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आध्यात्मिकता से रमणीय बने रहे सूरत वासी - युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण

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- चातुर्मास का अंतिम दिवस, दिनभर लगा रहा श्रद्धालुओं का तांता

-  शांतिदूत कल विहार कर पधारेंगे पांडेसरा उपनगर में

 वेसू,सूरत।चातुर्मास का अंतिम दिवस, महावीर समवसरण में धर्म देशना का संपन्नता का दिवस, संयम विहार के विशाल प्रांगण में गुरूदेव की मंगल सन्निधि विदाई का समय। मानों सूरत वासियों के लिए ये चार माह कब चार दिवस की भांति निकल गए पता ही नहीं चला। हर श्रावक–श्राविका की दिल की यही ख्वाहिश की इस चातुर्मास की संपन्नता आए ही नहीं। अपने आराध्य का पावन सान्निध्य एवं साधु साध्वियों की दर्शन सेवा, धार्मिक उपासना का चार माह लाभ प्राप्त कर भी यह समय कम प्रतीत हो रहा था। मुख्य प्रवचन कार्यक्रम में गुरूदेव के प्रति मंगल भावना व्यक्त करने हेतु लंबी सूची थी वहीं शुभ चार बजे से ही श्रावक समाज दिनभर चातुर्मास के अंतिम दिवस का लाभ उठाने भगवान महावीर यूनिवर्सिटी के संयम विहार प्रांगण में आवागमन कर रहे थे। गुरूदेव ने शिखर दिवस प्रवचन में श्रावक समाज को उपवन की भांति सदा खिले हुए, महकते हुए रहने की प्रेरणा प्रदान की। 

धर्म सभा को राजा प्रदेशी के कथानक से संबोधित करते हुए आचार्य श्री ने कहा – इस दुनियां में दो तत्व हैं एक आत्मा जो जीव है और दूसरा अजीव। जीव और शरीर अलग अलग है। इन दोनों में सब कुछ समाविष्ट हो जाता है। आस्तिकवाद व नास्तिक दो धाराएं हैं। चारवाक दर्शन नास्तिक दर्शन है, उसका मानना है कि जब तक जीओ सुख से जीओ, आगे पीछे कुछ नहीं है। यहाँ कुमारश्रमण केशी व राजा प्रदेशी के बीच हुए संवाद का उल्लेखनीय है। केशी मुनि पार्श्व परम्परा के उज्जवल नक्षत्र थे। राजा के मन की बात केशी मुनि ने जान ली व इससे राजा भी कुछ प्रभावित हुआ। दोनों के मध्य आत्म के अस्तित्व की चर्चा की। राजा ने कहा कि मुझे आत्मा को हाथ में लेकर दिखा दो तो मैं मान लूंगा कि आत्मा है तो मुनि के कहा कि राजन हवा को हाथ में लेके दिखाओ। जैसे यह संभव नहीं है उसी प्रकार आत्मा को हाथ में लेकर दिखाना भी संभव नहीं। मुनि से लौह वणिक का उदाहरण सुन राजा प्रबुद्ध हो गया और उसने धर्म को अंगीकार कर लिया। तब मुनि ने उसे कहा कि नाट्यशाला, वनखंड व इक्षुवाटिका की तरह रमणीय बन जाने के बाद तुम अरमणीय न बनना। सूरत के लोग भी सदा   अध्यात्म से रमणीय बने रहें जीवन में धर्माराधना को स्वीकार कर अपनी आध्यात्म साधना में आगे बढ़ते रहे ऐसी प्रेरणा है। त्याग, नियम, व्रत, साधना में बारह व्रतों की साधना में दृढ़ रहे। विहार के बाद भी इस साधना के क्रम को बनाए रखे और धर्म जीवन में बढ़ता रहा।  

भावाभिव्यक्ति के क्रम में मुनि अभिजीत कुमार जी में अपने विचार रखे। तेयुप अध्यक्ष अभिनंदन गादिया, व्यवस्था समिति महामंत्री नाना लाल जी राठौड़, श्री संजय जैन, श्री मुकेश बैद, श्रीमती चंदा जी गोगड़, श्री विमल लोढ़ा, श्री कैलाश झाबक, श्री चंपक भाई, श्री अंकेश भाई, श्री विनोद जी बांठिया आदि ने मंगल भावना में अपने विचार रखे। प्रवास व्यवस्था समिति द्वारा मंगल भावना गीत की सामूहिक प्रस्तुति दी गई। तपस्या के क्रम में श्रीमती वंदना सुरेश ने 24 की तपस्या का गुरुदेव से प्रतिख्यान किया।

जैन विश्व भारती द्वारा इस अवसर पर भगवती आगम के आठवें खंड का गुरु सन्निधि में विमोचन किया गया।

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