सूरत। शहर के पाल स्थित श्री कुशल कांति खरतरगच्छ भवन पाल में युग दिवाकर खरतरगच्छाधिपति आचार्य श्री जिनमणिप्रभसूरीश्वरजी म.सा. की मंगल सन्निधि में चातुर्मास चल रहा है। बुधवार 6 नवंबर को प्रवचन में मनितप्रभ म.सा. ने कहा कि दीपक जैसे दूसरों को प्रकाशित करता है, वैसा ही परमात्मा का ज्ञान है। पांच इंद्रियों में से सबसे महत्वपूर्ण इंद्रिय है आंख। आत्म स्वरूप को जानने के लिए ज्ञान रूपी चक्षुओं की जरूरत होती है। धर्म साधना की डगर कठिन है। ज्ञान पंचमी पर हमारे ज्ञान के प्रति रुचि जगनी चाहिए। व्यापारी के तीन अभिगम होते हैं। पहला मन उसका होता है आज कुछ नया कमाना है। दूसरा जो कमाया है उसकी सुरक्षा करनी है। तीसरा जिस दिन नहीं कमाया उस दिन दर्द का अनुभव करना है। और नया ज्ञान हासिल करना चाहिए। मोबाइल और अन्य साधनो में अपना जीवन बर्बाद नहीं करना चाहिए। जीवन की कला सिखाने वाली चार किताबें हमेशा साथ होनी चाहिए। सभी फुल मुरझा जाते हैं लेकिन ज्ञान का फूल कभी नहीं मुरझाता है। सूरज भी उगने के बाद शाम को अस्त हो जाता है लेकिन ज्ञान का प्रकाश कभी अस्त नहीं होता। कुशल व्यापारी वह है जो आने वाले समय पर ध्यान देता है। विचार वाला व्यक्ति मूर्ख कहलाता है और अति विचारक की बुद्धि कुंठित हो जाती है। दोनों नहीं चाहिए। विचारक चाहिए। पत्थर की नाव डूबती है लेकिन ज्ञान रूपी पुस्तक की नाव तैरती है।