- ऐतिहासिक सूरत चातुर्मास की हुई भव्य संपन्नता
- सूरत को तीरथ बना गतिमान हुए ज्योतिचरण
गुणी जनों को देख गुणवान बनने का हो प्रयास - आचार्य श्री महाश्रमण
पांडेसरा,सूरत।विशाल जन सैलाब, हजारों भावपूर्ण नयन, हर ओर से सुनाई देती एक ही गूंज कि गुरूवर वापस जल्दी आना। चातुर्मास की संपन्नता पर कुछ ऐसा ही श्रद्धामय विहंगम नजारा था सूरत का जब युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी ने भगवान महावीर यूनिवर्सिटी के संयम विहार में चार मासिक चातुर्मास संपन्न कर मंगल प्रस्थान किया। वेसू, विआईपी रोध की विशाल सड़कें, चौराहों हर ओर जनाकीर्ण नजर आ रहे थे। कोई किसी गाड़ी के छत पर तो कोई आसपास के ऊंचे मकानों में से अपने आराध्य के दर्शन के लिए लालायित था। सूरत वासियों के लिए आचार्य श्री महाश्रमण जी का यह पावन पावस चिरस्मरणीय बन गया। धर्म नगरी सूरत आचार्य श्री के चातुर्मास से मानों धर्म तीरथ बन गया। धर्माचार्य होते हुए भी सकल समाज को एक उन्नत जीवन, स्वस्थ समाज बनाने की राह दिखाने वाले जैन तेरापंथ के ग्यारहवें अधिशास्ता का यह सूरत की धरा पर प्रथम चातुर्मास इतिहास के स्वर्णाक्षरों में अंकित हो गया। विहार के समय मंगल विदाई का दृश्य सैकड़ों भक्तों के नयनों को सजल कर गया। चार माह का प्रवास यूं क्षणों में बीत गया। गुरूदेव के पावन चातुर्मासिक स्थल संयम विहार ने पूरे देश विदेश में अपनी एक अनूठी पहचान पाई। हर जाति, वर्ग, संप्रदाय के लोगों को सद्भावना, नैतिकता और नशा मुक्ति का पाठ पढ़ाने वाले आचार्यश्री ने अपने अगले गंतव्य के लिए प्रस्थान कर दिया।
गुरूदेव का अगला सन् 2025 का चातुर्मास जहां अहमदाबाद में घोषित है वहीं इस बीच कच्छ, भुज, राजकोट, सौराष्ट्र आदि क्षेत्रों में अब आचार्य श्री का पदार्पण निर्धारित है जहां कई क्षेत्रों में विविध कार्यक्रम संपादित किए जाएंगे। सूरत उपनगर विचरण के क्रम में आचार्य श्री आज पांडेसरा तेरापंथ भवन में प्रवास हेतु पधारे। विहार में विशाल जन समूह सूरत वासियों के श्रद्धामय भावों को अभिव्यक्त कर रहा था। 17 नवंबर को भेस्तान वहीं 18 नवंबर से उधना तेरापंथ भवन में आचार्य श्री महाश्रमण जी का प्रवास संभावित है।
मंगल प्रवचन में उद्बोधन देते हुए आचार्य श्री ने कहा – आगमन साहित्य में सोलह भावनाओं का वर्णन मिलता है उसके से चार है - मैत्री, प्रमोद, करुणा व मध्यस्थ भावना। मेरी सब प्राणियों के साथ सदा मैत्री रहे व किसी के साथ भी वैर न हो। व्यक्ति सोचे कि मुझे सुख प्रिय व दुःख अप्रिय है तो हर प्राणी को सुख प्रिय व दुख अप्रिय है, ऐसे में हम आत्मतुला की बात की अनुपालना करें। दूसरी भावना ये कि गुणियों व गुणीजनों के प्रति सम्मान के भाव रहे। पूजा व्यक्ति की नहीं बल्कि गुणों की होती है। गुणीजनों के गुण देखकर उन्हें ग्रहण करने का प्रयास होना चाहिए। किसी के गुण देखकर व किसी का विकास देखकर जलन के भाव न आये, बल्कि हम भी गुणवान बनने का प्रयास करते रहें। तीसरी करुणा भावना - हम सबके प्रति करुणावान रहें। कोई वृद्ध, बीमार या बच्चा हो तो उसके प्रति मन में दया के भाव हो। किसी को दुखी देखकर खुशियाँ क्यों मनाई जाए। चौथी मध्यस्थ भावना अर्थात कोई हमारे विपरीत चलने वाला हो तो उसके साथ भी झगड़ा क्यों और किस बात का। कहावत है कि राड़ आगे बाड़ चोखी। इन चारों भावनाओं का चिन्तन व अनुप्रेक्षा हमारे जीवन की नई दिशा दे सकती है ।
गुरुदेव ने आगे फरमाया कि सूरत चातुर्मास की सम्पन्नता के बाद का आज पहला दिवस है। साधु साध्वियों के लिए मानों यह एक मुक्ति दिवस जैसा है। चार माह चातुर्मास काल में विहार आदि नहीं होते। एक स्थान पर रहने के बंधन से आज मुक्त हो गए। सन् 2023 में कुछ देर के लिए पांडेसरा आना हुआ था आज एक दिवस प्रवास के लिए आना हुआ है। जनता में धर्म के संस्कार बढ़ते रहे।
स्वागत के क्रम में पांडेसरा प्रवास समिति की ओर से श्री मुकेश बाबेल, स्थानकवासी जैन संघ के श्री जगदीश डांगी ने अपने विचार व्यक्त किए। ज्ञानशाला के बच्चों ने कालचक्र के संदर्भ में रोचक प्रस्तुति दी।