशान तो हो सकती है, पर परास्त नहीं। बेईमानी से अर्थार्जन एक बार अच्छा लग सकता है, पर उसका अंतिम परिणाम कभी अच्छा नहीं होता। झूठ, कपट, व चोरी बेईमानी व सच्चाई, सरलता तथा चोरी न करना ईमानदारी की कोटि में आते हैं। व्यक्ति को चरित्र की रक्षा व आचरणों की शुद्धता पर ध्यान देना चाहिए। लक्ष्मी चंचल है – आज है और कल नहीं। लक्ष्मी की तरह यौवन व जीवन भी चलाचल है। गृहस्थ पूरी सौ प्रतिशत इमानदारी न भी रख सके तो नब्बे प्रतिशत तो रखे। ईमानदारी सर्वोत्तम निति है, इसे जीवन में अपनाएं।

स्वागत के क्रम में भेस्तान के श्री अशोक गोखरू, बालिका सिमोनी मेहता, सुश्री विश्वा पितलिया, उधना सभा के अध्यक्ष श्री निर्मल चपलोत, निलम मेहता आदि ने अपने विचार रखे। तेरापंथ महिला मंडल, कन्या मंडल ने सामूहिक गीतों का संगान किया। ज्ञानशाला के बच्चों ने मनमोहक प्रस्तुति दी। इस अवसर पर इंदौर से समागत इन्दौर सभा के अध्यक्ष श्री निर्मल नाहटा एवं श्री निलेश रांका ने भी आराध्य के प्रति कृतज्ञता के भाव व्यक्त किए।

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